दिल्ली कोर्ट ने पैसे ऐंठने के लिए बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने वाली महिला के खिलाफ लिया एक्शन

Shahadat

3 July 2025 1:49 PM IST

  • दिल्ली कोर्ट ने पैसे ऐंठने के लिए बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराने वाली महिला के खिलाफ लिया एक्शन

    दिल्ली कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने का आदेश दिया, जिसने एक मैरिज वेबसाइट पर मिले व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार का झूठा मामला दर्ज कराया था ताकि उससे पैसे ऐंठने का प्रयास किया जा सके।

    मामले में आरोपी को बरी करते हुए तीस हजारी कोर्ट के एएसजे अनुज अग्रवाल ने कहा कि बरी करने वाला व्यक्ति न्याय के हित में नहीं होगा, क्योंकि कानून को न केवल दोषी को दंडित करना चाहिए, बल्कि एक निर्दोष व्यक्ति की गरिमा की भी रक्षा करनी चाहिए।

    जज ने कहा,

    "हालांकि इस मामले में आरोपी के पक्ष में फैसला आया, लेकिन आरोपों की गूंज अभी भी बनी हुई है, क्योंकि समाज आरोप को याद रखता है, फैसले को नहीं, क्योंकि हमारे सामाजिक परिवेश में झूठा आरोप (बलात्कार/यौन उत्पीड़न का) सामाजिक मानस पर अमिट छाप छोड़ता है, जिसे कोई भी न्यायिक छाप नहीं मिटा सकती।"

    न्यायालय ने कहा कि झूठे बलात्कार के आरोप न केवल भरी हुई फाइलों पर अनावश्यक बोझ डालते हैं, बल्कि वास्तविक बलात्कार पीड़ितों के साथ घोर अन्याय भी करते हैं। इससे बहुमूल्य न्यायिक समय और राज्य के सीमित संसाधनों का हनन होता है।

    यह देखते हुए कि अभियोक्ता ने शपथ लेकर झूठ बोला है, जिससे न्याय के प्रति विश्वास खत्म हो गया, न्यायालय ने उसके खिलाफ झूठी गवाही के अपराध के लिए शिकायत दर्ज करने का आदेश दिया।

    अभियोक्ता ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने वैवाहिक वेबसाइट पर प्रोफाइल के माध्यम से उसके साथ चैट करना शुरू किया और जब वह पहली बार अपनी कार में उससे मिला तो उसने उसका यौन उत्पीड़न किया और उसकी नग्न तस्वीरें तैयार कीं। उसका कहना था कि उसके विरोध करने पर आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया और अगली मुलाकात में उसकी तस्वीरें मिटाने का भी वादा किया। FIR के अनुसार, आरोपी ने एक अन्य मुलाकात में उसके साथ योनि और गुदा मैथुन किया।

    आरोपी को बरी करते हुए जज ने कहा कि पीड़िता की गवाही गुणवत्ता में अच्छी नहीं थी और उसने बलात्कार या छेड़छाड़ की झूठी कहानी गढ़ने के बाद न्यायालय के समक्ष झूठा बयान दिया।

    अदालत ने कहा,

    "मेरे विचार में यदि इन परिस्थितियों को समग्र रूप से देखा जाए तो यह एक ही निष्कर्ष पर पहुंचता है कि यह ऐसा मामला है, जिसमें पीड़िता ने आरोपी को विवाह के बहाने पूर्व-नियोजित तरीके से फंसाया ताकि उससे पैसे ऐंठे जा सकें।"

    जज ने कहा कि उन्हें यह देखकर दुख हो रहा है कि मामले में आरोपी की गिरफ्तारी जांच एजेंसी द्वारा बिना किसी उचित कारण के जल्दबाजी में की गई। वह भी FIR दर्ज होने से पहले, जो कि एसआई और आईओ की गवाही से स्पष्ट है। अदालत ने कहा कि हालांकि आरोपी की गिरफ्तारी के तरीके को महज 'हिरासत' बताकर उचित ठहराने के कमजोर प्रयास किए गए, लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा उसके घर से हिरासत में लिए जाने के क्षण से ही उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगा दिया गया।

    इसके अलावा, जज ने कहा कि SI FIR दर्ज होने से बहुत पहले से ही पीड़िता के साथ लगातार संपर्क में था और उसने 16-17 मौकों पर उससे टेलीफोन पर बातचीत की थी। न्यायालय ने पाया कि बचाव पक्ष की यह दलील कि संबंधित पुलिस अधिकारी, एसआई, आईओ और तत्कालीन एसएचओ, अभियोक्ता के साथ मिलकर आरोपी से धन उगाही कर रहे हैं, उसको हल्के में नहीं लिया जा सकता।

    अदालत ने आगे कहा,

    “हालांकि, इस मामले में कोई भी कार्रवाई दिल्ली पुलिस के योग्य आयुक्त के प्रशासनिक विवेक पर छोड़ दी गई, जो अपने विवेक से मामले को देख सकते हैं। साथ ही उचित सुधारात्मक कार्रवाई कर सकते हैं, ताकि दिल्ली पुलिस बल का आदर्श वाक्य “शांति, सेवा, न्याय” झूठा न साबित हो।

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