दिल्ली हाईकोर्ट ने किशोर न्याय नियमों के तहत रिपोर्ट में 'कथित अपराध का कारण' उल्लेख करने के खिलाफ डीसीपीसीआर की याचिका पर नोटिस जारी किया

Avanish Pathak

13 Jan 2023 8:26 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने किशोर न्याय नियमों के तहत रिपोर्ट में कथित अपराध का कारण उल्लेख करने के खिलाफ डीसीपीसीआर की याचिका पर नोटिस जारी किया

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) की एक याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें उसने किशोर की सामाजिक पृष्ठभूमि र‌िपोर्ट, और सामाजिक जांच रिपोर्ट में 'कथित अपराध के कारण और अपराध में बच्चे की कथित भूमिका' की रिकॉर्डिंग की आवश्यकता को चुनौती दी है। आयोग ने कहा है कि यह बच्चे से स्वीकारोक्त‌ि प्राप्त करने जैसा है, निकालने और संविधान के अनुच्छेद 20(3) का उल्लंघन है।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता और जस्टिस पूनम बंबा की खंडपीठ ने महिला एवं बाल विकास और कानून एवं न्याय मंत्रालयों के साथ-साथ दिल्ली सरकार के माध्यम से केंद्र से जवाब मांगा।

    मामले की सुनवाई 28 मार्च को होगी।

    एडवोकेट आरएचए सिकंदर के माध्यम से दायर याचिका में सामाजिक पृष्ठभूमि रिपोर्ट के फॉर्म एक के खंड 21 और 24 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। साथ ही सामाजिक जांच रिपोर्ट के फॉर्म 6 के खंड 42 और 43 को संविधान के अनुच्छेद 14, 20 और 21 के खिलाफ माना गया है। क्लॉज के तहत अधिकारियों को "कथित अपराध के कारण और अपराध में बच्चे की कथित भूमिका" का पता लगाने की आवश्यकता होती है।

    कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे के संबंध में आदेश पारित करते समय किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) द्वारा रिपोर्टों पर विचार किया जाता है और उन पर भरोसा किया जाता है।

    दलील में कहा गया है कि विवादित धाराएं संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित निष्पक्ष सुनवाई और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं, "क्योंकि वे बच्चों को सेल्फ-इनक्रिमिनेशन के लिए एक्सपोज़ करती हैं।"

    आयोग ने 19 सितंबर, 2022 को विकास सांगवान बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली सरकार) में एक डिवीजन बेंच द्वारा पारित आदेश पर भरोसा किया है, जिसमें यह देखा गया था कि जिस तरीके से अपराध किया गया था, उसके बारे में एक बच्चे से कबूलनामा प्राप्त करना असंवैधानिक है और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत तैयार की जाने वाली प्रारंभिक मूल्यांकन रिपोर्ट के दायरे से बाहर है।

    अपनी दलील में, आयोग ने कह है कि विवादित धाराएं मनमानी हैं और किशोर न्याय अधिनियम के उद्देश्यों के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं रखती हैं। दलील में यह भी कहा गया है कि इससे बच्चों के अधिकारों को गंभीर नुकसान होगा।

    शीर्षक: DCPCR बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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