दिल्ली कोर्ट ने सलमान खुर्शीद की पुस्तक 'सनराइज ओवर अयोध्या' के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा से इनकार किया
LiveLaw News Network
18 Nov 2021 10:27 AM IST
दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद द्वारा लिखित पुस्तक 'सनराइज ओवर अयोध्या' के खिलाफ हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर मुकदमे में अंतरिम एकपक्षीय निषेधाज्ञा देने से इनकार कर दिया। वादी ने अपने मुकदमे में पुस्तक के प्रकाशन, बिक्री, प्रसार और वितरण को रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग की थी।
पटियाला हाउस कोर्ट की एसीजे प्रीति परेवा मुकदमे पर सुनवाई करते हुए कहा कि वादी अपने पक्ष में सुविधा का संतुलन स्थापित करने में विफल रहा, इसलिए अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया।
एसीजे प्रीति परेवा ने कहा,
"इसके अलावा, प्रतिवादी नंबर दो और तीन को पुस्तक लिखने/प्रकाशित करने का अधिकार है। वादी यह स्थापित करने में सक्षम नहीं है कि पुस्तक या पुस्तक के कथित "आपत्तिजनक" अंशों से बचने के लिए उसे असुविधा होगी। दूसरी ओर निषेधाज्ञा से प्रकाशकों को कठिनाई होगी और लेखक के भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार में भी कमी आएगी।"
अदालत ने कहा,
"वादी हमेशा किताब के खिलाफ प्रचार कर सकता है। यहां तक कि उन कथित अनुच्छेदों का खंडन भी प्रकाशित कर सकता है, जिससे उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची है।"
मुकदमें में कहा गया कि हिंदुत्व या हिंदू धर्म की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम से करते हुए किताब का एक अंश पढ़कर वादी हैरान रह गया। यह आरोप लगाया गया कि यह न केवल हिंदू की भावनाओं को भड़काने वाला है बल्कि बड़ी संख्या में हिंदू धर्म से संबंधित लोगों की धार्मिक भावनाओं को भी आहत करता है।
उक्त अंश पुस्तक की पृष्ठ संख्या 113 पर है।
इसमें लिखा है, "द केसर स्काई" शीर्षक के साथ पृष्ठ संख्या 113 अध्याय 6 पर पुस्तक में एक अंश में लिखा है कि,
"भारत के साधु-संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिंदुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के ज़रिए दरकिनार किया जा रहा है. आज हिंदुत्व का एक ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है, जो इस्लामी जिहादी संगठनों आईएसआईएस और बोको हराम जैसा है।"
न्यायाधीश का विचार था कि केवल एक अंश की प्रति रिकॉर्ड पर रखी गई है और इस तरह के अंश को उस संदर्भ की व्याख्या करने के लिए बहिष्करण या अलगाव में नहीं पढ़ा जा सकता है जिसमें उक्त बयान दिया गया है।
घटनाक्रम को मॉर्गन स्टेनली मामले पर रखा गया, जहां भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एकतरफा अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करते समय न्यायालय द्वारा पालन किए जाने वाले निम्नलिखित दिशानिर्देश निर्धारित किए,
"स्पष्ट रूप से रिकॉर्ड से यह पता चला कि सीपीसी की धारा 80 के तहत अनिवार्य नोटिस प्रतिवादी नंबर एक (एलजी के माध्यम से दिल्ली के एनसीटी) को नहीं दिया गया और न ही इसे दाखिल करने से छूट के लिए अदालत की अवकाश मांगने वाला कोई आवेदन दायर किया गया। जबकि सभी प्रतिवादियों के खिलाफ राहत मांगी गई है। यह कानून का तय प्रस्ताव है कि जब एक मुकदमा खुद ही चलने योग्य नहीं हो तो ऐसे मामले में अंतरिम निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती है"
तद्नुसार, इस मामले को अब मुकदमे की स्थिरता पर बहस या स्पष्टीकरण के लिए गुरुवार को पोस्ट किया गया।
मुकदमे में कहा गया कि पुस्तक "हिंदू धर्म को गलत तरीके से प्रदर्शित करने का एक प्रयास है।"
यह माना गया कि किताब में इस तरह के बयान सामाजिक अखंडता को नुकसान पहुंचाते हैं और देश और दुनिया भर में रहने वाले लाखों हिंदुओं की भावनाओं को आहत करते हैं।
मुकदमे में कहा गया,
"उत्तर प्रदेश राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यह पुस्तक विमोचन कार्यक्रम यूपी राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव में अल्पसंख्यकों के वोटों का ध्रुवीकरण करने, वोट हासिल करने के लिए और वोटिंग प्रतिशत का ध्रुवीकरण करने के लिए सिर्फ एक खराब प्रचार स्टंट है।"
मुकदमे में आगे यह भी कहा गया,
"भारत का संविधान भारत के प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत दिए गए अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं हैं। उन्हें समाज के हित में सक्षम प्राधिकारी द्वारा प्रतिबंधित किया जा सकता है। यह अधिकार कुछ सीमाओं के साथ आता है और इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए जब यह देश के सद्भाव को खतरे में डालता है और समाज की सद्भवाना की जड़ो को कमजोर करता है।"
यह मुकदमा अधिवक्ता अक्षय अग्रवाल और सुशांत प्रकाश के माध्यम से दायर किया गया।
केस शीर्षक: विष्णु गुप्ता बनाम दिल्ली के एनसीटी राज्य और अन्य।
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