विकास दुबे एनकाउंटर प्रकरण की न्यायिक जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को वकीलों ने लिखा पत्र, बोले- "आम आदमी का न्याय से भरोसा उठ जाएगा"
LiveLaw News Network
11 July 2020 2:14 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट को लिखे एक पत्र में विकास दुबे एनकाउंटर प्रकरण की न्यायिक जांच की मांग की गई है।
चीफ जस्टिस को संबोधित पत्र में कहा गया है, "ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना एक भयावह उदाहरण है, जब पुलिस ने एक्स्ट्रा जुडिशल फैशन में, बिना उचित जांच-पड़ताल किए और बिना अदालत के समक्ष उचित और न्यायपूर्ण ट्रायल का अवसर दिए, एक अपराधी को मारकर, संविधान के तहत स्थापित कोर्ट ऑफ लॉ की शक्तियों और कार्यों को अपना मान लेने और हथिया लेने की कोशिश की है। यह एक भयावह और विस्मयकारी संदेश देता है कि न्यायिक प्रणाली कितनी कमज़ोर और छिन्न-भिन्न है, जिसका नतीजा यह होगा कि आम आदमी को भारतीय न्यायिक प्रणाली और कानून में मूल्यवान सिद्धांतों से भरोसा उठ जाएगा।"
उत्तर प्रदेश के "दुखद हालात" से "व्यथित" होकर, एडवोकेट भव्य सहाय और देवेश सक्सेना ने चीफ जस्टिस के समक्ष एक प्रार्थना पत्र के रूप में एक अभ्यावेदन दिया है, जिसमें उन्होंने कानपुर के गैंगेस्टर विकास दुबे की कथित "एक्ट्रा जूडिशल हत्या" का संज्ञान लेने का आग्रह किया है।
अधिवक्ताओं का दावा है कि घटना का उत्तर प्रदेश पुलिस का संस्करण "काल्पनिक" प्रतीत होता है और फिल्म स्क्रिप्ट से प्रेरित है। उन्होंने कहा, "यह बहुत ही असंभावित है कि एक अपराधी, जिसके साथ कई एसआईटी अधिकारी मौजूद हैं, वह उनकी कड़ी सुरक्षा से भागने की कोशिश करेगा।"
उल्लेखनीय है कि विकास दुबे को गुरुवार को उज्जैन से गिरफ्तार किया गया था। उस पर 3 जुलाई को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था, जिसके सिलसिले में उत्तर प्रदेश पुलिस का एक काफिले उसे लेकर कानपुर जा रहा था। कथित तौर पर, दुबे जिस वाहन में बैठा था, वह पलट गया, जिसके बाद दुबे ने भागने के प्रयास यिका और क्रॉस-फायरिंग में मारा गया।
अधिवक्ताओं ने कहा कि घटना पर संदेह जताते हुए कहा, "विभिन्न समाचार चैनलों की लाइव कवरेज के अनुसार, पूरी घटना के घटने का स्थान एक राजमार्ग था और सड़कें पूरी तरह से अच्छी स्थिति में थीं, जिससे यह संशय होता है कैसे कोई वाहन, बिना किसी तीसरे पक्ष या बल के शामिल हुए, पलट सकता है, या या एक समझदार व्यक्ति कैसे एक खुले राजमार्ग पर पुलिस की हिरासत से भागने का दुस्साहस और लापरवाही भरा प्रयास करने करेगा, जबकि आसपास के क्षेत्र में कोई कवर / ठिकाने नहीं है और वह कैसे पुलिस कर्मियों के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है।"
आपराधिक मामलों में सीआरपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करना और मजिस्ट्रियल स्तर पर जांच करना अनिवार्य है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014 10 SCC 635) के मामले में भी निर्धारित किया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि अगर इस घटना की न्यायिक जांच नहीं होती है तो पुलिस अधिकारी इसे अपनी "वीरता" मानेंगे और यह "अवांछित सामाजिक आदर्श" बन सकता है।
उन्होंने कोर्ट से निवेदन किया है, "वर्तमान घटना की गंभीरता और अहमियत को देखते हुए यह आवश्यक है कि माननीय न्यायालय को इस घटना का तत्काल संज्ञान लेना चाहिए और माननीय न्यायालय के सिटिंग जज की देखरेख में, विकास दुबे की एक्ट्रा जुडिशन किलिंग के मामले की जांच का आदेश देना चाहिए, ताकि भारतीय न्यायिक प्रणाली में नागरिकों के विश्वास को फिर से बहाल किया जाए।"
उल्लेखनीय है कि ऐसा ही एक पत्र दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतिम वर्ष के कानून के छात्र ने और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखा है। उन्होंने चीफ जस्टिस से घटना की स्वतंत्र सीबीआई / एसआईटी जांच कराने का आदेश देने का आग्रह किया, ताकि सही तथ्यों का पता लगाया जा सके।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें दुबे केे यूपी पुलिस द्वारा "मारे जाने" की आशंका का संकेत दिया गया था। याचिका में कहा गया है कि इस बात की पूरी आशंका है कि आरोपी विकास दुबे को अन्य सह-आरोपियों की तरह उत्तर प्रदेश पुलिस मार देगी।
दुबे के मामले को सीबीआई को हस्तांतरित करने के अलावा, याचिका में दुबे के सहयोगियों की "हत्या / कथित मुठभेड़" की गहन जांच की मांग की गई थी, जिन पर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल होने का आरोप है।
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