चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी दूसरे पुलिस स्टेशन में जांच ट्रांसफर करने के लिए अदालत की मंजूरी की आवश्यकता नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट
Sharafat
25 Sep 2023 12:31 PM GMT
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोप पत्र (Chargesheet) दाखिल होने के बाद भी किसी मामले की जांच दूसरे थाने की पुलिस को ट्रांसफर की जा सकती है और इसके लिए संबंधित अदालत से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस उमेश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह भी कहा कि न्यायालय द्वारा किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के बाद भी पहले प्रस्तुत की गई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस किसी मामले में आगे की जांच करने के लिए स्वतंत्र है।
पीठ ने कहा,
“ सीआरपीसी की धारा 173 (8) में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह बताए कि अदालत ऐसे किसी भी निर्देश से पहले आरोपी को सुनने के लिए बाध्य है। न्यायालय पर इस तरह के किसी भी दायित्व को डालने से केवल उस पर सुनवाई के अवसर के साथ सभी संभावित आरोपियों की तलाश करने का बोझ पड़ेगा।''
इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने आरोपी द्वारा आईपीसी की धारा 147, 149, 323, 452, 435, 504 और धारा 506 के तहत देवरिया में एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष लंबित मामले की कार्यवाही को रद्द करने के लिए दायर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन को खारिज कर दिया।
अभियुक्तों का मामला यह था कि इस मामले में पहले थाना बनकटा के थानाध्यक्ष ने मामले की जांच की थी और 5 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए प्रक्रिया जारी की थी।
हालांकि बाद में शिकायतकर्ता द्वारा मामले को पुलिस स्टेशन बनकटा से पुलिस स्टेशन कोतवाली, सलेमपुर में स्थानांतरित करने के लिए एसपी देवरिया के समक्ष एक आवेदन दायर किया गया था (इस कारण से कि बनकटा पीएस द्वारा जांच ठीक से नहीं की गई थी) और इस आवेदन को अनुमति दी गई और पुनः जांच का आदेश दिया गया।
इसके बाद कोतवाली, सलेमपुर के एसआई ने मामले की दोबारा जांच की और आवेदकों सहित आठ लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिस पर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लिया। आरोपी ने इससे व्यथित होकर हाईकोर्ट का रुख किया और कहा कि जांच ट्रांसफर करने से पहले एसपी द्वारा कोई अनुमति नहीं मांगी गई, जबकि वह अनुमति लेने के लिए बाध्य थे।
कोर्ट ने श्री भगवान समरधा श्रीपाद वल्लभ वेंकट विश्वानंद महाराज बनाम स्टेट ऑफ एपी 1999 और एनपी झारिया बनाम स्टेट ऑफ एमपी 2007 के मामलों में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यदि आगे की जांच की आवश्यकता है तो वह की जा सकती है और निश्चित रूप से इसे कानून द्वारा निर्धारित अनुसार किया जाना चाहिए और न्यायालय द्वारा किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के बाद भी पहले प्रस्तुत की गई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर पुलिस आगे की जांच करने के लिए स्वतंत्र है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि न्यायालय द्वारा संज्ञान लिया गया है और मुकदमे के दौरान जांच में कोई खामी सामने आती है तो परिस्थितियों की अनुमति होने पर इस खामी को आगे की जांच से दूर किया जा सकता है।
नतीजतन, उपरोक्त चर्चा के आधार पर, न्यायालय का विचार था कि जांच को किसी अन्य पुलिस स्टेशन के किसी अन्य जांच अधिकारी को ट्रांसफर करने से पहले एसपी देवरिया के लिए संबंधित अदालत की कोई औपचारिक अनुमति आवश्यक नहीं थी।
इस प्रकार यह आवेदन खारिज कर दिया गया।
अपीयरेंस
आवेदक के वकील: नीरज सिंह
विपक्षी के वकील : सरकारी वकील केएन मिश्रा, आरके शाही
केस टाइटल - राम कोमल और दो अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य 2023 लाइव लॉ (एबी) 348 [सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन नंबर - 12417/2005
ऑर्डर पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें