दिल्ली हाईकोर्ट ने पति को तलाक देने से इनकार करते हुए कहा, पत्नी द्वारा दहेज की मांग और शराब पीने का आरोप लगाना 'क्रूरता' नहीं

LiveLaw News Network

10 Nov 2021 2:34 PM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने पति को तलाक देने से इनकार करते हुए कहा, पत्नी द्वारा दहेज की मांग और शराब पीने का आरोप लगाना क्रूरता नहीं

    दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैवाहिक संबंधों में सामान्य ऊंच-नीच होती रहती ही है। हालांकि यह रिश्ते को खत्म करने का कोई कारण नहीं हो सकता।

    न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने आगे कहा कि पत्नी द्वारा पति के खिलाफ दहेज की मांग करने और शराब के नशे में धुत होने के आरोप उसके चरित्र पर गंभीर आरोप लगाने के लिए इस हद तक नहीं हैं कि वे उसके प्रति अत्यधिक मानसिक पीड़ा और क्रूरता का कारण बन जाएं।

    हाईकोर्ट, फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली पति द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रहा था। उसके द्वारा क्रूरता के आधार पर दायर उसकी तलाक की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि वह उक्त आधार को स्थापित करने में असमर्थ रहा।

    पक्षकारों की शादी 2008 में हुई थी और उनके दो बच्चे हैं- एक बेटा और एक बेटी। दोनों बच्चे प्रतिवादी पत्नी के साथ रह रहे हैं। याचिकाकर्ता पति अक्टूबर, 2014 से अलग रह रहा है।

    यह पति का मामला है कि पत्नी को साधारण चोट पहुंचाने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323 के तहत दोषी ठहराया गया था। हालांकि, स्थिति होने के बावजूद, फैमिली कोर्ट ने मामले के गुण-दोष पर चर्चा करते हुए उक्त घटना को खारिज कर दिया।

    याचिकाकर्ता पति द्वारा यह भी प्रस्तुत किया गया कि पत्नी द्वारा उसके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए हैं कि उसने दहेज की मांग की और वह एक शराबी है। हालांकि इन आरोपों को फैमिली कोर्ट के समक्ष प्रमाणित नहीं किया गया।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि उक्त आरोप न केवल निराधार और झूठे हैं बल्कि उसके साथ मानसिक क्रूरता करने के समान हैं।

    अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा:

    "हमारे विचार में फैमिली कोर्ट ने तथ्यों और कानून की सही ढंग से सराहना की है। वैवाहिक संबंधों में सामान्य ऊंच-नीच की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि यह रिश्ते को खत्म करने का एक कारण नहीं हो सकता। हिंदू विवाह एक संस्कार है और पक्षकारों के दो नाबालिग बच्चें हैं, जिनकी देखभाल करना माता-पिता दोनों की जिम्मेदारी है।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "इसके अलावा, अपीलकर्ता के पिछले आचरण से पता चलता है कि अपीलकर्ता पर शराब पीने का आरोप झूठा नहीं है।"

    केस शीर्षक: हरीश कुमार बनाम सरिता

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