दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए, कहा-मसौदा हिंदी में भी तैयार करें

Avanish Pathak

20 May 2023 3:07 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में मध्यस्थता समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए, कहा-मसौदा हिंदी में भी तैयार करें

    दिल्ली हाईकोर्ट ने वैवाहिक मामलों में सेटलमेंट एग्रीमेंट का मसौदा तैयार करते समय मध्यस्थों द्वारा पालन करने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं और कहा है कि ऐसे समझौतों को अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा में भी प्रकाशित किया जाना चाहिए।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि मध्यस्थों के लिए सुसंगतता, निरंतरता और स्पष्टता के साथ समझौतों का मसौदा तैयार करने के लिए आवश्यक मार्गदर्शन विवाद को अविलंब समाप्त करके और विवाद में शामिल पक्षों को भविष्य में मुकदमों से बचाकर "जरूरतमंदों के जीवन को ठीक करने" में काफी मदद करेगा।

    अदालत ने निर्देश दिया कि एक मध्यस्थता समझौते में सभी पक्षों के नाम विशेष रूप से होने चाहिए और 'प्रतिवादी', 'प्रतिवादियों', 'याचिकाकर्ता' या 'याचिकाकर्ताओं' जैसे शब्दों से बचना चाहिए, क्योंकि इससे अस्पष्टता और आगे मुकदमेबाजी होती है।

    कोर्ट ने कहा,

    “नियमों और शर्तों की पूर्ति की टाइम लाइन के साथ-साथ उन्हें निष्पादित करने की टाइम-लाइन का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए, जहां तक संभव हो कोई अस्थायी तिथियां नहीं होनी चाहिए। समझौते में एक डिफ़ॉल्ट क्लॉज शामिल किया जाना चाहिए और उसके परिणामों को समझाया जाना चाहिए और समझौते में ही सूचीबद्ध किया जाना चाहिए।”

    निर्णय में कहा गया कि आईपीसी की धारा 498ए से जुड़े मामलों में, समझौते में उन सभी पक्षों के नाम शामिल होने चाहिए, जिनका नाम एफआईआर में दर्ज किया गया है और यह तथ्य कि एफआईआर को रद्द करने के लिए दावों का समग्र रूप से निपटारा किया गया है, को दर्ज किया जाना चाहिए।

    जस्टिस शर्मा ने आगे कहा कि समझौते में इस्तेमाल भाषा पार्टियों के वास्तविक इरादे और उन लक्ष्यों को समझने के लिए पर्याप्त होनी चाहिए जिसे वे समझौते के जरिए हासिल करना चाहते हैं।

    मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि जहां तक संभव हो अंग्रेजी भाषा के अलावा हिंदी भाषा में भी मध्यस्थता समझौते तैयार किए जाएं। अदालत ने कहा कि ऐसा निर्देश इसलिए जारी किया जाता है क्योंकि अधिकांश मामलों में पक्षकार अंग्रेजी नहीं समझते हैं, और उनकी मातृभाषा हिंदी होती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस फैसले की एक प्रति प्रभारी, दिल्ली हाईकोर्ट मध्यस्थता और सुलह केंद्र (समाधान) के साथ-साथ दिल्ली के सभी जिला न्यायालयों में सभी मध्यस्थता केंद्रों के संबंधित प्रभारी को ध्यान देने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए अग्रेषित की जाए। एक प्रति निदेशक (अकादमिक), दिल्ली न्यायिक अकादमी को भी भेजी जाए।”

    केस टाइटल: श्री छत्रपाल और अन्य बनाम राज्य और अन्य

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (दिल्ली) 422

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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