दिल्ली कोर्ट ने 2012 के कोयला ब्लॉक आवंटन भ्रष्टाचार मामले में पूर्व कोयला सचिव, 4 अन्य को बरी किया

Shahadat

13 Dec 2024 10:12 AM IST

  • दिल्ली कोर्ट ने 2012 के कोयला ब्लॉक आवंटन भ्रष्टाचार मामले में पूर्व कोयला सचिव, 4 अन्य को बरी किया

    दिल्ली कोर्ट ने 2012 के कोयला ब्लॉक आवंटन भ्रष्टाचार मामले में पूर्व कोयला सचिव, 4 अन्य को बरी किया

    दिल्ली कोर्ट ने बुधवार (11 दिसंबर) को पूर्व कोयला सचिव हरीश चंद्र गुप्ता और केंद्रीय कोयला मंत्रालय (एमओसी) के दो अन्य पूर्व अधिकारियों- केएस क्रोफा और केसी समरिया को 2012 के कोयला ब्लॉक आवंटन भ्रष्टाचार मामले के संबंध में सभी आरोपों से बरी किया।

    अदालत ने मेसर्स नवभारत पावर प्राइवेट लिमिटेड (एनपीपीएल) के प्रबंध निदेशक वाई. हरीश चंद्र प्रसाद और इसके अध्यक्ष पी. त्रिविक्रम प्रसाद को भी बरी कर दिया। क्रोफा उस समय संयुक्त सचिव (कोयला) और स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य सचिव थे और समरिया उस समय कोयला मंत्रालय (एमओसी) के सीए-I के निदेशक थे।

    राउज़ एवेन्यू जिला कोर्ट के स्पेशल जज (पीसी अधिनियम) संजय बंसल ने पाया कि अभियोजन पक्ष कोयला मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा आपराधिक कदाचार और आरोपियों के बीच धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश को साबित करने में विफल रहा।

    लोक सेवकों के विरुद्ध कथित अपराधों के संबंध में न्यायालय ने कहा:

    "आरोपी लोक सेवकों द्वारा कथित रूप से किए गए विभिन्न चूक और कमीशन के कृत्यों को उनके द्वारा अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने का दावा करते समय किए गए कृत्य नहीं कहा जा सकता। यह मानते हुए कि वे कृत्य उनके कर्तव्यों के निर्वहन में किए गए तो यह ऐसे लोक सेवकों के रूप में उनकी स्थिति थी, जिसने उन्हें निजी पक्षों के साथ आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने का विकल्प चुनते हुए चूक और कमीशन के ऐसे कृत्य करने का अवसर प्रदान किया। यह नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में या अपने आधिकारिक कर्तव्यों के कथित निर्वहन में ऐसा किया।"

    केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) द्वारा किए गए संदर्भ के आधार पर सितंबर 2012 में आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। CVC ने 2006 से 2009 की अवधि के दौरान निजी कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित करने में कथित भ्रष्टाचार के लिए एमओसी अधिकारियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की। अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि कोयला ब्लॉक प्राप्त करने के लिए एनपीपीएल ने अपने एमडी वाई हरीश चंद्र और अध्यक्ष पी त्रिविक्रम प्रसाद के माध्यम से अपने नेटवर्थ और भूमि के बारे में धोखाधड़ीपूर्ण गलत बयानी की।

    यह आरोप लगाया गया कि इन झूठे दावों/धोखाधड़ीपूर्ण गलत बयानी के बावजूद, एमओसी ने NPPL को कोयला ब्लॉक आवंटित किए। यह आरोप लगाया गया कि आपराधिक साजिश के तहत एमओसी के अधिकारियों ने झूठे दावों की जांच नहीं की और कंपनी को कोयला ब्लॉक के आवंटन में अनुचित लाभ प्राप्त करने में मदद की। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13 के साथ-साथ धारा 120-बी और 420 आईपीसी के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई।

    न्यायालय ने कहा कि NPPL को विभिन्न प्राधिकरणों से विभिन्न अनुमतियां प्राप्त हुईं और उसने कोयला ब्लॉक के विकास के साथ-साथ अपनी बिजली परियोजना को पूरा करने के लिए पर्याप्त प्रगति की। न्यायालय ने कहा कि इन कारकों से पता चलता है कि एनपीपीएल एक सक्षम कंपनी थी और उसे कोयला ब्लॉक आवंटित करना कोई गलत निर्णय नहीं था।

    न्यायालय ने कहा कि चूंकि NPPL एक योग्य आवेदक पाया गया। इसे विद्युत मंत्रालय और उड़ीसा राज्य सरकार द्वारा अनुशंसित किया गया। इसलिए लोक सेवकों को किसी भी अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

    न्यायालय ने कहा,

    "जब आवेदन पूर्ण पाया गया और आवेदक एक योग्य आवेदक पाया गया। आवंटन की अनुशंसा एक ऐसी कंपनी को की गई, जिसके पास विद्युत मंत्रालय और उड़ीसा राज्य सरकार की अनुशंसा थी तो आरोपी लोक सेवकों को किसी भी अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। अपनी ओर से किसी भी चूक के लिए आरोपी लोक सेवक प्रशासनिक रूप से उत्तरदायी हो सकते हैं, लेकिन निश्चित रूप से वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में आपराधिक रूप से उत्तरदायी नहीं हैं।"

    धोखाधड़ी के अपराध पर अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि कोयला ब्लॉक का आवंटन प्राप्त करने के बाद एचसी प्रसाद और त्रिविक्रम प्रसाद ने एनपीपीएल में अपने शेयर बेच दिए और भारी मुनाफा कमाया। आरोप है कि उन्होंने अपने शेयर 231 करोड़ रुपये के संयुक्त मूल्य पर मेसर्स एस्सार पावर लिमिटेड (EPL) को बेचे।

    हालांकि, साक्ष्यों पर गौर करते हुए न्यायालय ने कहा कि NPPL के शेयरों का उच्च मूल्य कोयला ब्लॉक के कारण नहीं था, बल्कि यह विभिन्न अन्य कारकों से जुड़ा हुआ है।

    अभियोजन पक्ष के गवाह के बयान का हवाला देते हुए इसने कहा,

    “जब EPL से संबंधित गवाह खुद ही शेयरों के उच्च मूल्य में योगदान देने वाले कारकों का विवरण दे रहा है, जिन कारकों में कोयला ब्लॉक आवंटन केवल कारक के रूप में और वह भी एक मामूली कारक के रूप में शामिल है तो इस आरोप में धारा 406 आईपीसी के तहत कुछ भी नहीं बचता है। अभियोजन पक्ष ने इस पहलू पर इस गवाह का बिल्कुल भी विरोध नहीं किया। ऐसा लगता है कि उसने उसके बयान को स्वीकार कर लिया। गवाह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि क्रेता कंपनी यानी EPL ने कम से कम दो साल का समय बचाया, क्योंकि NPPL ने पहले ही विभिन्न अनुमतियां प्राप्त कर लीं। समय की इस बचत ने अधिकांश भाग के लिए उच्च मूल्य में योगदान दिया। EPL द्वारा किया गया मूल्यांकन परियोजना का था, न कि केवल कोयला ब्लॉक का।”

    इसने यह भी कहा कि कोयला ब्लॉक के आवंटन के बाद किसी कंपनी के शेयरों की बिक्री पर कोई कानूनी रोक नहीं थी।

    इस प्रकार, इसने माना कि धोखाधड़ी का अपराध नहीं बनता, क्योंकि किसी भी संपत्ति का कोई हस्तांतरण नहीं किया गया।

    इस प्रकार न्यायालय ने सभी आरोपों से 5 आरोपियों को बरी कर दिया।

    केस टाइटल: सीबीआई बनाम वाई. हरीश चंद्र प्रसाद एवं अन्य।

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