जब पक्षकार असंबंधित हो तो अलग-अलग मामलों में समन जारी करने के लिए सामान्य आदेश पारित नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 Nov 2020 11:14 AM GMT

  • जब पक्षकार असंबंधित हो तो अलग-अलग मामलों में समन जारी करने के लिए सामान्य आदेश पारित नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को यह स्पष्ट कर दिया है कि एक याचिकाकर्ता द्वारा दायर विभिन्न मामलों में प्रतिवादियों को समन करने के लिए उस स्थिति में एक सामान्य आदेश जारी नहीं किया जा सकता, जब इन मामलों के प्रतिवादी पक्ष असंबंधित हो या वो अलग-अलग हों।

    न्यायमूर्ति अनु मल्होत्रा की एकल पीठ ने तीन मामलों में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक सामान्य या काॅमन सम्मन आदेश को रद्द कर दिया है। इन सभी मामलों में शिकायतकर्ता यानी कनिका इन्वेस्टमेंट लिमिटेड ही थी,परंतु सभी मामलों में आरोपी अलग थे।

    यह आदेश दो आधार पर रद्द किया गया हैः

    (1) जिन पक्षकारों को समन किया गया है वो असंबंधित हैं।

    (2) एक मामले में, आरोपी के खिलाफ लगाया गया अपराध एनएसीएच मैंडेट के डिसानर (इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर) से संबंधित है,जो पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट 2007 की धारा 25 के तहत आता है, लेकिन अदालत ने इसकी प्रयोज्यता के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की।

    मामले के तथ्यों के अनुसार, जिन मामलों में सामान्य सम्मन का आदेश जारी किया गया है,उनमें से दो मामले एनआई एक्ट की धारा 138 से संबंधित हैं,जबकि तीसरा मामला एनआई एक्ट धारा 138 रिड विद पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट 2007 की धारा 25 के तहत किए गए अपराध से संबंधित है।

    बेंच ने कहा,

    '' जैसा कि ऊपर कहा गया है ,उन परिस्थितियों को देखते हुए दिनांक 11 मार्च 2019 को सीसी नंबर 1565/19 के साथ सीसी नंबर 1566/19 और 1567/19 में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सामान्य सम्मन का आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि इन सभी मामलों में पक्षकार अलग-अलग हैं। वहीं सीसी नंबर 1565/19 में शिकायतकर्ता द्वारा दी गई दलीलों के आधार पर पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट 2007 की प्रयोज्यता के बारे में पता लगाना ट्रायल कोर्ट का कर्तव्य था.।..''

    तीसरे मामले में याचिकाकर्ता की ओर से प्रस्तुत दलीलों के मद्देनजर यह अवलोकन किया गया है। उसने दलील दी थी कि पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट 2007 के तहत देयता के निर्धारण के लिए निर्धारित प्रक्रिया पूरी तरह से निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के प्रावधानों के साथ परि मैटेरिया नहीं है।

    कोर्ट ने कहा,

    '' ट्रायल कोर्ट के लिए यह भी जरूरी था कि वह पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट, 2007 के लागू होने के पहलू पर विचार करती या अन्यथा इसके प्रावधानों को सीसी नंबर 1565/19 की शिकायत की शर्तों के साथ पढ़ा जाता।''

    इस प्रकार लगाया गया समन का आदेश रद्द कर दिया गया और मामले को ट्रायल कोर्ट में वापस भेजते हुए निर्देश दिया गया है कि वह समन के पहलू पर विचार करें या अन्यथा नए सिरे से पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स एक्ट 2007 रिड विद निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 के लागू होने पर विचार करें।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट अनुज चैहान ने किया था,वहीं प्रतिवादी की तरफ से अधिवक्ता कमल कुमार पेश हुए।

    केस का शीर्षक- विकास बजाज व अन्य बनाम मैसर्स कनिका इन्वेस्टमेंट लिमिटेड

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