दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक-उल-सुन्नत को असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका को खारिज करने के खिलाफ पुनर्विचार याचिका पर नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
8 Oct 2021 3:18 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक पुनर्विचार यचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें बिना किसी कारण या अग्रिम सूचना के पत्नी को तलाक (तलाक-उल-सुन्नत) देने के मुस्लिम पति के "पूर्ण विवेकाधिकार" को मनमाना, शरीयत विरोधी, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक घोषित करने की मांग वाली याचिका को खारिज करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस जसमीत सिंह ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 जनवरी की तारीख तय की।
सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता बजरंग वत्स ने तर्क दिया कि कानूनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर की गई है कि क्या तलाक-उल-सुन्नत धारा 2 (सी) मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत तलाक के अर्थ के अंतर्गत आता है।
अधिनियम की धारा 2 (सी) के तहत तलाक की परिभाषा को पढ़ते हुए वत्स ने तर्क दिया कि तलाक-उल-सुन्नत, तलाक का एक प्रतिसंहरणीय रूप होने के कारण इसके अंतर्गत नहीं आता है।
उन्होंने कहा, "तलाक का अर्थ केवल तलाक ए बिद्दत को शामिल करता है। तलाक का कोई अन्य रूप जो तत्कालिक नहीं है वह परिभाषा के तहत शामिल नहीं है। सुन्नत तत्काल नहीं है। यह रद्द करने योग्य है। कानूनी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।"
दूसरी ओर, केंद्र की ओर से पेश अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने कहा कि तलाक का अर्थ केवल तलाक के उन रूपों को शामिल करता है जो तत्कालिक हैं।
इस पर जस्टिस विपिन सांघी ने कहा, "क्या आप स्वीकार कर रहे हैं कि वह क्या प्रस्तुत कर रहा है?"
अरोड़ा ने हालांकि कहा कि इस मामले में विस्तृत जवाब दाखिल किया जाएगा। कोर्ट ने कहा, "आपको अपने जवाब में तलाक-उल-सुन्नत की विशेषताओं के बारे में भी बताना होगा।"
अधिवक्ता बजरंग वत्स के माध्यम से दायर याचिका में तलाक-उल-सुन्नत द्वारा तलाक के संबंध में चेक और बैलेंस के रूप में विस्तृत दिशा-निर्देश या कानून जारी करने के निर्देश भी मांगे गए।
इस आशय का एक घोषणा पत्र भी मांगा गया था कि मुस्लिम विवाह केवल एक अनुबंध नहीं है बल्कि एक स्थिति है।
याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा था, "हमें इस याचिका में कोई योग्यता नहीं मिलती क्योंकि संसद ने पहले ही हस्तक्षेप किया है और उक्त अधिनियम को अधिनियमित किया है।"
याचिका एक 28 वर्षीय मुस्लिम महिला, दायर की थी। जो जो 9 महीने के बच्चे की मां भी है। उसे उसके पति ने इस साल अगस्त में तीन तलाक बोलकर छोड़ दिया था।
याचिका में कहा गया है, "याचिकाकर्ता ने दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए प्रतिवादी संख्या 2 (उसके पति) को 12.08.2021 को कानूनी नोटिस दिया। जवाब में प्रतिवादी संख्या 4 पति ने याचिकाकर्ता को 02.09.2021 को एक कानूनी नोटिस दिया जिसमें प्रतिवादी संख्या 4 पति ने याचिकाकर्ता को 02.08.2021 को तत्काल तीन तालक की घोषणा से इनकार किया है और साथ ही याचिकाकर्ता पत्नी को इस कानूनी नोटिस की प्राप्ति की तारीख से 15 दिनों के भीतर प्रतिवादी संख्या 4 पति को तलाक देने के लिए कहा। याचिकाकर्ता को प्रतिवादी संख्या 2 के परिवार के सदस्य द्वारा सूचित किया गया कि प्रतिवादी संख्या 4 पति याचिकाकर्ता को दूसरी शादी के लिए तलाक देने की योजना बना रहा है।"
तलाक उल सुन्नत को प्रतिसंहरणीय तलाक भी कहा जाता है क्योंकि यह एक बार में अंतिम नहीं हो जाता है और हमेशा पति-पत्नी के बीच समझौता होने की संभावना बनी रहती है।
शीर्षक: रेशमा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार और अन्य के माध्यम से।