अदालतों में सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियां आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
21 Aug 2022 8:00 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रिट याचिका को खारिज करते हुए कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत अदालतों में सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियां प्राप्त नहीं की जा सकतीं।
जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन ने कहा कि चूंकि हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए नियमों के तहत आवेदन दाखिल करके मामलों की सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियां प्राप्त की जा सकती हैं, आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों को बहाल नहीं किया जाएगा।
"चूंकि याचिकाकर्ता द्वारा मामलों की सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियां अभ्यास के नियमों के तहत आवेदन दाखिल करने पर प्राप्त की जा सकती हैं, आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का सहारा नहीं लिया जाएगा।"
याचिकाकर्ता ने जन सूचना अधिकारी के समक्ष सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें दिसंबर 2021 से अप्रैल 2022 के बीच मामलों की सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियां मांगी गई थीं, जिसे खारिज कर दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि मांगी गई सूचना प्रति आवेदन प्रस्तुत करने पर प्राप्त किया जा सकता है और यह सूचना न्यायालय की वेबसाइट, न्यायालय के नोटिस बोर्ड और जिला न्यायालय के कियोस्क में भी उपलब्ध है।
अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष आरटीआई अधिनियम की धारा 19(2) के तहत याचिकाकर्ता द्वारा की गई अपील को भी खारिज कर दिया गया था, यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी न्यायिक कार्यवाही से संबंधित है और सूचना के अधिकार ( अधीनस्थ न्यायालय और अधिकरण) नियम, 2006 के नियम 12 के अनुसार हाईकोर्ट ने राज्य के सभी अधीनस्थ न्यायालयों को निर्देश दिया है कि उक्त अधिनियम के तहत किसी भी न्यायिक कार्यवाही से संबंधित किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं किया जाएगा।
याचिकाकर्ता एडवोकेट एमपी चोथी ने इससे व्यथित होकर एक रिट याचिका दायर की और सूचना का अधिकार (अधीनस्थ न्यायालय और न्यायाधिकरण) नियम, 2006 के नियम 12 को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि उक्त प्रावधान मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसकी याचिकाकर्ता को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और अधिनियम के प्रावधानों के तहत गारंटी दी गई है।
जब मामला न्यायालय के सामने आया, तो नियम के प्रावधानों पर विचार करने के बाद न्यायालय ने देखा कि सूचना का अधिकार (अधीनस्थ न्यायालय और न्यायाधिकरण) नियम, 2006 के प्रावधान केरल हाईकोर्ट (सूचना का अधिकार) नियम, 2006 के समान हैं और हाईकोर्ट द्वारा आरटीआई अधिनियम की धारा 28 की उप-धारा (1) के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में तैयार किया गया और मामलों की सिविल और आपराधिक पोस्टिंग की 'ए' डायरी की प्रतियों, जिसका याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया है, न्यायिक कार्यवाही से संबंधित है और सूचना के लिए इस तरह के आवेदन पर नियमों के तहत विचार नहीं किया जा सकता है।
न्यायालय ने ध्यान में रखा कि पीआईओ ने याचिकाकर्ता को सूचित किया था कि उसके द्वारा मांगी गई जानकारी न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है और मुख्य सूचना आयुक्त बनाम गुजरात हाईकोर्ट और एक अन्य, जिसमें न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया है। यह माना गया कि जब हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए नियमों के तहत प्रदान किए गए तंत्र के माध्यम से जानकारी प्राप्त की जा सकती है, तो उक्त तंत्र को संरक्षित और पालन किया जाना चाहिए और आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का सहारा नहीं लिया जाएगा।
न्यायालय ने पाया कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 235 के साथ पठित आरटीआई अधिनियम की धारा 28 की उप-धारा (1) के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए केरल हाईकोर्ट ने सूचना का अधिकार (अधीनस्थ न्यायालय और अधिकरण) नियम, 2006 बनाया है।
न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट द्वारा बनाए गए तीन नियम, यानी, आपराधिक अभ्यास के नियम, केरल, 1982, सिविल रूल्स ऑफ प्रैक्टिस, केरल 1971 और सूचना का अधिकार (अधीनस्थ न्यायालय और न्यायाधिकरण) नियम 2006 सूचना प्रस्तुत करने का तरीका प्रदान करते हैं और आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हैं।
इस प्रकार कोर्ट ने तदनुसार याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल: एमपी चोथी बनाम रजिस्ट्रार जनरल और अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 437
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