बरी होने से संतुष्ट न होने पर शिकायतकर्ता पुलिस द्वारा कर्तव्य में लापरवाही का आरोप लगाते हुए मानवाधिकार आयोग के समक्ष कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

21 Feb 2023 1:12 PM IST

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत की जांच करने वाले और मामले में चार्जशीट दायर करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ कर्नाटक राज्य मानवाधिकार आयोग (KHRC) के समक्ष आरोपी को बरी किए जाने के बाद शिकायतकर्ता द्वारा कार्यवाही शुरू करना कानून के तहत टिकने योग्य नहीं है।

    जस्टिस ज्योति मुलिमणि की एकल न्यायाधीश पीठ ने पुलिस इंस्पेक्टर सिद्दलिंगप्पा एसटी द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए अवलोकन किया और आयोग द्वारा दिनांक 20.06.2015 को पारित आदेश रद्द कर दिया, जिसमें ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

    शिकायतकर्ता के.ए. अप्पन्ना ने 26.09.2010 को याचिकाकर्ता को फोन किया और उसे सूचित किया कि 19.09.2010 को एलवीटी डाबा में भोजन करते समय, जमीन खरीदने के लिए कमीशन के भुगतान को लेकर लक्ष्मीकांत नाम के व्यक्ति और 15 अन्य लोगों के साथ उसका झगड़ा हुआ। उसने याचिकाकर्ता से शिकायत दर्ज कराने का अनुरोध किया।

    याचिकाकर्ता ने पीएसआई राजेंद्र कुमार को फोन कर आवश्यक कार्रवाई के निर्देश दिए। इसके अनुसरण में लक्ष्मीकांत और पंद्रह अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 143, 147, 148, 342, 323, 324, 506 (बी), 327 सपठित धारा 149 के तहत दंडनीय कथित अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की गई।

    इसके बाद पीएसआई ने जांच अधिकारी होने के नाते जांच की और आरोप पत्र दायर किया। चार्जशीट के आधार पर न्यायालय ने कार्यवाही की और दिनांक 15.07.2013 को अभियुक्तों को बरी करते हुए निर्णय पारित किया।

    इसके बाद शिकायतकर्ता ने आयोग से संपर्क किया, जिसने जांच करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए शिकायत को पुलिस डायरेक्टर जनरल को भेज दिया। आईजीपी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के आधार पर KHRC ने केवल राजेंद्र कुमार, पीएसआई डोड्डाबल्लापुर के खिलाफ आरोप साबित किए। पुलिस डायरेक्टर जनरल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का लिखित कारण बताने के लिए आयोग ने उसे 30.04.2012 को नोटिस जारी किया।

    इसके बाद उन्होंने अपने कार्यों को न्यायोचित ठहराते हुए कारण का एक लिखित बयान प्रस्तुत किया। इसके बाद, आयोग ने शिकायत, आईजीपी, केएचआरसी की रिपोर्ट और राजेंद्र कुमार के लिखित कारण के आधार पर, आदेश दिनांक 20.06.2015 के तहत न केवल राजेंद्र कुमार के पीएसआई पर बल्कि याचिकाकर्ता पर भी 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने सर्किल इंस्पेक्टर होने के नाते अपने कर्तव्यों का ईमानदारी और आज्ञाकारिता से निर्वहन किया। जिस क्षण याचिकाकर्ता को शिकायतकर्ता - दूसरे प्रतिवादी से टेलीफोन कॉल प्राप्त हुआ, उसने उचित रूप से पीएसआई राजेंद्र कुमार को कानून के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया।

    रिकॉर्ड देखने के बाद बेंच ने कहा,

    "उपयुक्त फोरम के समक्ष कार्यवाही पूरी हो चुकी है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बरी करने का आदेश अदालत द्वारा पारित किया गया। यदि दूसरे प्रतिवादी को कोई शिकायत थी या वह लक्ष्मीकांत को बरी करने के आदेश से संतुष्ट नहीं था तो उचित कार्रवाई पूरी तरह से एक अलग फोरम में होती।”

    इसमें कहा गया,

    "यहां तक कि आयोग का यह निष्कर्ष कि याचिकाकर्ता ने पीएसआई को लिखित रूप में निर्देश नहीं दिया, पूरी तरह से गलत और अपुष्ट है।"

    इसके बाद यह कहा गया,

    "कानूनी कार्रवाई शुरू की गई और अदालत ने कानून के अनुसार निर्णय पारित किया। इसलिए मेरी राय में जैसा कि शिकायतकर्ता द्वारा आरोप लगाया गया, कर्तव्य में कोई लापरवाही नहीं की गई। आयोग प्रासंगिक विचारों के संबंध में और प्रासंगिक मामलों की अवहेलना करने में विफल रहा है। मेरी सुविचारित राय में जहां तक याचिकाकर्ता का संबंध है, जुर्माना लगाना कानून की दृष्टि से अस्थिर है। इसलिए इसे रद्द करने के लिए उत्तरदायी है।"

    तदनुसार कोर्ट ने याचिका को अनुमति दी।

    केस टाइटल: सिद्दालिंगप्पा एस टी बनाम कर्नाटक राज्य मानवाधिकार आयोग।

    केस नंबर: रिट याचिका नंबर 51993/2015

    साइटेशन: लाइव लॉ (कर) 73/2023

    आदेश की तिथि: 03-02-2023

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता की ओर से वकील दीपक जे की ओर से वकील सागर और R1 के लिए एडवोकेट गोपालकृष्ण सूदी।

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