समुदाय के सदस्यों द्वारा महिला से शादी का अधिकार छीनने के कृत्य की निंदा की जानी चाहिएः गुजरात हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

25 Jun 2021 4:00 AM GMT

  • समुदाय के सदस्यों द्वारा महिला से शादी का अधिकार छीनने के कृत्य की निंदा की जानी चाहिएः गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते फैसला सुनाया है कि समुदाय के सदस्यों द्वारा एक महिला से शादी करने के अधिकार को छीनने, हिंसा और उत्पीड़न करने की कार्रवाई की निंदा की जानी चाहिए।

    न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कहा कि एक बालिग महिला को अपनी शादी करने और अपने भविष्य के बारे में फैसला करने का अधिकार है।

    इसलिए, बेंच ने उन दोनों आवेदनों को खारिज कर दिया, जिसमें आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की प्रार्थना की गई थी, जो कि लड़की के रिश्तेदार हैं। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने कथित तौर पर उस लड़के के परिवार को परेशान किया था,जिसके साथ इस महिला ने शादी की थी।

    संक्षेप में मामला

    गुजरात में खत समुदाय के एक कपल ने अपनी मर्जी से एक-दूसरे से शादी की, हालांकि, उनके परिवार उनकी शादी के खिलाफ थे। लड़की अपनी मर्जी से घर से भाग गई क्योंकि उसके पिता उसकी शादी किसी ऐसे व्यक्ति से कराना चाहते थे जो उसे पसंद नहीं था।

    इसके बाद, लड़की के परिवार ने सामुदायिक पंचायत का आह्वान किया, जिसमें लड़के के परिवार पर महिला/बेटी के अपहरण का आरोप लगाया गया।

    जिसके बाद सामुदायिक पंचायत ने निर्णय लिया कि यदि निकट भविष्य में लड़की को लड़के के साथ पाया जाता है, तो लड़के के परिवार को लड़की के परिजनों को 10 लाख रुपये का भुगतान करना होगा।

    बाद में, लड़की खुद पुलिस के सामने पेश हुई और अपना बयान दर्ज कराया कि वह अपनी मर्जी से लड़के के साथ भाग गई थी, लेकिन लड़की के परिवार ने 10 लाख रुपये के वादे के लिए कथित तौर पर लड़के के परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया।

    कथित तौर पर, लड़की के परिवार ने लड़के के परिवार के सदस्यों के साथ मारपीट की और उनके घर को जलाने की धमकी दी। जिसके बाद लड़के के परिवार द्वारा दो अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज करवाई गई थी, जिन्हें रद्द करने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष तत्काल याचिका में प्रार्थना की गई थी।

    हालांकि, कोर्ट ने फैसला सुनाया किः

    ''पुलिस को ऐसे मामले की जांच करने से नहीं रोका जा सकता...जांच अधिकारी को चार्जशीट दाखिल करने से नहीं रोका जा सकता है।''

    अंत में कोर्ट ने दोनों आवेदनों को खारिज कर दिया और जांच अधिकारी को प्राथमिकी के संबंध में वैधानिक अवधि के भीतर आरोप पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है।

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