"जीवन का अर्थ कोर्ट केस से कहीं अधिक है": दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाहित जोड़े को आपसी विवाद सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने को कहा

LiveLaw News Network

18 Jan 2022 3:36 AM GMT

  • जीवन का अर्थ कोर्ट केस से कहीं अधिक है: दिल्ली हाईकोर्ट ने विवाहित जोड़े को आपसी विवाद सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने को कहा

    दिल्ली हाइकोर्ट ने सोमवार को एक वैवाहिक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि जीवन का अर्थ कोर्ट केस से कहीं अधिक है। कोर्ट ने विवाहित जोड़े को आपसी बातचीत से सौहार्दपूर्ण तरीके से मामला निपटाने को कहा।

    कोर्ट ने कहा कि जीवन छोटा है और इसका अर्थ अदालत में मामलों में उलझने से कहीं अधिक है।

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पक्षों को वैवाहिक विवाद के लिए मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए प्रोत्साहित किया।

    जस्टिस नजमी वजीरी याचिकाकर्ता पर्ल अरोड़ा द्वारा अपने पति रोहित अरोड़ा के खिलाफ दायर अवमानना ​​मामले की सुनवाई कर रही थीं।

    याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी (पति) ने लगभग एक दशक से पत्नी और बच्चे के लिए भरण पोषण के रूप में किसी राशि का भुगतान नहीं किया है और याचिकाकर्ता और उनके बच्चे के भरण पोषण के लिए 31 लाख रुपये से अधिक का बकाया है।

    दूसरी ओर प्रतिवादी पति ने लगभग 24,63,000/- रुपये का भुगतान करने का दावा किया। हालांकि 7.50 लाख रुपए बकाया के रूप में माना।

    उन्होंने कुछ वित्तीय कठिनाई से गुजरने की बात कही और कुछ समय में दो लाख रुपये की राशि का भुगतान करने की अनुमति मांगी। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि वह पत्नी के लिए एक अलग से मेडिकल पॉलिसी लेगा और विवाह के निर्वाह की अवधि तक इसे बनाए रखेगा।

    पीठ को आज की सुनवाई के दौरान सूचित किया गया कि यह राशि आज तक बकाया है। अदालत के ध्यान में यह भी लाया गया कि याचिकाकर्ता एक जानलेवा बीमारी से पीड़ित है।

    उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए जस्टिस वजीरी ने मौखिक रूप से कहा,

    " ज़िन्दगी बहुत छोटी है...इसका मतलब अदालत में मुक़दमे चलाने से कहीं ज़्यादा है। "

    इसके अलावा यह देखते हुए कि पक्षकारों के बीच 18 अदालती मामले लंबित हैं, न्यायाधीश ने पक्षकारों को आपस में बात करने और मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए प्रोत्साहित किया।

    पीठ ने कहा,

    "फालतू के मामलों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।"

    पीठ ने संबंधित वकीलों को पक्षकारों से निर्देश लेने का निर्देश दिया ताकि दिन के दौरान प्रभावी आदेश पारित किए जा सकें।

    याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वंदना आनंद पेश हुईं।

    केस शीर्षक: पर्ल अरोड़ा बनाम रजत अरोड़ा, सीएएस (सी) 749/2021

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