इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं दी मुहर्रम के जुलूसों की अनुमति, कहा-आवश्यक धार्मिक प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, महामारी के अभूतपूर्व संकट के अनुपात में है'

LiveLaw News Network

29 Aug 2020 11:10 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नहीं दी मुहर्रम के जुलूसों की अनुमति, कहा-आवश्यक धार्मिक प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, महामारी के अभूतपूर्व संकट के अनुपात में है

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुहर्रम में ताजियों की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। ज‌स्टिस एसके गुप्ता और ज‌स्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने शनिवार को याचिकाओं के एक बैच को खारिज़ करते हुए कहा, "भारी मन के साथ कहना पड़ रहा रहा है कि इन कठिन समयों में, मोहर्रम के 10 वें दिन से जुड़े शोक अनुष्ठानों / परंपराओं को विनियमित करने के लिए कोई दिशानिर्देश प्रदान कर पाना और निषेध उठाना संभव नहीं है।"

    कोर्ट ने कहा कि हम जिस अभूतपूर्व स्थिति का सामना कर रहे हैं, धर्म के लिए आवश्यक प्रथाओं का पूर्ण निषेध, उसी अनुपात में है। कोर्ट ने मेरठ निवासी जफर अब्बास द्वारा, एडवोकेट सैय्यद काशिफ अब्बास रिजवी और जौन अब्बास के माध्यम से दायर याचिका पर यह आदेश दिया, जिसे समान याचिकाओं के एक बैच के साथ सुना गया था।

    याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 अगस्त को आदेश जारी कर मुहर्रम में ताजिया पर पूर्ण प्रतिबंध की घोषणा की थी। पीठ ने समझाया कि जुलूस में सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों को पालन करना संभव नहीं हो सकता है,

    "इसमें कोई संदेह नहीं कि कब्रगाहों पर ताजि़यों को दफन करना मुहर्रम के रिवाज का पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक इलाके / कॉलोनी का ताजिया होता है, अलग-अलग परिवार का भी अपना ताजिया होता है, सभी को दफनाने के लिए क्रबगाह पर जाना पड़ता है, क्योंकि ताजिया का दफन कोई और नहीं कर सकता है, यह व्यक्तिगत रूप से ही किया जाता है। ऐसा कोई भी तंत्र नहीं है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी व्यक्तियों को ताज‌िया दफनाने की अनुमति दे दी जाए और सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का पालन भी हो सके, जो इस अभूतपूर्व समय में एक परम आवश्यकता हैं।"

    याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग द्वारा COVID 19 महामारी में डोर टू डोर कैम्पेन करने की अनुमति ‌दिए जाने के आधार पर अनुमति की मांग की थी।

    उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि वह उत्तर प्रदेश सरकार को मोहर्रम की परंपराओं को सुनिश्चित करने के लिए एक निर्देश जारी करे, यदि समारोहों और अनुष्ठानों का आयोजन 5 व्यक्तियों या कम द्वारा किया जाता है तो उसे रोका न जाए। हालांकि कोर्ट ने दलील को मानने से इनकार कर दिया और कहा, "एक समूह को अनुमति और समूहों या व्यक्तियों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है, यह स्पष्ट रूप से...मनमाना और भेदभावपूर्ण होगा।"

    याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मुहर्रम और इससे जुड़े समारोह और अनुष्ठान शिया संप्रदाय का "अभिन्न अंग" हैं और इसलिए, उन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू करना धार्मिक अधिकारों को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में दी गई धर्म की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी उस विशेष धर्म पर भी लागू होती है और उससे जुड़े सभी संस्कार और समारोह इसमें शामिल हैं।"

    याचिका में आगे दलील दी गई थी कि धार्मिक स्थलों को अनलॉक 1 दिशानिर्देशों के अनुसार खोला गया है, हालांकि राज्य मुहर्रम के शुभ अवसर पर "शिया मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से धार्मिक समारोह / प्रार्थना की अनुमति नहीं दे रहा है।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में COVID-19 का संक्रमण "खतरनाक स्तर" पर है और "धार्मिक प्रथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध एक असाधारण फैसला है, हालांकि उस स्थिति के अनुपात में ही है, जिसका सामना हमें करना पड़ रहा है। भारत के संविधान के तहत भी धर्म के प्रचार और प्रसार का अधिकार, सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।"

    गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने COVID 19 महामारी के बीच मुहर्रम जुलूस को अनुमति देने से इनकार कर दिया था। सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि देश भर में जुलूस निकालने के लिए सामान्य निर्देश देने से अराजकता पैदा होगी और एक विशेष समुदाय को फिर वायरस फैलाने के लिए लक्षित किया जा सकता है।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को 30 अगस्त को शाम 4:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक मुहर्रम के दौरान ताजिया जुलूस निकालने के लिए वीडियोग्राफर के साथ केवल पांच व्यक्तियों को अनुमति दी है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह पूरे महाराष्ट्र राज्य में किया जाने वाला एकमात्र ताज‌िया होगा।

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