कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा, अदालतों को महिलाओं की सुरक्षा के मामले में महाभारत के भगवान श्री कृष्ण के रूप में कार्य करना चाहिए : बलात्कार के दोषी की अपील खारिज

LiveLaw News Network

11 Sep 2020 4:11 PM GMT

  • कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा,  अदालतों को महिलाओं की सुरक्षा के मामले में महाभारत के भगवान श्री कृष्ण के रूप में कार्य करना चाहिए : बलात्कार के दोषी की अपील खारिज

    पीढ़ी-दर-पीढ़ी महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय की अनुमति देने के लिए अदालत मूक दर्शक की तरह काम नहीं कर सकती, यह कहते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक दोषी की तरफ से दायर अपील को खारिज कर दिया है। उसने एक 69 वर्षीय महिला के साथ बलात्कार किया था।

    न्यायमूर्ति बी वीरप्पा व न्यायमूर्ति ईएस इंदिरेश की खंडपीठ ने कहा कि न्यायालयों को महिलाओं की सुरक्षा की रक्षा करने के लिए महाभारत के भगवान श्री कृष्ण के रूप में कार्य करना चाहिए।

    श्रीमद्भगवद् गीता के एक श्लोक का जिक्र करते हुए, पीठ ने कहा किः

    "हालांकि भारतीय दंड संहिता 1860 को अधिनियम 45 द्वारा अधिनियमित किया गया था और स्वतंत्रता के 74 वर्षों के बाद भी महिलाएं कानून का उल्लंघन करने वाले अपराधियों से अभी भी सुरक्षित नहीं हैं। अब समय की मांग है कि अदालतों को महिलाओं की सुरक्षा की रक्षा करने के लिए गार्जियन के रूप में कार्य करना चाहिए और धर्म की रक्षा करनी चाहिए, जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपेक्षित किया गया है और बलात्कारियों सहित कानून के उल्लंघनकर्ताओं के साथ सख्ती व गंभीरता से निपटना चाहिए। अदालतों को धर्म की रक्षा के लिए महाभारत के भगवान श्री कृष्ण की तरह काम करना चाहिए।''

    अदालत ने रिकॉर्ड पर आए साक्ष्यों और अभियुक्त के कबूलनामे पर विचार करते हुए कहा कि अभियुक्त का एक वृद्ध महिला पर यौन हमला करने का कार्य ''क्रूर जानवर'' जैसा है। अदालत ने कहा कि पीड़िता के पोते की उम्र के समान अभियुक्त ने कैसे उसके साथ यौन संबंध बनाने के बारे में सोचा? क्या उसने एक बार भी उसकी 69 साल की उम्र के बारे में विचार नहीं किया? यह बात पूरी तरह से अदालत की समझ से परे है।

    दोषी की तरफ से दायर अपील को खारिज करते हुए पीठ ने आगे यह भी कहा किः

    ''इस स्तर पर यह बताना प्रासंगिक है कि,''बलात्कार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत पीड़िता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसलिए,''न्यायालयों को ऐसे मामलों से सख्ती और गंभीरता से निपटना चाहिए।'' यौन हिंसा, एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा , एक महिला की निजता और पवित्रता के अधिकार में एक गैरकानूनी घुसपैठ भी है।"

    ''यह महिला के सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर आघात है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को भी प्रभावित करता है'', ''यह पीड़िता को अपमानित करता है और एक दर्दनाक अनुभव को अपने पीछे छोड़ जाता है'',''एक बलात्कारी केवल शारीरिक चोट ही नहीं पहुंचाता है बल्कि एक महिला की अभिलषित प्रतिष्ठा पर गहरे निशान छोड़ देता है, यानी उसकी गरिमा, सम्मान, इज्जत और पवित्रता।''

    बलात्कार केवल एक महिला के खिलाफ अपराध नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के खिलाफ अपराध है। यह बुनियादी मानवाधिकारों के खिलाफ एक अपराध है और भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सबसे अधिक पोषित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन करता है। अभियुक्त ने अपनी वासना को संतुष्ट करने के लिए पीड़िता की उम्र की परवाह किए बिना ही उससे बलात्कार किया था और वह इस अपराध के लिए दोषी पाया गया है। ''एक महिला का शरीर एक आदमी के खेलने की वस्तु नहीं है और वह अपनी वासना को संतुष्ट करने के लिए इसका लाभ नहीं उठा सकता है। वहीं समाज ऐसी चीजों को अब और बर्दाश्त नहीं करेगा।''

    इस प्रकार, पीठ ने अपील को खारिज कर दिया और दोषी को दी गई सात साल के सश्रम कारावास की सजा को बरकरार रखा।

    केस का विवरण-

    केस का नाम- नागेश बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर-आपराधिक अपील नंबर 397/ 2015

    कोरम-जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस ईएस इंदिरेश

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