मां के साथ-साथ भ्रूण के भी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विचार करेंः कलकत्ता हाईकोर्ट ने 34 सप्ताह के भ्रूण को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

12 Feb 2022 6:00 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महिला की उस याचिका पर विचार करने के बाद आईपीजीएमईएंडआर, (एसएसकेएम अस्पताल), कोलकाता के निदेशक को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के प्रावधानों के अनुसार एक मेडिकल बोर्ड का गठन करने का निर्देश दिया है,जिसमें महिला ने अपने 34 सप्ताह के भ्रूण का मेडिकल टर्मिनेशन करवाने की अनुमति मांगी है।

    जस्टिस राजशेखर मंथा की पीठ को याचिकाकर्ता के वकील ने अवगत कराया कि तीन चिकित्सकों ने कई चिकित्सा जटिलताओं का पता लगाया गया है,जो याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य के साथ-साथ भ्रूण को भी प्रभावित कर रही हैं। इसलिए याचिकाकर्ता चिकित्सकीय तरीके से अपनी गर्भावस्था को समाप्त करवाना चाह रही है।

    राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि मौजूदा कानून के अनुसार भ्रूण के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति केवल 25 सप्ताह तक दी जा सकती है। अदालत को यह भी बताया गया कि अदालतों ने उपयुक्त मामलों में 27 से 28 सप्ताह तक के भ्रूण के मेडिकल टर्मिनेशन की अनुमति भी दी है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि केंद्र सरकार ने 12 अक्टूबर, 2021 को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) रूल्स, 2021 को अधिसूचित किया था, जिसने कुछ श्रेणियों की महिलाओं के लिए गर्भावस्था की समाप्ति की गर्भावधि सीमा को 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया था।

    मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश देते हुए कोर्ट ने कहा कि,

    ''यह न्यायालय आईपीजीएमईएंडआर, (एसएसकेएम अस्पताल), कोलकाता, प्रतिवादी नंबर- 4 के निदेशक को निर्देश देता है कि वह याचिकाकर्ता की चिकित्सा स्थिति और इस स्तर पर एमटीपी की आवश्यकता और उपयुक्तता का आकलन करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करें, जिसमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (जैसा कि वर्ष 2021 में संशोधित किया गया है) के अनुसार स्त्री रोग और प्रसूति विशेषज्ञ को भी शामिल किया जाए।''

    कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि मेडिकल राय वाली रिपोर्ट को 15 फरवरी तक कोर्ट के सामने पेश कर दिया जाए। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि,

    ''याचिकाकर्ता के साथ-साथ भ्रूण के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विचार किया जाना चाहिए और मेडिकल बोर्ड की राय इस न्यायालय के समक्ष यथासंभव शीघ्रता से प्रस्तुत की जानी चाहिए, जो मंगलवार 15 फरवरी, 2022 तक जरूर पेश कर दी जाए।''

    कोर्ट ने यह भी कहा कि बोर्ड द्वारा किए जाने वाले सभी टेस्ट और अन्य जांच पर होने वाले सारा खर्च याचिकाकर्ता द्वारा वहन किया जाएगा। वहीं याचिकाकर्ता को निर्देश दिया गया है कि वह भ्रूण के सभी मेडिकल दस्तावेज निदेशक, आईपीजीएमईएंडआर एसएसकेएम अस्पताल, कोलकाता के पास तुरंत जमा करा दें।

    मामले को आगे की सुनवाई के लिए 15 फरवरी को सूचीबद्ध किया गया है।

    केस का शीर्षक- निवेदिता बासु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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