''हिरासत में लेकर पूछताछ करना आवश्यक है'' : बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी को ट्रिपल तलाक देने के आरोपी को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

6 Nov 2020 12:10 PM GMT

  • हिरासत में लेकर पूछताछ करना आवश्यक है : बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी को ट्रिपल तलाक देने के आरोपी को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार किया

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले महीने पत्नी को ट्रिपल तलाक देने के आरोपी एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पर अपनी पत्नी को धमकाने के अलावा उसके निजी अंगों में रॉड डालने के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसलिए याचिकाकर्ता को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता है।

    न्यायमूर्ति एसवी कोतवाल एक अब्राहिम लकड़ावाला की तरफ से दायर पूर्व गिरफ्तारी याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 377, 498ए, 323, 504, 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 और मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 3 व 4 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अंबोली पुलिस स्टेशन में एक मामला दर्ज किया गया था।

    केस की पृष्ठभूमि

    शिकायतकर्ता पत्नी के अनुसार, याचिकाकर्ता ने पहले भी दो बार शादी की थी। उनकी पहली पत्नी से उनके पांच बच्चे थे। पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद, उसने दूसरी पत्नी से शादी कर ली और परंतु बाद में उसे भी तलाक दे दिया। शिकायतकर्ता महिला ने याचिकाकर्ता से 7 सितंबर, 2018 को शादी की थी। उस समय, उसकी माँ ने उसे 15 तोला सोना दिया था और शादी के दौरान 3.5 लाख रुपये खर्च किए थे। प्राथमिकी में आगे उल्लेख किया गया है कि याचिकाकर्ता ने पहले अपनी इस पत्नी/शिकायतकर्ता को कुछ नशीला पेय दिया और उस स्थिति में कुछ तस्वीरें ली और उसकी वीडियो भी बनाई। इतना ही नहीं याचिकाकर्ता ने अक्टूबर, 2018 में उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए। उसने अपने निजी अंगों में एक एल्यूमीनियम रॉड ड़ाल दी थी,जिसके कारण उसे रक्तस्राव भी हुआ था।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता इस शादी से कोई बच्चा नहीं चाहता था और उनके बीच झगड़ा भी हुआ था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि, याचिकाकर्ता उसे प्रतािड़त करता था और उससे कहता था कि वह अपने माता-पिता के घर से पैसे लाए। यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता को 4.8 लाख रुपये दिए भी गए थे,परंतु उसके बाद भी वह उससे मारपीट करता था।

    3 जून, 2020 को, याचिकाकर्ता के पिछले विवाह से पैदा हुई उसकी बेटी उनके साथ रहने के लिए आई थी। उस समय, याचिकाकर्ता ने उससे कहा था कि वह घर के सारे काम कर ले,जब उसने ऐसा करने से इनकार किया तो याचिकाकर्ता ने उसके साथ मारपीट की। उसी दिन, आवेदक ने उसे तलाक दे दिया। जिसके बाद वह अपने माता-पिता के घर चली गई। उसने उसे धमकी दी थी कि वह सभी वीडियो और तस्वीरें वायरल कर देगा। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने उसके फोन नंबर को ब्लाॅक कर दिया। इस आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    दलीलें

    याचिकाकर्ता अभियुक्त की ओर से अधिवक्ता मिस्बाह सोलकर उपस्थित हुए और तर्क दिया कि प्राथमिकी झूठे आरोपों पर आधारित है। शिकायतकर्ता पत्नी ने याचिकाकर्ता की दो नाबालिग बेटियों के साथ मारपीट की और वह उन्हें हमेशा परेशान करती थी। मार्च, 2020 में भी शिकायतकर्ता ने एक नाबालिग बेटी के साथ मारपीट की थी, लेकिन उस समय, एनसी दर्ज नहीं करवाई गई थी।

    दूसरी तरफ, अधिवक्ता आदिल खत्री सूचना देने वाली पत्नी के लिए पेश हुए और अर्जी का विरोध किया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप बिल्कुल सही हैं। जहां तक मार्च 2020 की घटना का सवाल है, तो उनकी मुविक्कल ने उसी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। इसके बाद भी वह याचिकाकर्ता के साथ रहती रही क्योंकि वह अपनी शादी बचाना चाहती थी।

    याचिकाकर्ता ने ट्रिपल तलाक दिया है। अब, शिकायतकर्ता को एक शक्तिशाली व्यक्ति द्वारा धमकी दी जा रही है जो याचिकाकर्ता को जानता है। इस प्रकार पीड़ित पर दबाव डालने का प्रयास किया गया है।

    कोर्ट का आदेश

    कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 (सी) पर विचार किया और कहा कि-

    ''इस विशेष मामले में, मुझे वर्तमान याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत देने के लिए कोई उचित आधार नहीं मिला है। प्राथमिकी में आरोप काफी गंभीर हैं। याचिकाकर्ता के वकील ने यह दावा किया है कि शिकायकर्ता पत्नी ने उसकी नाबालिग बेटियों को परेशान किया था। याचिककार्ता ने उन्हें शिकायतकर्ता से बचाया था और इसलिए यह झूठी प्राथमिकी दर्ज करवाई गई है। यह बचाव है जिसे मामले की सुनवाई के दौरान स्थापित किया जा सकता है। शिकायतकर्ता पत्नी के वकील की यह दलील भी अनुचित नहीं है कि उसने अपनी शादी को बचाने के लिए कुछ समय के लिए यह सब उत्पीड़न सहन किया।

    आरोपों की गंभीरता को देखते हुए, याचिकाकर्ता अग्रिम जमानत की सुरक्षा के लायक नहीं है। याचिकाकर्ता ने उसे उसके माता-पिता के घर पर छोड़ दिया था। जिसके बाद उसका नंबर ब्लॉक कर दिया था। यह उन आरोपों को पुष्ट करता है कि, उसने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अवैध रूप से शिकायतकर्ता को तलाक दे दिया था। शिकायतकर्ता के निजी अंगों में रॉड डालने के गंभीर आरोप हैं। यह भी आरोप हैं कि अश्लील तस्वीरें और वीडियो रिकॉर्ड किए गए। इसके लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में लेकर पूछताछ करने की आवश्यकता है। इस मामले में, याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती है।''

    आदेश की काॅपी यहां से डाउनलोड करें



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