मैरिटल रेप: दिल्‍ली हाईकोर्ट का विभाजित फैसला; एक जज ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को असंवैधानिक माना, दूसरे ने कहा- मैं सहमत नहीं

Avanish Pathak

11 May 2022 9:36 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बंटा हुआ फैसला दिया है। उल्लेखनीय है कि यह अपवाद पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने पर पति को बलात्कार के अपराध से छूट देता है।

    जस्टिस राजीव शकधर ने अपने फैसले में माना कि वैवाहिक बलात्कार के अपराध से पति को छूट असंवैधानिक है। इसलिए उन्होंनं 375 के अपवाद 2, 376 बी आईपीसी को अनुच्छेद 14 के उल्लंघन में माना और रद्द कर दिया गया।

    जस्टिस शकधर ने कहा, "जहां तक ​​पति का सहमति के बिना पत्नी के साथ संभोग का प्रश्न है, यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है और इसलिए इसे रद्द किया जाता है।"

    हालांकि, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि वह जस्टिस शकधर से सहमत नहीं हैं। उन्होंने माना कि धारा 375 का अपवाद दो संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। यह विवेकपूर्ण अंतर और उचित वर्गीकरण पर आधारित है।

    जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरि शंकर की पीठ ने आदेश को 21 फरवरी को सुरक्षित रख लिया था। उन्होंने आज फैसला सुनाया। दोनों जजों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील का प्रमाण पत्र दिया और कहा कि फैसले में कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हैं।

    फैसले की विस्तृत प्रति का इंतजार है।

    उल्लेखनीय है कि वैवाहिक बलात्कार के खिलाफ याचिकाएं गैर सरकारी संगठनों आरआईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय लोकतांत्रिक महिला संघ और दो व्यक्तियों ने दायर की थीं। कोर्ट ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता रेबेका जॉन और राजशेखर राव को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। दोनों ने अपवाद को समाप्त करने के पक्ष में तर्क दिया।

    जबकि केंद्र ने बार-बार अदालत से यह कहते हुए सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया कि उसने आईपीसी प्रावधानों की समीक्षा के लिए एक परामर्श प्रक्रिया शुरू कर रही है, हालांकि बेंच ने अनुरोध को यह कहते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि "कोई अंतिम तिथि नहीं है, जब परामर्श प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी" और सभी पक्षों को सुनने के बाद बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को अवगत कराया था कि केंद्र सरकार अन्य राज्य सरकारों और हितधारकों की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही है और इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी मांग रही है। मेहता ने तर्क दिया था कि मामले की सुनवाई तब तक के लिए टाल दी जानी चाहिए जब तक कि राज्य सरकारों और हितधारकों से इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते।

    उन्होंने कहा‌ था कि केंद्र सरकार ने अपने रुख को दोहरा चुकी है कि वह प्रत्येक महिला की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। याचिकाओं में शामिल प्रश्न केवल नियमित कानून से संबंधित संवैधानिक प्रश्न नहीं हैं, बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

    केंद्र का हलफनामा

    3 फरवरी, 2022 को दायर एक अतिरिक्त हलफनामे में केंद्र ने प्रस्तुत किया था कि वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर एक व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है, जिसमें मुद्दे पर सख्त कानूनी दृष्टिकोण अपनाने के बजाय सभी राज्य सरकारों सहित सभी हितधारकों के साथ परामर्श प्रक्रिया अपनाई गई है।

    केंद्र ने कहा था कि वह हर उस महिला की स्वतंत्रता, गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, जो एक सभ्य समाज का मूल आधार और स्तंभ है, हालांकि, याचिकाओं में शामिल प्रश्न को को केवल वैधानिक प्रावधान की संवैधानिक वैधता से संबंधित प्रश्न के रूप में नहीं समझा जा सकता है, बल्‍कि इसका देश में बहुत दूरगामी सामाजिक-कानूनी प्रभाव है और होगा।"

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