दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, स्कूल ऐसे स्टूडेंट्स को ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने से रोक दें, जो वित्तीय क्षमता के बावजूद ट्यूशन फीस नहीं दे रहे
LiveLaw News Network
10 July 2020 2:43 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को दिल्ली सरकार के आदेश की आंशिक रूप से व्याख्या की, जिसमें निजी स्कूलों को ऐसे स्टूडेंट्स को ऑनलाइन कक्षाओं से भाग लेने को रोकने से मना किया गया था, जो टयूशन फी जमा नहीं करते हैं।
क्वीन मैरी स्कूल नॉर्थेंड की ओर से दायर याचिका पर जस्टिस जयंत नाथ की एकल पीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा, "जहां माता-पिता ने दो महीने से अधिक समय से ट्यूशन फीस का भुगतान नहीं किया है, याचिकाकर्ता ऐसे माता-पिता को भुगतान न करने का कारण बताने के लिए एक उचित नोटिस जारी करने के लिए स्वतंत्र है...
जहां माता-पिता अपनी वित्तीय कठिनाइयों के बारे में याचिकाकर्ता को संतुष्ट/ प्रदर्शित करने में असमर्थ हैं, याचिकाकर्ता माता-पिता से इस संबंध में संवाद करने और उन्हें छात्रों के लिए ऑनलाइन शिक्षा सुविधा की आईडी और पासवर्ड देने से इनकार करने के लिए स्वतंत्र है।"
याचिकाकर्ता-स्कूल ने दिल्ली सरकार के 18 अप्रैल, 2020 के परिपत्र (शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी) के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस छोड़कर, किसी अन्य घटक को चार्ज करने से रोक दिया गया था, जब तक कि लॉकडाउन प्रभावी है।
इसके अलावा, उक्त परिपत्र के खंड (viii) में कहा गया है कि किसी भी स्थिति में, उन छात्रों को शैक्षिक सुविधाओं/ कक्षाओं/सामग्रियों की ऑनलाइन पहुंच प्राप्त करने के लिए आईडी और पासवर्ड से वंचित नहीं किया जाएगा, जो व्यावसायिक गतिविधियां बंद होने से, वित्तीय संकट के कारण स्कूल शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि इस शर्त का "अनुचित लाभ" लेकर लगभग 40 फीसदी छात्रों ने ट्यूशन फीस का भुगतान नहीं किया है, जिसके कारण स्कूल पर गंभीर आर्थिक संकट आ गया है।
गौरतलब है कि उक्त सर्कुलर को नरेश कुमार बनाम शिक्षा निदेशक और अन्य में हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई थी।
उस मामले में, हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था और आगाह किया था कि इसके प्रावधानों का "दुरुपयोग" नहीं किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने टिप्पणी की थी, "इस प्रावधान को लागू करते समय, यह सुनिश्चित करें कि इसका दुरुपयोग न किया जाए, और इसका विस्तार केवल उन लोगों तक ही किया जाए, जो वास्तव में, लॉकडाउन के कारण, वित्तीय संकट की स्थिति में हैं। इस राहत का लाभ लेने की कोशिश कर रहे माता-पिता के लिए यह आवश्यक होगा कि वो स्कूल या DoE की संतुष्टि के लिए यह साबित करें कि लॉकडाउन के कारण वे वास्तव में स्कूल की फीस का भुगतान करने से आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।"
वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने डिवीजन बेंच द्वारा दी गई इस व्याख्या/स्पष्टीकरण को लागू करने की अनुमति मांगी थी।
दलीलों से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने स्कूलों को उन छात्रों को ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल होने से रोकने की अनुमति दे दी, जिन्होंने दो महीने से बिना किसी वैध कारण के स्कूल की फीस का भुगतान नहीं किया है।
कोर्ट ने कहा, "यदि माता-पिता अपनी वित्तीय समस्याओं/वित्तीय अक्षमता के बारे में याचिकाकर्ता को समझाने/प्रदर्शित करने में सक्षम हैं, ..तो याचिकाकर्ता ऐसे माता-पिता के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगा। "
कोर्ट ने स्पष्ट किया, "अगर माता-पिता को याचिकाकर्ता स्कूल की ओर से पारित आदेश के खिलाफ शिकायत है, तो वे दिल्ली सरकार से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।"
मामले का विवरण
केस टाइटल: क्वीन मैरी स्कूल नॉर्थेंड बनाम शिक्षा निदेशक
केस नं: WP (C) नंबर 4011/2020
कोरम: जस्टिस जयंत नाथ
वकील: रोमी चाको, शक्ति चंद जैडॉल और वरुण मुद्गल (याचिकाकर्ता के लिए); स्टैंडिंग काउंसल रमेश सिंह के साथ संतोष त्रिपाठी और भावना कटारिया (प्रतिवादी के लिए)
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