वकील पर न्यायपालिका को 'भ्रष्ट' कहने का आरोप, हाईकोर्ट ने शुरू की आपराधिक अवमानना कार्यवाही
Shahadat
29 Sept 2025 2:23 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में वकील के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की, जिसने न्यायपालिका और जजों को भ्रष्ट बताया और संस्था पर अपमानजनक आरोप लगाए।
जस्टिस अमित शर्मा ने कहा कि प्रथम दृष्टया, वकील ने न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी) में परिभाषित "आपराधिक अवमानना" की है।
अदालत ने आदेश दिया कि वकील के खिलाफ आगे की कार्यवाही के लिए मामले को 19 नवंबर को खंडपीठ या रोस्टर पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। साथ ही उसे उक्त तिथि पर उपस्थित होने का भी निर्देश दिया।
वकील के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की मांग करते हुए 2023 में याचिका दायर की गई। दिसंबर, 2023 में वकील पूर्ववर्ती पीठ के समक्ष उपस्थित हुए और जजों के खिलाफ आरोप लगाने के लिए बिना शर्त माफी मांगी और कहा कि वह भविष्य में ऐसा कभी नहीं करेंगे।
जनवरी, 2024 में वकील से जुड़े एक दीवानी मुकदमे में उन्हें अवमानना का कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। इसके बाद न्यायिक आदेश का उल्लंघन करने और न्यायपालिका पर निंदनीय आरोप लगाने के लिए घोर अवमानना का आरोप लगाते हुए अवमानना याचिका दायर की गई।
सुनवाई के दौरान, पूर्ववर्ती पीठ ने वकील द्वारा लिखे गए ईमेल का संज्ञान लिया, जिसमें न्यायपालिका और जजों के विरुद्ध अन्य निंदनीय, अपमानजनक और अवमाननापूर्ण आरोपों के साथ-साथ मानहानि की सामग्री भी शामिल थी।
अपने ईमेल में वकील ने कहा कि वह "न्यायिक आतंकवाद, न्यायिक आपातकाल, न्यायिक भ्रष्टाचार और न्यायिक सामूहिक षडयंत्र" का शिकार है। इसलिए "न्यायिक जवाबदेही विधेयक" की आवश्यकता है।
अवमानना के कारण बताओ नोटिस के जवाब में वकील ने कहा कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के कारण उन्होंने अपनी युवावस्था के बहुमूल्य 10 वर्ष गंवा दिए और "अब न्यायपालिका चाहती है कि वह सब कुछ भूलकर भ्रष्ट न्यायपालिका द्वारा लगाए गए झूठे आरोपों का सहारा लें।"
रिकॉर्ड में मौजूद दस्तावेजों का अवलोकन करते हुए अदालत ने पाया कि वकील द्वारा न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के बेबुनियाद आरोप लगाए गए, जो अवमाननापूर्ण, अपमानजनक और निंदनीय प्रकृति के है।
अदालत ने कहा,
"यह अदालत के अधिकार को कम करने और बदनाम करने के समान है। इससे न्यायिक कार्यवाही और न्याय प्रशासन में भी हस्तक्षेप होता है।"
अदालत ने आगे कहा,
"वर्तमान मामले के उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान याचिका में प्रस्तुत सामग्री का अवलोकन करने के बाद प्रथम दृष्टया, यह न्यायालय इस राय पर पहुंचता है कि प्रतिवादी ने अदालत अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(सी) में परिभाषित "आपराधिक अवमानना" की है।"
Title: GUNJAN KUMAR & ANR v. VEDANT

