'सम्मानजनक प्रतिनिधित्व' देने के लिए ट्रांसजेंडर पुलिस कर्मियों के लिए अलग यूनिट बना रहे हैंः बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के समक्ष बताया

LiveLaw News Network

26 Feb 2021 7:15 AM GMT

  • सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने के लिए ट्रांसजेंडर पुलिस कर्मियों के लिए अलग  यूनिट बना रहे हैंः बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के समक्ष बताया

    यह कहते हुए कि सरकार ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित लोगों को 'सम्मानजनक प्रतिनिधित्व' देने के लिए प्रतिबद्ध है, बिहार सरकार ने हाल ही में पटना हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया है कि वह ट्रांसजेंडर पुलिस कर्मियों के लिए जिला एसपी के अधीन जिला स्तर पर एक स्पेशल यूनिट(ट्रांसजेंडर) नाम से अलग यूनिट बनाने जा रही है।

    यह दलील मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ के समक्ष बिहार सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव अमीर सुभानी द्वारा दायर एक हलफनामे के माध्यम से दी गई थी।

    गौरतलब है कि राज्य सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि,

    "सार्वजनिक रोजगार में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व देने का उद्देश्य ट्रांसजेंडरों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के साथ-साथ उनके मनोबल को बढ़ावा देना है और इस तरह उन्हें समाज को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के लिए प्रेरित करना है। इससे ट्रांसजेंडर्स के प्रति समाज की धारणा को बदलने में भी मदद मिलेगी।''

    इसके अलावा, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया है कि चूंकि बिहार में ट्रांसजेंडर की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 0.039 प्रतिशत है, इसलिए ट्रांसजेंडर के लिए एक अलग बटालियन बनाना उचित नहीं माना गया है।

    जिला स्तर पर स्पेशल यूनिट (ट्रांसजेंडर) के रूप में नामित ट्रांसजेंडर पुलिस कर्मियों की एक अलग यूनिट बनाने का निर्णय राज्य सरकार ने इस तथ्य के मद्देनजर लिया है क्योंकि राज्य में ट्रांसजेंडर समुदाय की आबादी कम है।

    हलफनामे में कहा गया है कि, ''इस बात की संभावना है कि पुलिस के कांस्टेबल और सब इंस्पेक्टर की नियुक्ति के लिए ट्रांसजेंडर समुदाय के योग्य उम्मीदवारों की संख्या कम ही होगी।''

    कोर्ट का अवलोकन

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि 14 दिसंबर को राज्य को एक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की याद दिलाते हुए, पटना हाईकोर्ट ने बिहार राज्य से कहा था कि वह ट्रांसजेंडर समुदाय को कांस्टेबल के पद के लिए आवेदन करने में सक्षम बनाए।

    इसके अलावा, हाल ही में बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट को सूचित किया था कि 14 जनवरी, 2021 को जारी की गई अधिसूचना के अनुसार सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित व्यक्तियों को कांस्टेबलों/उप-निरीक्षकों के पद की नियुक्ति में आरक्षण प्रदान करने का निर्णय लिया है।

    सरकार द्वारा अपनाए गए रुख की सराहना करते हुए, न्यायालय ने कहा कि,

    ''भले ही, यूनिट छोटी है, लेकिन यह इस समुदाय से संबंधित व्यक्तियों की पहचान को स्वीकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिनकी कुल आबादी लगभग चालीस हजार है, जो बिहार की कुल जनसंख्या का 0.039 प्रतिशत हैं।''

    न्यायालय के समक्ष यह भी प्रस्तुत किया गया कि जल्द से जल्द और अधिक से अधिक तीन महीने के अंदर ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों के चयन और नियुक्ति की आवश्यकता केंद्रीय चयन बोर्ड कांस्टेबल को भेज दी जाएगी।

    अंत में, न्यायालय ने उम्मीद जताई कि सरकार इनके मामले में भी सबसे कम शुल्क वसूलने के उसी तंत्र को अपनाएगी जो आरक्षित वर्ग से संबंधित उम्मीदवारों के लिए निर्धारित है।

    अन्य हाईकोर्ट के उल्लेखनीय आदेश

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में पश्चिम बंगाल राज्य के मुख्य सचिव को ट्रांसजेंडर (अधिकारों के संरक्षण) अधिनियम 2019 की धारा 11 के संदर्भ में राज्य में शिकायत निवारण फोरम और तंत्र स्थापित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने याचिकाकर्ता के एक वायरल वीडियो के कारण याचिकाकर्ता (एक प्रमोद कुमार शर्मा) की नियुक्ति को रद्द करने के आदेश को खारिज कर दिया था।

    न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने उल्लेख किया कि काउंटर एफिडेविट (उस अधिकारी द्वारा दायर किया गया था, जिसने रद्द करने का आदेश पारित किया था) में याचिकाकर्ता की यौन अभिविन्यास को किसी अनुपयुक्त गतिविधि में लिप्त बताया गया था।

    यह रेखांकित करते हुए कि ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज के अन्य लिंगों के समान दर्जा दिया जाना आवश्यक है, कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्देश जारी किया था कि संयुक्त सीएसआईआर-यूजीसी-एनईटी परीक्षाओं के सभी स्तरों पर ट्रांसजेंडरों को आरक्षण और अन्य लाभ तुरंत प्रदान किए जाएं।

    इसके अलावा, यह देखते हुए कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को मान्यता प्राप्त होने का अधिकार देता है और इस तरह के ट्रांसजेंडर को अपनी समझ के लिंग पहचान का अधिकार है, बॉम्बे हाई कोर्ट (औरंगाबाद बेंच) ने शनिवार (02 जनवरी) को एक ट्रांसजेंडर को एक महिला उम्मीदवार के रूप में ग्राम पंचायत चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी थी।

    न्यायमूर्ति रवींद्र घुगे की खंडपीठ ने अंजलि गुरु संजना जान द्वारा दायर उस याचिका को स्वीकार कर दिया था,जिसमें उसने रिटर्निंग अधिकारी द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी। इस अधिकारी ने ग्राम पंचायत चुनावों के लिए उसके नामांकन को खारिज कर दिया था।

    इसके अलावा, केंद्र ने हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया था कि ट्रांसजेंडर को अब राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा तैयार की गई जेल सांख्यिकी रिपोर्ट में एक अलग लिंग श्रेणी के रूप में शामिल किया जाएगा।

    वहीं केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि ''व्यक्ति को वैध अधिकार से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता क्योंकि वह एक ट्रांसजेंडर है।''

    न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की थी,जिसमें एक ट्रांसवोमन ने राष्ट्रीय कैडेट कोर अधिनियम, 1948 की धारा 6 को चुनौती देते हुए उसे अवैध और भारत के संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 21 के खिलाफ बताया था।

    केस का शीर्षक - पल्लबी चक्रवर्ती बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य,[W.P.A. 3962 of 2021]

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