पति से बदला लेने के लिए पत्नी ने POCSO Act के तहत दर्ज कराया मामला, हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी को 'हथियार' के रूप में चुनने के लिए लगाई फटकार

Shahadat

29 Sept 2025 10:35 AM IST

  • पति से बदला लेने के लिए पत्नी ने POCSO Act के तहत दर्ज कराया मामला, हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी को हथियार के रूप में चुनने के लिए लगाई फटकार

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक माँ को फटकार लगाई, जिसने अपने अलग हुए पति के खिलाफ POCSO Act के तहत मामला दर्ज कराकर उससे बदला लेने के लिए अपनी नाबालिग बेटी को "हथियार" के रूप में चुना।

    जस्टिस अरुण मोंगा ने 2 सितंबर को दिए गए अपने फैसले में कहा,

    "बाल संरक्षण कानूनों की ढाल को प्रतिशोधात्मक मुकदमों के लिए तलवार में नहीं बदला जा सकता।"

    माँ ने 2020 में FIR दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि पीड़िता के पिता और चचेरे भाइयों ने उसकी नाबालिग बेटी का यौन शोषण किया। गौरतलब है कि महिला का अपने पति से झगड़ा हो गया और उनके बीच वैवाहिक कलह चल रही थी।

    हाईकोर्ट में माँ ने POCSO मामले में आरोपी के रूप में अलग हुए पति के परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों, पीड़िता की दादी और मौसी को तलब करने की उसकी अर्जी खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। उस पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

    यह देखते हुए कि पीड़िता की माँ का प्रयास न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग है, अदालत ने कहा:

    “जिसे न्याय की तलाश बताया जा रहा है, वह वास्तव में दबाव बनाने की एक कोशिश है, जिसका उद्देश्य बच्चे के हित को आगे बढ़ाना नहीं, बल्कि उसके पति के प्रति गहरी नफ़रत के कारण व्यक्तिगत बदला लेने के लिए गलत तरीके से सोचा गया। वृद्ध दादा-दादी और मौसी, जो पूरी तरह से भोले प्रतीत होते हैं और जिनकी कथित घटनाओं में कोई भूमिका नहीं है, उसको फंसाने का प्रयास याचिकाकर्ता के अलग हुए पति के निर्दोष परिवार के सदस्यों को लंबी आपराधिक मुकदमेबाजी में उलझाने की स्पष्ट मंशा को दर्शाता है।”

    ट्रायल कोर्ट द्वारा माँ पर लगाए गए जुर्माने को बरकरार रखते हुए अदालत ने उसकी याचिका खारिज करते हुए उस पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।

    अदालत ने आदेश दिया कि दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) को राज्य को अनावश्यक और कष्टदायक मुकदमेबाजी में उलझाने के लिए लागत का भुगतान किया जाए, जो माँ द्वारा "कानूनी प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग" करके "प्रतिशोध की भावना से प्रेरित" किया गया।

    जज ने कहा कि अतिरिक्त अभियुक्त को तलब करना एक गंभीर कदम है, जो उसकी स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। इसलिए अदालतों को नाबालिग बच्चे की अस्वीकार्य, अपुष्ट और असंगत गवाही के आधार पर आपराधिक दायित्व के अतिरेक से बचना चाहिए, खासकर जब किसी इच्छुक माता-पिता के प्रभाव में हो।

    अदालत ने कहा,

    "यह मामला और भी परेशान करने वाला हो जाता है, क्योंकि माँ ने इस निजी लड़ाई में अपनी ही नाबालिग बेटी को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया, जिससे बच्चे के आघात का अन्य उद्देश्यों के लिए फायदा उठाया जा रहा है। ऐसा आचरण न केवल कार्यवाही की अखंडता और निष्पक्षता को कमजोर करता है, बल्कि POCSO Act के तहत अपराधों की गंभीरता को भी कमज़ोर करके उन्हें प्रतिशोध के साधन तक सीमित कर देता है।"

    अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि असंगत और अस्वीकार्य गवाही के आधार पर अतिरिक्त अभियुक्त को बुलाना प्रक्रिया का गंभीर दुरुपयोग होगा, जिससे निर्दोष व्यक्तियों के अधिकारों से समझौता होगा और पहले से चल रहे मुकदमे को अनावश्यक रूप से लंबा खींचा जाएगा।

    Title: MS AM v. GOVERNMENT OF STATE OF GNCT OF DELHI

    Next Story