दिल्ली की कोर्ट ने एएमयू, जामिया में दिए गए सीएए विरोधी भाषणों के मामले में शरजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह के आरोप तय किए

LiveLaw News Network

24 Jan 2022 10:37 AM GMT

  • दिल्ली की कोर्ट ने एएमयू, जामिया में दिए गए सीएए विरोधी भाषणों के मामले में शरजील इमाम के खिलाफ राजद्रोह के आरोप तय किए

    दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया इलाके में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित मामले में शरजील इमाम के खिलाफ आरोप तय किए।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 153बी (आरोप, राष्ट्रीय-एकता के खिलाफ अभिकथन), 505 (सार्वजनिक दुर्भावना के लिए बयान) के साथ यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा) के तहत आरोप तय किए।

    इमाम पर दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर 22/2020 के तहत मामला दर्ज किया गया था । यूएपीए के तहत कथित अपराध को बाद में जोड़ा गया।

    तर्क

    इमाम की ओर से पेश हुए अधिवक्ता तनवीर अहमद मीर ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था कि इमाम द्वारा दिए गए भाषणों में हिंसा का कोई आह्वान नहीं था और अभियोजन द्वारा लगाए गए आरोप केवल बयानबाजी थे, जिनका कोई आधार नहीं था।

    उन्होंने यह भी कहा था कि सरकार की आलोचना करना राजद्रोह का कारण नहीं हो सकता है और किसी व्यक्ति को पूरी तरह संदेह के आधार पर आरो‌पित नहीं किया जा सकता है।

    अभियोजन पक्ष के इस तर्क का खंडन करते हुए कि इमाम ने अपना भाषण 'अस-सलामु अलैकुम' शब्दों के साथ शुरू किया था, जो यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि यह एक विशेष समुदाय को संबोधित किया गया था, न कि बड़े पैमाने पर, इस पर मीर ने कहा, "क्या अभियोजन पक्ष चार्जशीट वापस ले लेता, अगर शरजील इमाम ने गुड मॉर्निंग, नमस्कार आदि के साथ अपना भाषण शुरू किया होता? बयान बेहद खोखला और खालिश बयानबाजी है।"

    दूसरी ओर, विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने इस तर्क का विरोध किया कि विरोध करने का मौलिक अधिकार उस सीमा से आगे नहीं जा सकता, जिससे जनता को समस्या हो।

    उन्होंने अमित साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया था कि "हमें यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि सार्वजनिक रास्तों पर इस तरह का कब्जा, चाहे वह प्रश्नगत जगह पर हो या कहीं और स्वीकार्य नहीं है और प्रशासन को क्षेत्र को अतिक्रमण या अवरोधों से मुक्त रखने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए।"

    उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कथित राजद्रोही भाषण देकर, इमाम ने भारत की संप्रभुता को भी चुनौती दी और मुसलमानों में 'निराशा और असुरक्षा की भावना' डालने की कोशिश की कि उनके पास देश में कोई उम्मीद नहीं बची है।

    हाल ही में, इमाम को 13 और 14 दिसंबर, 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हुई हिंसा से संबंधित एक मामले में जमानत मिली थी। दूसरी ओर, उन्हें 2019 के एक मामले में जमानत से वंचित कर दिया गया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने भड़काऊ भाषण दिया, जिसके कारण दिल्‍ली में विभिन्न स्थानों पर दिल्ली दंगे हुए।

    Next Story