गाने की धुन पर नाचने और टिकटॉक वीडियो बनाने से जाति विशेष की भावनाएं कैसे आहत हो जाती हैंः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्र‌िम जमानत दी

LiveLaw News Network

9 Nov 2020 9:00 AM GMT

  • गाने की धुन पर नाचने और टिकटॉक वीडियो बनाने से जाति विशेष की भावनाएं कैसे आहत हो जाती हैंः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी को अग्र‌िम जमानत दी

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सोमवार (02 नवंबर) को एक आरोपी मंदीप को अग्र‌िम जमानत दी, जिसने पंडित जगदीश चंदर वत्स के गीत का इस्तेमाल कर टिकटॉक वीडियो बनाया था, जिसके बाद उस अनुसूचित जाति और जनजाति की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था।

    जस्टिस फतेह दीप सिंह की खंडपीठ धारा 482, धारा 438 सीआरपीसी के सा‌थ पढ़ें, के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3 (i) (v) के तहत एफआईआर संख्या 450 दायर की गई थी।

    मामला

    यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने 40/50 साल पहले गुजर चुके पंडित जगदीश चंदर वत्स के लिखे गीत, जिसे रागिनी के रूप में गाया जाता है, को बैकग्राउंड में इस्तेमाल कर ‌टिकटॉक वीडियो बनाया था और उसमें डांस किया था। शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि गीत ने अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के लोगों की भावनाओं को आहत किया है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने केवल गाने की धुन पर नृत्य किया है और न तो लेखक / रचनाकार हैं और न ही जाति की भावनाओं को आहत करने के लिए कोई कार्य किया है और कुछ भी बरामद नहीं किया जाना है।

    सरकारी वकील ने तथ्यात्मक स्थिति पर सवाल नहीं किया, लेकिन इस आधार पर जमानत का पुरजोर विरोध किया कि एससी / एसटी एक्ट के अनिवार्य प्रावधानों के तहत आरोपी-याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।

    आदेश

    कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता न तो लेखक/रचनाकार है और न ही उस गीत का संगीत तैयार किया है, जिसे 40/50 साल पहले उस व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया था, जिसकी मृत्यु हो चुकी है। न्यायालय का विशिष्ट सवाल था कि गाने की धुन पर केवल नृत्य करने और एक वीडियो तैयार करने से जाति विशेष की भावनाएं कैसे आहत हो जाती हैं, यह एक ऐसा सवाल है जो बहस का विषय है और जिस पर केवल मुकदमे के समय ही फैसला हो सकता है। "

    कोर्ट ने आगे कहा,"याचिकाकर्ता के पास से कुछ भी बरामद नहीं किया गया है। एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (i) (v) के प्रावधानों की प्रयोज्यता उसके बाद ही तय की जाएगी। याचिकाकर्ता को सलाखों के पीछे भेजना न्याय का मजाक होगा।"

    उपरोक्त परिदृश्य में वर्तमान याचिका की अनुमति दी गई थी। यह निर्देश दिया गया था कि गिरफ्तारी की स्थिति में, याचिकाकर्ता को धारा 173 सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट प्रस्तुत करने तक गिरफ्तारी/ जांच अधिकारी की संतुष्टि पर जमानत पर रिहा किया जाएगा।(चालान)।

    याचिकाकर्ता को आगे जांच में शामिल होने का निर्देश दिया गया और कहा गया कि उसे जब भी बुलाया जाए, वह आए और धारा 438 (2) सीआरपीसी के तहत निर्दिष्ट शर्तों का पालन करे। इसके बाद, चालान की प्रस्तुति करने के बाद, याचिकाकर्ता को ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए नियमित जमानत बांड प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाएगी।

    याचिकाकर्ता को आदेश की प्रति प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर जांच में शामिल होने का निर्देश दिया गया था। इस तरह याचिका का निपटारा कर दिया गया।

    केस टाइटिल- मंदीप बनाम हरियाणा राज्य [सीआरएम नंबर एम-30185 ऑफ 2020 (ओ एंड एम)]

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