16 साल के लड़के की हिरासत में मौत का मामला : बॉम्बे हाईकोर्ट ने पीड़ित के पिता को 5 लाख रुपये मुआवजा दिया
LiveLaw News Network
16 Dec 2020 10:30 AM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने हाल ही में उस 16 वर्षीय लड़के के पिता को 5 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, जिसकी मार्च, 2016 में शिरडी पुलिस स्टेशन में हिरासत के दौरान मौत हो गई थी।
न्यायमूर्ति तानाजी वी नलवाडे और न्यायमूर्ति श्रीकांत डी कुलकर्णी की खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि यह शिरडी पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों के हाथों हिरासत में मौत का मामला था।
कोर्ट के समक्ष मामला
याचिकाकर्ता (मृतक लड़के के पिता) ने अपने बेटे किरण रोकडे की हिरासत में मौत होने के मामले में 10 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की थी।
साथ ही मांग की गई थी कि राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह किरण की हिरासत में मौत के मामले में संबंधित दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें और एफ.आई.आर. में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत अपराध को जोड़ा जाए। वहीं दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के लिए पुलिस अधीक्षक, अहमदनगर को निर्देश दिया जाए।
याचिकाकर्ता के अनुसार, मार्च 2016 में, सुबह लगभग 11.00 बजे, मंदिर सुरक्षा पुलिस अधिकारियों ने उसके बेटे किरण को पिक-पॉकेटिंग के संदेह में पकड़ा था और उसके बाद, शिरडी पुलिस स्टेशन के अधिकारियों ने उसे बेरहमी से पीटा और मार डाला। किरण केवल 15 साल का था और उसे गिरफ्तार करके हिरासत में नहीं रखा जा सकता था। किरण के माता-पिता या रिश्तेदारों को उसकी कस्टडी के बारे में सूचित नहीं किया गया था।
यह भी आरोप लगाया गया था कि संबंधित रजिस्टर में कोई प्रविष्टि नहीं थी, कोई गिरफ्तारी पंचनामा नहीं किया गया था, सी.सी.टी.वी. कैमरों को जानबूझकर बंद कर दिया गया था और शव को अस्पताल ले जाया गया और उसके बाद संबंधित अधिकारी भाग गया।
बार-बार प्रार्थना करने के बाद 12 दिसम्बर 2016 को भारतीय दंड संहिता की धारा 342 व 306 रिड विद 34 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अपराध संख्या 235/2016 दर्ज की गई थी और मामले की जांच उप-पुलिस अधीक्षक, सी.आई.डी. नासिक को सौंपी गई थी।
अदालत को यह सूचित किया गया कि याचिकाकर्ता के बेटे की हिरासत में मौत के संबंध में उपरोक्त पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया है।
कोर्ट का आदेश
उपर्युक्त तथ्यात्मक परिदृश्य के संबंध में, न्यायालय ने उल्लेख किया कि यह स्पष्ट है कि किरण रोकडे की पुलिस लॉक अप में मौत हो गई थी और इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि उसकी मौत कस्टडी डेथ की श्रेणी में आती है।
अदालत ने आगे कहा कि उन्हें इस बात पर विचार करने की जरूरत नहीं है कि क्या किरण रोकडे की मौत मनुष्य वध थी या खुदकुशी थी और इस तरह की हिरासत की मौत के लिए कौन-कौन पुलिस अधिकारी जिम्मेदार थे क्योंकि आपराधिक कानून अपना काम कर रहा है और मामले में आरोप पत्र दायर हो चुका है।
यह देखते हुए कि शीर्ष अदालत ने डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य के मामले में जो दिशानिर्देश जारी किए थे,संबंधित पुलिस स्टेशन अधिकारी और उसके अधीन काम करने वाले पुलिस अधिकारियों ने उन दिशानिर्देश का पूरी तरह से उल्लंघन किया है। अदालत ने कहा,
'' क्या किरण रोकडे नाबालिग था,इसका निर्णय करने के लिए उसकी उम्र के बारे में कोई जांच नहीं की गई थी? उसे सीधा लॉक अप में डाल दिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप दुर्भाग्य से उसकी हिरासत में मौत हो गई।''
अदालत ने आगे टिप्पणी की,
''राज्य उक्त मुआवजे के लिए जिम्मेदार है। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन का मामला है। याचिकाकर्ता ने बहुत कम उम्र में अपने बेटे किरण को खो दिया है, जो जिदंगी में लंबे समय तक उसकी मदद कर सकता था।''
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,
''कस्टडी डेथ हमेशा सभी सभ्य समाजों के लिए बहुत चिंता का विषय रही है। उन पुलिस अधिकारियों के बीच बड़े स्तर पर संवेदनशीलता होनी चाहिए, जिनके पास व्यक्तियों को गिरफ्तार करने व उनको हिरासत में रखने का अधिकार होता है।''
बेटे की हिरासत में मौत हो जाने के मामले में याचिकाकर्ता को दी जाने वाली मुआवजे की राशि का आकलन करने के उद्देश्य से, न्यायालय ने सरला वर्मा (श्रीमती) व अन्य बनाम दिल्ली परिवहन निगम व अन्य (2009) एससीसी 121 के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया।
कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जो गुणक प्रति वर्ष की अनुमानित आय पर लागू होता है उसे एक मार्गदर्शक कारक के रूप में माना जाना चाहिए।
अंत में, कोर्ट ने कहा कि बदकिस्मत पिता/ याचिकाकर्ता की मांग को स्वीकारते हुए उसे 5 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने की आवश्यकता है।
न्यायालय ने राज्य को निर्देश दिया है कि वह 45 दिनों के भीतर कोर्ट में पांच लाख रुपये मुआवजे की राशि जमा करा दें।
केस का शीर्षक - अशोक कोंडाजी रोकडे बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य,आपराधिक रिट याचिका संख्या 1548/2016
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