दोषी की खुद की नाबालिग बेटी, पुनर्वास की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 4 साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के दोषी को दी गई मौत की सजा घटाई
Avanish Pathak
17 Jun 2022 3:00 PM IST
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में 4 साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के लिए दोषी एक व्यक्ति की मौत की सजा को घटा दिया। कोर्ट ने कहा चूंकि दोषी खुद नाबालिग लड़की का पिता है, इसलिए उसके पुनर्वास की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
जस्टिस सुबोध अभयंकर और जस्टिस एसके सिंह ने अपीलकर्ता की मौत की सजा को 20 साल के कारावास में बदल दिया।
मामला
मामले के तथ्य यह थे कि मृतक के माता-पिता ने अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। खोजबीन करने पर मृतक का शव एक जर्जर बंगले में मिला। आगे की जांच के बाद पुलिस ने अपीलकर्ता को पकड़ लिया, जिसने अपना अपराध कबूल कर लिया। उसने पुलिस के सामने स्वीकार किया कि जब बच्ची सो रही थी, तब वह उसे ले गया था और उसके साथ बलात्कार किया था। वह चिल्ला रही थी, इसलिए उसे उसे मार डाला था।
निचली अदालत ने उसे धारा 363, 366-ए, 376एबी, 376ए, 302,201 आईपीसी और धारा 5 (एम), 6 पॉक्सो एक्ट के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया और मृत्युदंड की सजा सुनाई। फैसले को पुष्टि के लिए ऊपरी न्यायालय को संदर्भित किया गया था। दोषसिद्धि के फैसले को चुनौती देते हुए मौजूदा अपील पेश की गई थी।
अपीलकर्ता ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि मामला विशुद्ध रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित था और उसे सीसीटीवी फुटेज के कारण झूठा फंसाया गया था, जिसमें उसकी पहचान को स्पष्ट रूप से सत्यापित नहीं किया जा सकता था।
उसने कहा कि उसे गई मौत की सजा भी कठोरतम सजा है, जबकि उसका मामला 'दुर्लभतम से दुर्लभ' श्रेणी में नहीं आता था।
उसने तर्क दिया कि उसकी कम उम्र को देखते हुए उसके पुनर्वास की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है, इसलिए, अगर अदालत इस नतीजे पर पहुंचती है कि उसकी सजा में कोई हस्तक्षेप जरूरी नहीं है तो उसकी मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला जा सकता है।
सजा कम करने का पुरजोर विरोध करते हुए राज्य ने तर्क दिया कि मृतक चार साल की लड़की थी, जिसका पूरा जीवन उसके आगे था, जिसे अपीलकर्ता ने अपनी कामुक मानसिकता के कारण मार डाला।
पक्षों की दलीलों और निचली अदालत के रिकॉर्ड की जांच करते हुए कोर्ट ने कहा कि गवाहों की गवाही से कुछ भी ठोस नहीं निकाला जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा, डीएनए सबूत स्पष्ट रूप से अपीलकर्ता की संलिप्तता का संकेत देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के प्रासंगिक निर्णयों का विश्लेषण करते हुए कोर्ट ने कहा कि क्रूरता के लिए निर्धारित मापदंड को देखते हुए, मामले को 'दुर्लभतम से दुर्लभ' के दायरे में लाना बेहद मुश्किल है। कोर्ट ने कहा कि एक उचित अवधि में निष्पादित नहीं की गई मौत की सजा अपना प्रभाव खो देती है।
मामले को समग्र रूप से देखते हुए, कोर्ट ने अपीलकर्ता की दोषसिद्धि की पुष्टि की, हालांकि उसे मृत्युदंड के बजाय बीस साल की सजा देना उचित माना। तदनुसार संदर्भ का निर्णय लिया गया और अपील को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया।
केस शीर्षक: संदर्भ में (मध्य प्रदेश) बनाम अंकित विजयवर्गीय एस, जुड़े मामलों के साथ
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