मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत संविदा कर्मचारी भी लाभ पाने के हकदार : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
18 July 2020 9:30 AM IST
एक महत्वपूर्ण फैसले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि मातृत्व अवकाश का लाभ संविदा कर्मचारियों को भी उपलब्ध है, जिसमें सेवा की निरंतरता सहित सभी अहम लाभ शामिल हैं।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर ने इस मामले में संविदा या अनुबंध के आधार पर ईसीएचएस क्लिनिक में कार्यरत एक चिकित्सा अधिकारी की तरफ से दायर याचिका को स्वीकार कर लिया है।
पीठ ने कहा कि-
''भले ही, वह संविदा आधार पर लगी हुई थी, फिर भी उसे मातृत्व अवकाश का लाभ देने से इंकार करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के हितकारी उद्देश्य के उल्लंघन के समान होगा।''
इस मामले में 'दिल्ली नगर निगम बनाम महिला श्रमिक व अन्य, 2000 (3) (एससीसी) 224' मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर विश्वास किया गया। जो मातृत्व अवकाश के हक के संबंध में ''स्पष्ट जनादेश'' देता है अर्थात जो दैनिक वेतन या आकस्मिक आधार पर कार्यरत महिला कर्मचारियों को भी मातृत्व अवकाश का लाभ देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि-
''जो महिलाएं हमारे समाज के लगभग आधे हिस्से का गठन करती हैं उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए और उन स्थानों पर सम्मान के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए जहां वे अपनी आजीविका कमाने के लिए काम करती हैं। उनके कर्तव्यों की प्रकृति कुछ भी हो,उनका पेशा कुछ भी हो या कोई भी स्थान हो, जहां वो काम करती हैं। उनको वह सब सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए, जिनकी वो हकदार हैं।
... अधिनियम के तहत लाभ उन महिला (मस्टर रोल) कर्मचारियों को प्रदान किया जाना चाहिए जो निगम की कर्मचारी है और दैनिक मजदूरी पर काम कर रही हैं।''
हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी महिला पर उसके रोजगार के कर्तव्य पूरे करने के लिए उस समय भी ''दबाव'' ड़ाला जाता है,जब वह उस चरण में हो जहां वह अपने गर्भ में एक बच्चे को पाल रही है और उसे उसके पेशे का काम पूरा करने के लिए सुविधाएं भी नहीं दी जाती है। तो ऐसे में यह माना जाता है कि एक गर्भवती महिला की सेवाओं का लाभ उठाने की जिद करने से गर्भस्थ शिशु अपनी '' मां के काम की प्रकृति से बुरी तरह से प्रभावित'' होता है। दूसरी ओर यदि महिला काम से अनुपस्थित रहती है और उसे वेतन नहीं मिलता है तो इससे भी गर्भस्थ शिशु में ''पोषण की कमी होगी क्योंकि उसकी मां को कोई मजदूरी नहीं दी जा रही है।''
इस पर पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि-
''निस्संदेह, इन सबका प्रभाव भू्रण के स्वास्थ्य पर पड़ेगा और यह फिर से संवैधानिक रूप से मां व उसके भ्रूण को मिले जीवन के अधिकार के उल्लंघन को उजागर करेगा। पूर्वोक्त परिदृश्य में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जनादेश की रक्षा के लिए मातृत्व अवकाश का लाभ रिट याचिकाकर्ता को देने से मना नहीं किया जा सकता है। भले ही वह अनुबंध के आधार पर लगी हुई थी। "
विशेष रूप से केरल हाईकोर्ट ने दो फैसलों - रासिथा सी एच बनाम केरल राज्य और राखी पी वी बनाम केरल राज्य में माना है कि अनुबंधित या संविदा कर्मचारी भी मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत लाभ पाने के हकदार हैं।
इसी तरह के तथ्य पर अन्य हाईकोर्ट के फैसले ,जो अनुबंधित /अस्थायी कर्मचारियों को राहत देते हैं। इस प्रकार हैं-
-एनिमा गोयल बनाम हरियाणा राज्य कृषि विकास निगम (2007) - पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट।
-नीतू चैधरी बनाम राजस्थान राज्य व अन्य (2008) - राजस्थान हाईकोर्ट।
-डॉ दीपा शर्मा बनाम उत्तराखंड राज्य (2016) - उत्तराखंड हाईकोर्ट।
-मीनाक्षी राव बनाम राजस्थान राज्य व अन्य (2017) - राजस्थान हाईकोर्ट।
-अर्चना पांडे बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2017) - मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- डॉ मनदीप कौर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स।
केस नंबर-सीडब्ल्यूपी नंबर 1400/2018
कोरम-न्यायमूर्ति सुरेश्वर ठाकुर
प्रतिनिधित्व-एडवोकेट बी नंदन वशिष्ठ (याचिकाकर्ता के लिए),वरिष्ठ पैनल वकील लोकेंद्र पाल ठाकुर (प्रतिवादी के लिए)