दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा, जुर्माने के भुगतान में चूक की सजा भुगतने के दौरान कैदी सजा में छूट का हकदार नहीं

LiveLaw News Network

8 July 2021 5:37 AM GMT

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा, जुर्माने के भुगतान में चूक की सजा भुगतने के दौरान कैदी सजा में छूट का हकदार नहीं

    Delhi High Court

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि एक दोषी सजा की छूट का हकदार नहीं है, जब वह दिल्ली जेल नियमों की योजना के तहत जुर्माने का भुगतान नहीं करने पर सजा काट रहा है।

    जस्टिस मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार की अधिसूचना के अनुसार कैदियों की रिहाई के लिए आपातकालीन पैरोल का अनुदान, सजा की छूट की प्रकृति का था और पैरोल के मामले में सजा का निलंबन मात्र नहीं था।

    कोर्ट ने उक्त टिप्‍प‌‌ण‌ियां एक दोषी की याचिका पर विचार करते हुए की, जिसमें उसकी मूल सजा पूरी होने और जुर्माना के भुगतान में चूक के मद्देनजर रिहाई की मांग की गई थी।

    याचिकाकर्ता को धारा 363 आईपीसी और POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत 24 अक्टूबर 2019 को दिए गए फैसले में 7 साल के कठोर कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी, जिसमें चूक पर POCSO एक्ट के तहत 2 महीने का साधारण कारावास की सजा दी गई थी। उन्हें आईपीसी की धारा 363 के तहत एक साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई गई थी।

    दिल्ली सरकार ने 23 मार्च 2020 की अधिसूचना के तहत एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था, जिसने आपातकालीन पैरोल पर बंदियों को रिहा करने का निर्देश दिया था।

    उक्त निर्देशों के अनुसरण में याचिकाकर्ता को पिछले वर्ष 22 अगस्त को 8 सप्ताह के लिए आपातकालीन पैरोल दी गई थी।

    इस साल की शुरुआत में, दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने 8 जनवरी 2021 के आदेश के तहत आपातकालीन पैरोल पर रिहा किए गए सभी दोषियों को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया था क्योंकि आपातकालीन पैरोल को आगे नहीं बढ़ाया गया था। इसलिए याचिकाकर्ता ने 21 फरवरी 2021 को आत्मसमर्पण कर दिया।

    याचिकाकर्ता की दलील ‌थी कि चूंकि दिल्ली सरकार की अधिसूचना में कहा गया है कि पैरोल की अवधि को उसकी मूल सजा की स्थिति में, जो पिछले साल 27 दिसंबर को पूरी हुई थी, लेकिन जुर्माने के भुगतान में चूक करने पर अभी भी सजा भुगत रहा था, की अवधि के रूप में गिना जाएगा, उसे 27 फरवरी 2021 को रिहा किया जाना चाहिए था....।

    याचिकाकर्ता की यह भी दलील थी कि उक्त याचिका को प्राथमिकता देते हुए तिहाड़ जेल अधीक्षक ने अपना समय लिया और याचिका को लंबित रखा, जिसे 9 अप्रैल को सूचीबद्ध किया गया।

    जेल अधीक्षक की ओर से दायर जवाब का अनुसरण करते हुए, अदालत ने कहा कि हालांकि याचिका को तुरंत अदालत में अग्रेषित नहीं करने में कोई दुर्भावना नहीं थी, फिर भी अधीक्षक की एक त्रुटि यह थी कि उन्होंने याचिका को अपने पास लंबित रखा और इसे शीघ्रता से दायर नहीं किया।

    यह राय देते हुए, अदालत ने इस मुद्दे पर विचार किया कि क्या याचिकाकर्ता द्वारा आपातकालीन पैरोल पर बाहर बिताई गई अवधि को न केवल मूल सजा के लिए गिना जा सकता है, बल्कि जुर्माना के भुगतान में चूक की सजा के लिए भी गिना जा सकता है।

    दिल्ली सरकार की 27 मार्च 2020 की अधिसूचना का विश्लेषण करते हुए, न्यायालय ने कहा, "इस प्रकार यह स्पष्ट है कि दिल्ली सरकार ने 27 मार्च, 2020 के आदेश के तहत, COVID-19 के कारण उत्पन्न आकस्मिक स्थिति पर विचार करते हुए और दिल्ली जेल नियमों के नियम 1212 ए के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कुछ श्रेणियों के कैदियों को रिहा करने का निर्णय लिया और आपातकालीन पैरोल की अवधि को कैदियों की सजा के लिए गिना जाएगा। आपातकालीन पैरोल की अवधि को समय-समय पर बढ़ाया गया था और विस्तार देने के आदेश में उल्लेख किया गया था कि आपातकालीन पैरोल की अवधि की गणना कैदियों की सजा के रूप में की जाएगी ।"

    कोर्ट ने दिल्ली जेल नियमों के तहत छूट के प्रावधानों पर भी भरोसा किया और निष्कर्ष निकाला, "इस प्रकार सरकार द्वारा आपातकालीन पैरोल देने की अधिसूचना से यह स्पष्ट है कि रिहाई छूट की प्रकृति में थी....और पैरोल के मामले में केवल सजा का निलंबन नहीं था। नियम स्पष्ट रूप से निर्धारित करते हैं कि एक अपराधी जुर्माने के भुगतान में चूक करने पर सजा में छूट का हकदार नहीं है।"

    "इस प्रकार याचिकाकर्ता के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क कि याचिकाकर्ता को आपातकालीन पैरोल पर जुर्माने के भुगतान में चूक में पर्याप्त सजा मिली थी, को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"

    इस प्रकार कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

    शीर्षक: वीरेंद्र बनाम जीएनसीटीडी राज्य

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