करंट लगने से मौतः मद्रास हाईकोर्ट ने TENGEDCO के खिलाफ कठोर दायित्व का सिद्धांत लागू किया, मुआवजे का आदेश
LiveLaw News Network
3 Nov 2020 7:22 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को 22 साल के एक लड़के के माता-पिता को मुआवजा देने का आदेश दिया। लड़के की मृत्यु एक टूटे हुए तार पर पैर रखने के बाद करंट लगने से हुई थी।
जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की खंडपीठ ने तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (TANGEDCO) को शोक संतप्त परिवार को 13,86,000 रुपए का मुआवजा देने और मृतक के भाई को अनुकंपा आधार पर कनिष्ठ सहायक की नौकरी देने का आदेश दिया।
यह आदेश महत्वपूर्ण है, कारण यह है कि कोर्ट ने करंट से मौत के मामले में मुआवजे के भुगतान के संबंध में एक अनूठी विधि अपनाई है और यहां तक यथास्थिति बहाली के लिए दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर अनुकंपा रोजगार देने का भी आदेश दिया है।
जस्टिस स्वामीनाथन ने अदालत में मृत लड़के के पिता को देखकर स्वतः संज्ञान से मामला लिया। पिता अदालत में याचिका लेकर आया था। पूछताछ पर, यह पता चला कि उसने रजिस्ट्रार (न्यायिक), मदुरै बेंच, मद्रास हाईकोर्ट को एक पत्र याचिका भेजकर न्याय की मांग की थी।
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, "उनके पास कलेजा नहीं था कि वह दुख में डूबे पिता से कहते कि वह एक वकील से सलाह से ले और हाईकोर्ट में उचित तरीके से रिट याचिका दायर करे या सिविल कोर्ट के समक्ष मुआवजे के लिए मुकदमा दायर करे।"
यह कहते हुए जस्टिस स्वामीनाथन ने आगे कहा, "मुझे 2013 (2) एमएलजे 302 (अरुलमेरी बनाम अधीक्षण अभियंता, टीएनईबी) में दिए गए फैसले की याद आ गई, जिसमें यह आधिकारिक रूप से कहा गया था कि जब मृतक की गलती न थी और बिजली के तार गिरने से मौत हुई थी तो आश्रित को सिविल कोर्ट में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है, और रिट कार्यवाही में राहत दी जा सकती है।"
आदेश में सामने आए तथ्यों के अनुसार, 22 साल का सरवनन आम रास्ते से घर लौट रहा था, जब वह एक लटकते हुए तार के संपर्क में आ गया, जिसमें बिजली दौड़ रही थी, और करंट के कारण उसकी मौके पर ही मौत हो गई।
TANGEDO ने अदालत को बताया कि दुर्घटना ईश्वरीय कार्य है, कारण यह है कि गिलहरी की आवाजाही के कारण तार टूट गया था।
"गिलहरी बिजली के खंभे पर चढ़ने और तारों के साथ छेड़खानी करने के लिए जानी जाती हैं। इस मामले में, ऐसा करते समय प्रतीत होता है कि गिलहरी की पूंछ वी-क्रॉस आर्म को छू गई। जिसके कारण तार में करंट दौड़ गया, जिसे फॉल्ट करंट के रूप में जाना जाता है। चूंकि लाइन ज्यादा लोड सहन नहीं कर सकती थी, इसलिए टूट गई। टूटा तार सीधे जमीन पर गिर गया थी, फीडर ट्रिप हो गया होगा और बिजली की आपूर्ति भी बंद हो गई होगी। लेकिन तब, यह कारुवेलम की झाड़ियों पर गिर गया, जो नीचे उगी हुई थीं।"
जज ने मामले में "अपने विवेक की संतुष्टि के लिए" मौके पर मुआयना भी किया और उनका भी मत था कि यह घटना गिलहरी के हस्तक्षेप के कारण हुई थी।
उन्होंने देखा कि बिजली के खंभे पर गिलहरी से सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं था। जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा, "अगर गिलहरी से सुरक्षा के उपाया किए गए होते, तो शायद यह घटना टल सकती थी।"
उन्होंने आगे कहा, "अगर बिजली की लाइनों के नीचे कारुवेलम की झाड़ियों को काट दिया गया होता और हटा दिया गया होता तो शायद टूटा हुआ तार सीधे जमीन पर गिर सकता था और फीडर ट्रिप हो जाता, जिससे बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती। लेकिन ये जीवन की "अगर-मगर" है। परिस्थितियों पर समग्र रूप से विचार करते हुए, मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि त्रासदी पूरी तरह से ईश्वर का कार्य है और TANGEDCO को ऐसी किसी भी लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है।"
हालांकि, न्यायालय के समक्ष यह प्रश्न था कि क्या उस आधार पर, TANGEDCO को उसके दायित्व से मुक्त किया जा सकता है?
जस्टिस स्वामीनाथन ने कहा कि ...."कठोर दायित्व" के सिद्धांत को लागू करके सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम शैल कुमारी एंड अन्य (2002) 2 एससीसी 162 में कहा था, "यदि इस प्रकार संचारित हुई ऊर्जा से किसी व्यक्ति की चोट लगती है या मृत्यु हो जाती है, जो अनजाने में इसमें फंस जाता है, पीड़ित को क्षतिपूर्ति करने का प्राथमिक दायित्व बिजली आपूर्तिकर्ता पर है......यह प्रबंधन बोर्ड की ओर से कोई बचाव नहीं है कि किसी ने अपनी निजी संपत्ति में ऐसी बिजली निकालकर शरारत की है और यह कि इस तरह की डायवर्टेड लाइन से इलेक्ट्रोक्यूशन होता है।
आपूर्ति प्रणाली के प्रबंधकों की चौकसी है कि आवश्यक उपकरणों को स्थापित करके इस प्रकार के नुकसान को रोके। किसी भी कीमत पर, यदि जिंदा तार टूट गया हो और सड़क पर गिर गया हो तो बिजली का करंट स्वतः ही बाधित हो जाना चाहिए। ऐसे खतरनाक वस्तुओं की सुरक्षा करने वाले अधिकारियों के पास इस तरह के हादसों को रोकने के लिए अतिरिक्त उपाय करने का अतिरिक्त कर्तव्य है।"
इस मिसाल के आधार पर, अदालत ने TANGEDCO को मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह माना गया था कि इस तरह के मामलों में देय मुआवजा मोटर दुर्घटना मामलों के हर्जाने की गणना के लिए लागू फार्मूला को लागू करके निर्धारित किया जा सकता है। इस मामले में 13,86,000 रुपए के रूप में गणना की जाती है।
इस पर खंडपीठ ने कहा, "मैं इस पर रोक नहीं लगा सकता।"
कोर्ट ने कंपनी को अनुकंपा आधार पर शोक संतप्त माता-पिता के दूसरे बेटे को नौकरी देने का आदेश दिया।
मामले में वेल्लोर सिटीजन वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1996) 5 SCC 647 पर भरोसा रखा गया, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रदूषणकर्ता न केवल प्रदूषण के शिकार लोगों को मुआवजा दे, बल्कि मूल पर्यावरण को बहाल करने की लागत भी वहन करे।
कोर्ट ने कहा, "मौजूदा मामले में यही प्रस्ताव समानता के माध्यम द्वारा लागू किया जा सकता है। यह पर्याप्त नहीं है कि TANGEDCO मुआवजे के लिए एक निश्चित राशि का भुगतान करता है। याचिकाकर्ता के परिवार पर टूटी त्रासदी को किसी भी रूप में ठीक नहीं किया जा सकता है।"
केवल दूसरे बेटे को रोजगार की पेशकश करके, स्थिति में काफी हद तक सुधार किया जा सकता है।"
अंत में, बेंच ने TANGEDCO को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि भविष्य में इस तरह के भयावह दुर्घटनाएं न हों।
"बेशक, पक्षी से होने वाली दुर्घटनाओं या चूहों या गिलहरियों की छेड़छाड़ के खिलाफ कोई अभेद्य ढाल नहीं हो सकती है। लेकिन TENGDCO एक व्यापक सुरक्षा ऑडिट कर सकता है। बिजली के खंभे और ट्रांसमिशन लाइनों के नीचे की झाड़ियों को साफ किया जा सकता है। वे युवा वैज्ञानिकों के लिए पुरस्कारों की घोषणा कर सकते हैं कि वे कोर्ट को सुझाव दें कि तार टूटने पर फीडर कैसे खुद ट्रिप कर जाएं।"
केस टाइटिल: जी सेंधाट्टिकालिपांडियन बनाम पुलिस इंस्पेक्टर व अन्य
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