साइबर क्राइम चिंताजनक दर से बढ़ रहे हैं: दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील का फोन हैक करने और उससे पैसे ठगने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार किया
Shahadat
20 Sept 2023 12:06 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि आज के डिजिटल युग में साइबर क्राइम चिंताजनक दर से बढ़ रहे हैं। ऐसे अपराध न तो अपनी वैश्विक पहुंच के कारण सीमा प्रतिबंधों से बंधे हैं, न ही वे अपने पीड़ितों के बीच भेदभाव करते हैं।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि साइबर क्राइम बुजुर्गों, युवाओं, व्यवसायों के साथ-साथ डिजिटल परिदृश्य में सरकारों को भी निशाना बना रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा,
"साइबर क्राइम के परिणाम व्यक्तिगत सीमाओं से परे जाते हैं, जो कई अनजान पीड़ितों को प्रभावित करते हैं।"
अदालत ने दक्षिण पूर्वी दिल्ली के साइबर पुलिस स्टेशन में व्यक्ति के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। एफआईआर वकील द्वारा की गई शिकायत के आधार पर दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि एक कॉलर ने उसका मोबाइल हैक कर लिया और उससे 50,000 रुपये की धोखाधड़ी की।
आरोपी का मामला यह था कि एफआईआर में उसके खिलाफ किसी अपराध का खुलासा नहीं किया गया, क्योंकि उसमें उल्लिखित कोई भी मोबाइल नंबर उसका नहीं है।
उन्होंने यह भी दलील दी कि अभियोजन पक्ष की स्टेटस रिपोर्ट में यह बताने के लिए कुछ भी नहीं है कि कथित अपराध करने का उनका कोई इरादा था और इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि यह मामला किसी वाणिज्यिक लेनदेन या साधारण दुष्कर्म से उत्पन्न महज निजी विवाद के दायरे से परे है।
अदालत ने कहा,
“एफआईआर को पढ़ने से, जिसके विवरण पर पहले ही पिछले पैराग्राफ में चर्चा की जा चुकी है, प्रथम दृष्टया साइबर-क्राइम/धोखाधड़ी के कमीशन का पता चलता है, जिसके तहत शिकायतकर्ता के बैंक अकाउंट से बातचीत के दौरान गुप्त रूप से राशि डेबिट की गई। इस मामले में एक व्यक्ति ने खुद को कस्टमर सर्विस ऑफिसर के रूप में पेश किया, जिसने शिकायतकर्ता को मोबाइल नंबर से कॉल किया था।''
जस्टिस शर्मा ने कहा कि अब तक की जांच से पता चला है कि भारी मात्रा में रुपये मिले हैं। आरोपी के बैंक अकाउंट में 28.17 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं और यह जांच की जानी है कि क्या पैसा ऐसे अवैध और धोखाधड़ी वाले तरीकों से प्राप्त किया गया है और क्या इस तरह की साइबर धोखाधड़ी के अन्य पीड़ित भी हैं।
अदालत ने कहा,
"इस तरह के आरोपों की गंभीरता को कम नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे न केवल वित्तीय भुगतान गेटवे/प्लेटफॉर्म पर व्यक्तियों की वित्तीय सुरक्षा और विश्वास को खतरे में डालते हैं, बल्कि संभावित रूप से व्यापक जनता को भी इसी तरह के खतरों से अवगत कराते हैं।"
अदालत ने कहा कि न तो एफआईआर में आरोप बेतुके या असंभव हैं और न ही यह माना जा सकता है कि आरोपी के खिलाफ किसी अपराध का खुलासा नहीं किया गया।
अदालत ने कहा,
“इसलिए अपराध की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए अभियुक्तों द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली को एफआईआर की सामग्री से स्पष्ट किया जा सकता है, जो साइबर-धोखाधड़ी के कमीशन की ओर इशारा करता है। इस तरह की साइबर-धोखाधड़ी में और अधिक पीड़ितों के फंसने की संभावना है, जिसके लिए जांच एजेंसी द्वारा जांच की जा रही है। यह अदालत वर्तमान एफआईआर रद्द करना उचित नहीं समझती है, क्योंकि जांच पूरी नहीं हुई है और आरोपपत्र भी अभी तक तैयार और दायर नहीं किया गया है।”
याचिकाकर्ता की ओर से वकील मलक मनीष भट्ट और अनन्या के पेश हुए।
एएससी अमोल सिन्हा एडवोकेट क्षितिज गर्ग, अश्विनी कुमार और छवि लाजर के साथ राज्य की ओर से पेश हुए।