दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी मर्जी से विवाह करने वाली वयस्क महिला को बाल कल्याण गृह से रिहा करने का आदेश जारी किया

LiveLaw News Network

2 Jan 2021 9:37 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी मर्जी से विवाह करने वाली वयस्क महिला को बाल कल्याण गृह से रिहा करने का आदेश जारी किया

    दिल्ली हाईकोर्ट की अवकाशकालीन पीठ, जिसमें जस्टिस अनूप जयराम भंबानी और जस्टिस मनोज कुमार ओहरी शामिल थे, ने शुक्रवार को एक विवाहिता को रिहा करने का निर्देश दिया। विवाहिता के प‌िता ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उक्त लड़की नाबालिग है और घर से गायब है। विवाहित को रोज उड़ान केयर केयर चिल्ड्रन होम, दिल्ली में रखा गया था।

    याचिकाकर्ता और महिला के पति, श्री अविनाश सरवन ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट की मांग की थी, जिसमें प्रतिवादियों को यह निर्देश जारी करने के मांग की गई थी कि उक्त महिला को रिहा किया जाए। पीठ ने वीडियो कांफ्रेंस के जर‌िए सुनवाई की, जिसमें महिला ने कहा कि वह अपने पति के साथ रहने के लिए तैयार है, जिसके बाद पीठ ने उसे रिहा करने का निर्देश दिया।

    पृष्ठभूमि

    महिला के पिता ने धारा 363, आईपीसी के तहत वजीराबाद पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई थी, जिसमें कहा गया था कि लड़की नाबालिग है। शिकायत के बाद, उसे बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष पेश किया गया था और उसे रोज उड़ान केयर चिल्‍ड्रेन होम फॉर गर्ल्स, दिल्ली में रखने का आदेश दिया गया था।

    जस्टिस विभू बाखरू और जस्टिस प्रतीक जालान की एक अन्य अवकाश पीठ ने गुरुवार को मामले की सुनवाई की थी, जिसमें पीड़िता का बयान धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किया गया था, जिसमें उसने पुष्टि की कि उसकी जन्म-तिथि 17.06.2002 है, इसलिए वह बालिग है। इस संबंध में, याचिकाकर्ता ने जन्म प्रमाण-पत्र की एक प्रति संलग्न की थी और आर्य समाज विवाह मंडल ट्रस्ट द्वारा दिए गए विवाह प्रमाण पत्र को भी पेश किया था, जिसमें दोनों की शादी की तारीख 18.12.2020 दर्ज ‌थी।

    इसलिए पीठ ने पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया कि दस्तावेजों की सत्यता को तुरंत सत्यापित किया जाए और 01.01.2021 को अवकाश पीठ के समक्ष पीड़िता को पेश किया जाए।

    बेंच का अवलोकन

    बेंच ने एएसजी की ओर से दायर स्थिति रिपोर्ट का न‌िरीक्षण किया, जिसमें कहा गया था कि लड़की को सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया गया था और काउंसलिंग के बाद सीडब्ल्यूसी द्वारा निर्देशित किया गया कि उसका विवरण सत्यापित किया जाना चाहिए और सत्यापन होने तक उसे बाल कल्याण गृह में रखा जाना चाहिए। स्टेटस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि स्कूल में दाखिला लेने के समय, उसके पिता ने उसकी जन्मतिथि 21.02.2004 बताई थी, जो कि नगर निगम के रिकॉर्ड यानी 17.06.2002 में बताई गई तारीख से अलग है। इसके अलावा, एनडीएमसी के सब रजिस्ट्रार, जन्‍म एवं मृत्यु द्वारा जारी किए गए जन्म प्रमाण पत्र में खुलासा किया गया है कि महिला की जन्म की तारीख 24.06.2002 है।

    पीड़िता को पीठ के समक्ष वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पेश किया गया और बातचीत में इस बात की पुष्टि की गई कि उसकी जन्मतिथि वास्तव में 17.06.2002 है। उसने यह भी कहा था कि उसने अपनी मर्जी के याचिकाकर्ता से शादी की और उसी के साथ रहना चाहती है।

    इस पर, अदालत ने कहा कि "रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि 18.12.2020 को लड़की 'बालिग' थी। हालांकि, आर्य समाज विवाह मंडल ट्रस्ट द्वारा जारी किया गया विवाह प्रमाण पत्र अभी तक सत्यापित नहीं किया गया है और अदालत का मानना है कि लड़की बाल‌िग है, इसलिए उसे रोज उड़ान ट्रस्ट होम में रखने का कोई जरूरत नहीं है।"

    याचिका का निपटारा करते हुए पीठ ने निर्देश जारी किए कि पीड़िता को उड़ान ट्रस्ट होम से रिहा किया जाना चाहिए और यदि वह चाहे तो याचिकाकर्ता के साथ रहने की अनुमति दी जानी चाहिए।

    केस टाइटिल: अविनाश सरवन बनाम दिल्ली सरकार और अन्य, W.P. (Crl.) 2216/2020

    आदेश दिनांक: 01.01.2021

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