'आतंक और आघात का माहौल होने के कारण एआईआर दर्ज करने में देरी उचित': दिल्ली कोर्ट ने दंगों के मामले में चार के खिलाफ आरोप तय किए

LiveLaw News Network

3 Nov 2021 1:43 PM GMT

  • आतंक और आघात का माहौल होने के कारण एआईआर दर्ज करने में देरी उचित: दिल्ली कोर्ट ने दंगों के मामले में चार के खिलाफ आरोप तय किए

    दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में चार लोगों के खिलाफ दंगा करने और विधि विरुद्ध इकट्ठा होने का आरोप तय किया। यह भी देखा गया कि राष्ट्रीय राजधानी में दंगों के बाद आतंक और आघात का माहौल होने के कारण पुलिस को घटना की सूचना देने में पांच दिनों की देरी उचित है।

    अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश वीरेंद्र भट्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 392, 427, 436 और धारा 454 के तहत मोहम्मद शाहनवाज, मो. शोएब, शाहरुख और राशिद के खिलाफ आरोप तय किए।

    कोर्ट ने कहा,

    "इन दंगों के बाद भी कई दिनों तक क्षेत्र में आतंक और आघात का माहौल बना रहा। इन परिस्थितियों में घटना की सूचना पुलिस थाने में देने में पांच दिन की देरी किसी भी विवेकपूर्ण व्यक्ति के लिए उचित प्रतीत होगी और इस पर विचार नहीं किया जा सकता है।"

    अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि पुलिस को रामचरण शर्मा नाम से एक शिकायत मिली थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसके स्वामित्व वाली दो दुकानों को दंगाइयों ने लूट लिया, क्षतिग्रस्त किया और फिर उनमें आग लगा दी। इसलिए इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी।

    अभियोजन पक्ष के मुताबिक सीसीटीवी फुटेज में आरोपी मो. शोएब और शारुख हाथों में लकड़ी का डंडा लिए हुए थे और तोड़फोड़ और पथराव करते नजर आए आ रहे हैं।

    यह भी आरोप लगाया गया कि घटना के बाद दंगाइयों ने घटना स्थल के आसपास लगे अन्य सीसीटीवी कैमरों को क्षतिग्रस्त कर दिया इसलिए कोई अन्य सीसीटीवी फुटेज वीडियो क्लिप प्राप्त नहीं किया जा सका।

    यह प्रस्तुत किया गया कि तीन सार्वजनिक गवाहों के बयानों के साथ-साथ दो पुलिस गवाहों के बयानों के अनुसार, यह स्पष्ट है कि चारों आरोपी दंगा करने वाली भीड़ का हिस्सा थे।

    दूसरी ओर, आरोपी व्यक्तियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि एफआईआर दर्ज करने में पांच दिनों की अस्पष्टीकृत देरी और चश्मदीदों के बयान दर्ज करने में एक महीने से अधिक की देरी की गई इसलिए, उनके बयान पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह सच है कि इस मामले में एफआईआर दर्ज करने में लगभग पांच दिनों की देरी हुई। हालांकि, यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह मामला एक सांप्रदायिक दंगा है, जो 24.02.2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुआ था और 26.02.2020 तक जारी रहा था, जब पुलिस और अर्धसैनिक बल द्वारा स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। प्रत्येक समुदाय के सदस्यों द्वारा दंगा, हत्या, लूटपाट, तोड़फोड़, चल और अचल संपत्तियों को आग लगाने आदि के मामले सामने आए थे।"

    अदालत ने यह भी कहा कि चश्मदीद गवाहों के बयान को केवल इस कारण से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि उनके बयान घटना की तारीख से लगभग एक महीने से अधिक की देरी के बाद दर्ज किए गए।

    न्यायाधीश ने कहा,

    "इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि इन गवाहों के बयान दर्ज करने में देरी जानबूझकर या विरोधाभासी है इसलिए, आरोपी इस मामले में केवल इस मामले में आरोप मुक्त होने का दावा नहीं कर सकता।"

    केस शीर्षक: राज्य बनाम मो. शाहनवाज व अन्य।

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