काले रंग के कारण पत्नी पर किया गया अत्याचार धारा 498 ए के तहत अपराध हैः कलकत्ता हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

30 Jun 2020 3:21 AM GMT

  • काले रंग के कारण पत्नी पर किया गया अत्याचार धारा 498 ए के तहत अपराध हैः कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि पति और ससुराल वालों द्वारा डार्क कॉम्प्लेक्सन के कारण पत्नी के खिलाफ क्रूरता करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए के तहत अपराध माना जाएगा।

    अदालत ने पत्नी की हत्या के मामले एक व्यक्ति की सजा को बरकारार रखते हुए कहा, "ससुराल वालों द्वारा शादी के बाद भी मृतक पीड़िता के साथ उसके काले रंग के कारण क्रूरता करना, निश्चित रूप से आरोपी पति सहित ससुराल वालों के खिलाफ धारा 498A/ 34 IPC आकर्षित करेगा।"

    जस्टिस साहिदुल्लाह मुंशी और सुभासिस दासगुप्ता की खंडपीठ शादी के लगभग 7 महीने बाद पीड़िता की मौत के मामले में पति और उसके परिवार के सदस्यों की सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई की।

    पीठ ने कहा कि मृतक पीड़िता को यातना देने का कारण उसका ब्लैक कॉम्प्लेक्शन था, पीठ ने धारा 498/302/ 34 के तहत मजीदुल मिया @ मिया और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले में दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा।

    हालांकि अदालत ने मृतक की सास को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया, लेकिन धारा 498 ए आईपीसी के तहत घरेलू क्रूरता के दोष में उसकी सजा बरकरार रखी।

    "स्थापित तथ्य यह है कि पीड़िता की शादी के सात महीने के भीतर अप्राकृतिक मौत हुई। प‌ीड़ित की ऐसी अप्राकृतिक मौत ससुराल में हुई थी। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि काले रंग के कारण पीड़ित को ससुराल में उत्पीड़न किया गया, उसे प्रताड़ना दी गई। पीड़िता को पति की दूसरी शादी कराने के लिए वैवाहिक घर से बाहर निकालने की धमकी दी गई।"

    'यह सामान्य आचरण है कि माता-पिता बेटी को भविष्य की खातिर यातना, क्रूरता की अनदेखी करने के लिए तैयार करना पसंद करते हैं'

    पीठ ने कहा, "इस मामले की शुरुआत में, यह उल्लेख किया गया है कि त्वरित मामला दहेज की मांग पर आधारित नहीं है। मृतक की मृत्यु का कारण, जैसा कि परीक्षण के दौरान अभियोजन द्वारा स्थापित किया गया था, ब्लैक कॉम्प्लेक्शन के संबंध में व्यक्त किए गए अभियुक्त व्यक्तियों का असंतोष था।"

    उच्च न्यायालय के फैसले ने रिकॉर्ड किया कि पीड़ित, 20 वर्षीय लड़की की आरोपी / अपीलकर्ता सं एक से मोहम्मडन संस्कारों और रीति-रिवाजों के अनुसार 16 अक्टूबर1997 को शादी हुई, जिसमें ग्यारह हजार रुपए की नकदी देने की मांग को पूरा किया गया, साथ ही एक हीरो साइकिल और अन्य कीमती सामान के साथ चांदी के गहने दिए गए।

    अपने वैवाहिक घर में जाने के बाद, पीड़िता को ससुराल वालों के हाथों क्रूरता, उत्पीड़न और बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा, जिसमें उसका अभियुक्त पति भी शामिल था। उसे ससुराल वाले प्यार नहीं करते थे, और अक्सर धमकी दी जाती थी कि आरोपी पति उसकी शादी को रद्द करके, उसे वैवाहिक घर से बाहर निकालने के तुरंत बाद दूसरी शादी कर लेगा।

    अपनी शादी के तीन दिन बाद, उसे एक गाय के शेड में रहने को कहा गया था। आरोपी पति ने उसे साइकिल की चेन से से पीटा।

    कोर्ट ने कहा,

    "हालांकि यह तर्क दिया गया था कि अभियोजन मामले को इस आधार पर नहीं माना जा सकता है कि पीड़ित पर क्रूरता होने, और क्रूरता का कारण जानने के बाद भी, पीड़ित के माता-पिता ने कभी भी पुलिस स्टेशन या पंचायत को रिपोर्ट नहीं किया, और मृतक पीड़ित के ससुराल के आस-पास रहने वाले पड़ोसियों ने भी नहीं किया, हालांकि यह अपरिहार्य नियम नहीं हो सकता है कि माता-पिता अपनी बेटी के ऊपर क्रूरता होने की बात जानने के तुरंत बाद पारस्परिक सुलह की संभावना को नजरअंदाज करते हुए, शिकायत दर्ज करेंगे। यह सामान्य है कि माता-पिता अपनी बेटी को भविष्य को देखते हुए यातना को अनदेखा करने के लिए राजी करेंगे।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "यह एक ऐसा मामला है, जहां पीडब्ल्यू -1 / पीड़िता के पिता 15-16 कट्ठा कृषि भूमि के मालिक हैं, जो उनकी आजीविका का सा‌धन है। स्वाभाविक रूप से, पिता के पास अपनी बेटी को ससुराल में दोबारा बसाने के लिए सबसे अच्छा विकल्प था कि वह उसे भविष्य की संभावना को देखते हुए अत्याचार, दुर्व्यवहार, क्रूरता की अनदेखी करने के लिए समझाते। और यह पीडब्लू -1 द्वारा अपनी बेटी को मनाने के लिए किया भी गया था।

    हत्या के मुकदमे में हथियार पेश न कर पाने से ऑटोप्सी सर्जन की का बयान खार‌िज नहीं होगा

    पीठ ने उल्लेख किया कि मौजूदा मामले में, पीड़िता शिकायतकर्ता की दूसरी बेटी ‌थी, जिसकी ससुराल में फांसी लगाकर मौत हो गई। घर के उत्तर में स्थित दक्षिण मुख वाले कमरे में सामान्य रूप से मृतक और उसके आरोपी पति शादी करने के बाद रहते थे।

    "हमें पीडब्लू -7 (ऑटोप्सी सर्जन) की गवाही में शामिल किए गए सबूतों पर ध्यान देना नहीं भूलना चाहिए कि जब्त शव को ऑटोप्सी सर्जन को दिखाया गया था, जो एस्कॉर्टिंग पुलिस ने पोस्टमार्टम परीक्षण के लिए दिया था। बेंच ने कहा कि ऑटोप्सी सर्जन के साक्ष्य जिरह में भी अबा‌‌धित रहा।"

    साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 पर पुनर्विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि चूंकि पीड़िता की मृत्यु ससुराल में हुई थी, जहां पीड़िता और उसके पति ने नियमित रूप से रहते ‌थे। इसलिए धारा 106 को देखते हुए कि जब कोई तथ्य विशेष रूप से किसी व्यक्ति की जानकारी में हो तो उसे उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है। पीड़िता को ससुराल के घर के उत्तर स्थित कमरे में फांसी पर लटकाया गया, जिसमें आमतौर पर मृतक उसका आरोपी पति रहता था। वर्तमान मामले में आरोपी पति अपनी पत्नी को लगी चोटों के बारे में कोई स्पष्टीकरण देने में असफल रहा है, जिसका अर्थ यह है कि पीड़ित की मृत्यु आरोपी पति की मौजूदगी में हुई है।"

    पीठ ने कहा कि मृतक पीड़िता को उसके ससुराल के एक कमरे में अप्राकृतिक रूप से मौत का सामना करना पड़ा है, जिसमें पति का दाय‌ित्व है कि वह मौत के कारणों का स्पष्टीकरण या तो धारा 313 सीआरपीस के तहत बयान दिया जाए या धारा 233 सीआपीसी के तहत स्वतंत्र रूप से सबूत जोड़कर बचाव किया जाए।

    अदालत ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों आरोपी पति / अपीलकर्ता के अपराध की ओर इशारा कर रहे हैं, कि उसने पीड़िता के काले रंग के कारण गला दबाकर उसकी हत्या कर दी।

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