दिल्ली कैंट मामला: पीड़िता के माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, एसआईटी जांच, कथित प्रशासनिक चूक की न्यायिक जांच की मांग

LiveLaw News Network

17 Aug 2021 9:58 AM GMT

  • दिल्ली कैंट मामला: पीड़िता के माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, एसआईटी जांच, कथित प्रशासनिक चूक की न्यायिक जांच की मांग

    दिल्ली कैंट इलाके में कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और हत्या का शिकार हुई नौ साल की नाबालिग लड़की के माता-पिता ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की है और अदालत की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग की है। याचिका में प्रशासनिक कार्रवाई में कथित चूक, एफआईआर दर्ज करने में देरी की न्यायिक जांच की भी मांग की गई है।

    एडवोकेट जितेंद्र कुमार झा, सरसीज नयनम और सुरेश कुमार के माध्यम से दायर याचिका पर जस्टिस योगेश खन्ना सुनवाई करेंगे ।

    दक्षिण पश्चिम दिल्ली में दिल्ली छावनी के पास श्मशान घाट के एक पुजारी और तीन कर्मचारियों ने नौ साल की बच्ची के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया था और उसकी हत्या कर दी।

    याचिका में कहा गया है कि मजार में खेल रही नाबालिग पीड़िता पीने के पानी के लिए श्मशान घाट के अंदर गई थी। बाद में जब पीड़िता की मां ने अपनी बेटी की तलाश की तो आरोपितों ने उसे बताया कि पीड़िता की मौत करंट लगने से हुई है।

    याचिका में आरोप लगाया गया है कि आरोप‌ियों ने नाबालिग पीड़िता के माता-पिता को 20,000 रुपये रिश्वत देने की भी कोशिश की।

    "जब याचिकाकर्ताओं ने, जिन्हें न्यायिक प्रणाली में अपार विश्वास है, आरोपी व्यक्तियों की साजिश का शिकार नहीं हुए तो आरोपियों ने जबरदस्ती बेटी के शव को जलती हुई चिता में फेंक दिया।"

    माता-पिता का यह भी आरोप है कि पुलिस का शुरुआती प्रयास मामले को तोड़नेमरोड़ने का था और मामले में समझौता करने के लिए पुलिस ने उन्हें प्रताड़ित किया और उन पर दबाव डाला।

    याचिका में कहा गया है, " यही कारण है कि एफआईआर के पंजीकरण में देरी अपराध की गंभीरता को कम करने की इशारा करता है....।"

    यह कहते हुए कि एसआईटी जांच के माध्यम से सच्चाई का पता लगाया जा सकता है, याचिका में निम्नलिखित सवाल उठाए गए हैं-

    - घटना स्थल से महज एक किलोमीटर की दूरी पर ही थाना था, फिर भी पुलिस देरी से मौके पर क्यों पहुंची?

    - एफआईआर दर्ज करने में क्यों देरी हुई? मामले में समझौता करने के लिए याचिकाकर्ताओं को थाने में प्रताड़ित और धमकी क्यों दी गई?

    - पुलिस अपराध की जगह और अहम सबूतों को बचाने में नाकाम क्यों रही?

    - याचिकाकर्ताओं और उसके गवाहों को सुरक्षा देने में प्रशासन क्यों विफल रहा?

    - आरोप‌ियों की गिरफ्तारी के शुरुआती 9 दिनों में जांच के उद्देश्य से पुलिस उन्हें हिरासत में लेने में विफल क्यों रही?

    प्रशासनिक कार्यों में चूक की एसआईटी जांच और न्यायिक जांच की मांग के अलावा, याचिका में दिल्ली सरकार और पुलिस आयुक्त को माता-पिता और गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए निर्देश देने की भी मांग की गई है।

    दिल्ली पुलिस ने नाबालिग की मां के बयान के आधार पर चार आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। मां ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी के साथ बलात्कार, हत्या और उनकी सहमति के बिना उसका अंतिम संस्कार किया गया था।

    आरोप‌ियों के ख‌िलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 304, 376, 341, 506, 201 और 34 POCSO एक्ट की धारा 6 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

    हाल के दिल्ली की एक अदालत ने CrPC की धारा 357ए के तहत आवेदन करने के बाद पीड़ित परिवार को 2.5 लाख का अंतरिम मुआवजा देने के आदेश दिया है।

    केस शीर्षक: सुनीता और अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य राज्य।

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