ट्रेडमार्क मामले में TESLA को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत, 'TESLA' मार्क्स के इस्तेमाल पर रोक बढ़ाई

Shahadat

27 Nov 2025 9:32 AM IST

  • ट्रेडमार्क मामले में TESLA को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत, TESLA मार्क्स के इस्तेमाल पर रोक बढ़ाई

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को अमेरीका की इलेक्ट्रिक गाड़ी कंपनी टेस्ला इंक को राहत देते हुए कहा कि भारत की टेस्ला पावर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का पहले दिया गया अंडरटेकिंग, जिसमें कहा गया कि वह इलेक्ट्रिक गाड़ियां नहीं बनाएगी या उनकी मार्केटिंग नहीं करेगी या ईवी के लिए 'टेस्ला' जैसे किसी भी धोखे से मिलते-जुलते मार्क का इस्तेमाल नहीं करेगी, तब तक जारी रहेगा जब तक ट्रेडमार्क उल्लंघन के मुकदमे का आखिरी फैसला नहीं हो जाता।

    24 नवंबर, 2025 के अपने फैसले में जस्टिस तेजस करिया की सिंगल बेंच ने कहा कि भारतीय कंपनी के विवादित मार्क्स की मुख्य और ज़रूरी खासियत “TESLA” शब्द था। कोर्ट ने पाया कि मार्क्स टेस्ला इंक के मार्क्स जैसे ही हैं और कहा कि मार्क्स, सामान और ट्रेड चैनल की समानता मिलकर “ट्रिपल आइडेंटिटी” का मामला बनाती है जिसके लिए अंतरिम राहत ज़रूरी है।

    टेस्ला इंक. ने इस साल की शुरुआत में कोर्ट में अर्जी दी थी, जिसमें टेस्ला पावर इंडिया को “TESLA POWER,” “TESLA POWER USA,” साथ वाले लोगो और उससे जुड़े डोमेन नेम के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए परमानेंट रोक लगाने की मांग की गई। टेस्ला इंक. ने अपने पहले के रजिस्ट्रेशन और TESLA मार्क के बड़े पैमाने पर इंटरनेशनल इस्तेमाल पर भरोसा किया। साथ ही दलील दी कि भारतीय कंपनी के मार्क में “TESLA” शब्द खास तौर पर लिखा, जिससे कस्टमर में कन्फ्यूजन की संभावना है।

    टेस्ला पावर इंडिया ने इस मुकदमे का विरोध करते हुए दावा किया कि वह इस मार्क का इस्तेमाल सिर्फ लेड-एसिड बैटरी के लिए करती है, जो उसके मुताबिक टेस्ला इंक. के प्रोडक्ट से अलग हैं। उसने आगे दलील दी कि कई थर्ड पार्टी “TESLA” का इस्तेमाल करती हैं और टेस्ला इंक. ने मुकदमे में शामिल सभी सामानों के लिए भारत में एक्सक्लूसिव राइट्स नहीं दिखाए।

    प्लीडिंग्स और डॉक्यूमेंट्स को रिव्यू करने के बाद कोर्ट ने माना कि टेस्ला इंक. ने TESLA मार्क में पहले के रजिस्ट्रेशन और अच्छी-खासी ग्लोबल रेप्युटेशन बनाई। कोर्ट ने यह नतीजा निकाला कि कंपनी ने अंतरिम प्रोटेक्शन के लिए एक मजबूत प्राइमा फेसी केस बनाया था।

    कोर्ट ने यह भी पाया कि भारतीय कंपनी टेस्ला इंक. की रेप्युटेशन का फ़ायदा उठा रही थी, खासकर “TESLA POWER USA” नाम अपनाकर। कोर्ट ने कहा कि यह नाम “कस्टमर्स को यह यकीन दिलाने के इरादे से रखा गया लगता है कि डिफेंडेंट जो टेक्नोलॉजी इस्तेमाल कर रहे हैं, वह USA में बनी है और डिफेंडेंट प्लेनटिफ से जुड़े हैं, जो USA में बेस्ड है।”

    कोर्ट यह देखते हुए ने आगे कहा कि कन्फ्यूजन की संभावना “बहुत ज़्यादा” थी कि सामान एक जैसे और मिलते-जुलते थे और “TESLA” ही मुख्य और एक जैसा एलिमेंट बना रहा। कोर्ट ने दोहराया कि ट्रेडमार्क कानून में असली कन्फ्यूजन के सबूत की ज़रूरत नहीं होती। हालांकि टेस्ला इंक. ने कई ऐसे उदाहरण रिकॉर्ड में रखे थे जिनसे पता चलता है कि कंज्यूमर और यहां तक ​​कि जाने-माने मीडिया ऑर्गनाइजेशन ने भी गलती से मान लिया था कि इंडियन कंपनी टेस्ला इंक. से जुड़ी हुई है।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    “'USA' और 'POWER' जैसे डिस्क्रिप्टिव शब्द जोड़ना डिफेंडेंट के सामान और सर्विस को प्लेनटिफ के सामान और सर्विस से अलग करने के लिए काफी नहीं है। एवरेज इंटेलिजेंस और कम याद रखने वाला कंज्यूमर कॉम्पिटिशन वाले प्रोडक्ट में फर्क नहीं कर पाएगा।”

    इस तर्क को खारिज करते हुए कि 'TESLA' एक जेनेरिक ट्रेड नेम है, कोर्ट ने कहा कि इंडियन कंपनी के पास बचाव का कोई तरीका नहीं था, क्योंकि उसने खुद विवादित मार्क के रजिस्ट्रेशन के लिए अप्लाई किया।

    इसलिए कोर्ट ने अंतरिम एप्लीकेशन को मंज़ूरी दी और निर्देश दिया कि इंडियन कंपनी द्वारा पहले दिया गया अंडरटेकिंग केस के फाइनल डिस्पोजल तक लागू रहेगा। कोर्ट ने साफ किया कि यह निर्देश इंटरनेट और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सहित किसी भी मीडियम में एडवरटाइजिंग और प्रमोशन को कवर करता है। ऑटोमोबाइल, इनवर्टर और UPS के लिए लेड-एसिड बैटरी बेचने या डील करने तक भी फैला हुआ।

    Case Title: Tesla Inc. v. Tesla Power India Private Limited & Ors.

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