संविधान निर्माताओं ने जाति और पितृसत्ता की नींव पर खड़े समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की कोशिश कीः जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

LiveLaw News Network

13 July 2020 4:08 PM GMT

  • संविधान निर्माताओं ने जाति और पितृसत्ता की नींव पर खड़े समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की कोशिश कीः जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़

    पूर्व चीफ जस्ट‌िस ऑफ इंडिया, जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की जन्म शताब्दी के अवसर पर इंडियन लॉ सोसायटी, ILS लॉ कॉलेज ने एक उत्सव का आयोजन किया। यह कॉलेज जस्टिस चंद्रचूड़ का अल्मा मेटर भी है। इस अवसर पर एक चर्चा का आयोजन किया गया, जिसका विषय "परिवर्तनशीन समाज और संवैधानिक निरंतरता - न्याय की तलाश में अनुभव।"

    चर्चा में सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "अपने पिता के जीवन को देखे हुए हुए, ऐसा लगता है कि हमारा समय अलग-अलग है, जबकि, जिस संवैधानिक ढांचे की रक्षा की शपथ हमने ली है, उसमें हम एकजुट हैं।

    समारोह में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन भी मौजूद ‌थे। इस अवसर पर ज‌स्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के पौत्र अभिनव चंद्रचूड़ और डॉ चिंतन चंद्रचूड़ ने भी अपनी भावनाएं साझा की।

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "हमारा संविधान को एक ऐसी दुनिया में फ्रेम किया गया, जो हमारी खुद से अलग थी, ‌फिर भी यह कानूनों की व्याख्या के लिए मार्गदर्शन के स्रोतों में ‌शिखर पर बना हुआ है। एक 70 साल पुराना दस्तावेज कैसे 21 वीं सदी में लोगों की पर‌िवर्तनशील मनोदशाओं और आकांक्षाओं, चुनौतियों के समक्ष प्रासंगिक बना हुआ है?"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकारों, जनता और न्यायपालिका के बीच लगातार हुए संवादों के बाद दशकों तक हुए बदलावों के बावजूद, संविधान की अंतर्निहित संरचना अप्रभावित रही है।

    चीफ ज‌स्ट‌िस वाईवी चंद्रचूड़ की मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1980) में की गई टिप्पणी की चर्चा की गई जिसमें उन्होंने कहा था, ''अपनी पीढ़ियों की ज़रूरतों के मुताबिक, जिसे आप सबसे बेहतर जानते हैं, पवित्र दस्तावेज़ को भी बदल डालिए, जिसे संस्‍थापकों ने आपकी देखभाल के लिए दिया, लेकिन संविधान एक अनमोल धरोहर है, इसलिए आप इसकी पहचान को नष्ट नहीं कर सकते।''

    जस्टिस चंद्रचूड़ हमारे लोकतांत्रिक समाज की उन जड़ों पर चर्चा की, जो उपनिवेशवाद से उपजी हैं। उन्होंने कहा, "लोकतांत्रिक समाजों के संविधान के जर‌िए सभी राजनीतिक अभिव्यक्तियों और प्रतियोगिताएं को सक्षम बनया जाता है। भारतीय संविधान से आत्मनिर्णय के लिए एक शताब्दी तक चला संघर्ष प्रतिबिंबित होता है। संविधान ने अपने जन्म से ही एक परिवर्तनकारी दृष्टि को मूर्त रूप दिया है। संस्थापकों ने जाति और‌ प‌ितृसत्ता की नींव पर खड़े समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रयास किया है.."

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने बताया कि कैसे चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने आपराधिक कानून के क्षेत्र में संवैधानिक न्याय का रास्ता प्रदान करने का प्रयास किया था।

    उन्होंने कहा, "जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल में क्रिमिनल लॉ के क्षेत्र में संवैधानिक न्याय को आवाज़ देने की कोशिश की। उनका दयालु व्यक्तित्व सबूतों की जांच में प्रतिबिंबित होता थाा, ताकि समाज की दोषपूर्णता का पता लगाया जा सके, जो कि कानून की ज्‍़यादतियों के रूप में दिखती थी। उदाहरण के लिए, उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसे हत्या का दोषी ठहराया गया था, जब उन्हें यह पता चला ककि उसे उसे बलात्कार और हत्या के आरोप में झूठा फंसाया गया है।"

    जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने वक्तव्य में स्वतंत्र भारत की दो प्रमुख चुनौतियों- भेदभाव और गरीबी की चर्चा की।

    "भेदभाव" पर चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे "सार्वभौमिक मताधिकार" भारतीय लोकतंत्र की एक क्रांतिकारी अवधारणा थी क्योंकि तब तक कथ‌ित विकसित समाजों ने भी हालिया ही महिलाओं अन्य रंगों के नागरिकों को यह अधिका ‌दिया था।

    नारीवादी विद्वान मैरी वोलस्टोनक्राफ्ट के कथन कि मन का कोई लिंग नहीं है, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही में अक्सर यह माना जाता है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच प्राकृतिक रूप से अंतर है, और महिलाएं "कमजोर" हैं और उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है। हालांकि, यह धारणा यह विचार करने में विफल रही है कि सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक असमानताएं महिलाओं को कैसे नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे स्पष्ट रूप से अंतर पैदा होते हैं।

    उन्होंने कहा‌, "1960 के दशक के आसपास पैदा हुई नारीवाद की दूसरी लहर ने उग्र नारीवादी विचार को जन्म दिया, जिसने तर्क दिया कि संरचनात्मक समानताएं, जिनका सामना महिलाओं को करना पड़ता है, उन्हें समानता हासिल करने के लिए समाप्त किया जाना चाहिए। यह जांच करती है कि क्या कानून महिलाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अधीनता में योगदान देता है या इसे सुदृढ़ करता है।"

    भारत में गरीबी के मुद्दे पर बोलते हुए, जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि कई बार भारत में गरीबी पहचान का परिणाम होती है। भारत में जाति के लिए संविधान की मंशा सकारात्मक कार्रवाई के लिए नीतियों की व्याख्या करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ मौलिक अधिकार को विसाखा बनाम राजस्थान राज्य में काम के अधिकार को हासिल करने के साथ सामंजस्य किया गया है।

    अपने भाषण के अंत में उन्होंने कहा, "हमारा संविधान सभी नागरिकों की निरंतर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुक्ति प्राप्त करने का एक उपकरण है। हालांकि, यह एक बहुलतावादी समाज के भीतर प्रतिस्पर्धी कारकों के बीच सामाजिक समन्वय बनाने का एक मंच है। यह ही है जो कि निरंतरता और परिवर्तन दोनों के लिए है। "

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