नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग द्वारा घोषित वार्षिक परिणाम रद्द करने व पुनर्मूल्यांकन की मांग करते हुए दसवीं कक्षा के छात्रों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की

LiveLaw News Network

11 Aug 2020 5:14 PM GMT

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग द्वारा घोषित वार्षिक परिणाम रद्द करने व पुनर्मूल्यांकन की मांग करते हुए दसवीं कक्षा के छात्रों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की

    मार्च-अप्रैल की पब्लिक एक्ज़ामिनेशन 2020 के परिणाम का पुनर्मूल्यांकन करने की मांग करते हुए दसवीं कक्षा के कुल बीस छात्रों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की है, क्योंकि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) ने दसवीं कक्षा की परीक्षाओं को रद्द कर दिया था। साथ ही निर्णय लिया था कि प्रैक्टिकल एक्ज़ाम और ट्यूटर मार्कड असेस्मेंट में मिले अंकों के आधार पर ही थ्योरी एग्जाम के अंकों का आकलन किया जाएगा। याचिका में कहा गया है कि यह एनआईओएस की स्वयं की मूल्यांकन योजना का उल्लंघन है।

    इस प्रकार याचिकाकर्ताओं ने अपने अधिवक्ता अभय अंतूरकर के माध्यम से दायर याचिका में मार्च-अप्रैल 2020 के परिणामों को रद्द करने की मांग की है क्योंकि यह एनआईओएस की स्वयं की उस आकलन योजना का उल्लंघन करते हैं, जो 10 जुलाई, 2020 की अधिसूचना के तहत जारी की गई थी।

    मार्च/अप्रैल में आयोजित होने वाली सार्वजनिक परीक्षा COVID19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। इसके बाद एनआईओएस ने 10 जुलाई को एक अधिसूचना जारी कर उक्त परीक्षाओं को रद्द कर दिया था। तत्पश्चात, मूल्यांकन योजना में कहा गया था कि जिस विषय की परीक्षा याचिकाकर्ता को मार्च/अप्रैल में देनी थी,परंतु आयोजित नहीं हो पाई। उस विषय में छात्र के शैक्षणिक प्रदर्शन की गणना के लिए (संबंधित विषय की) पिछली तीन सार्वजनिक परीक्षा के प्रैक्टिकल एग्जाम और ट्यूटर मार्कड असेस्मेंट के अंकों का उपयोग किया जाएगा।

    याचिका में कहा गया है कि परिणाम 6 अगस्त को प्रकाशित किए गए थे। वहीं याचिकाकर्ता छात्रों के अनुसार यह परिणाम उनके लिए 'पूरी तरह से सदमा' पहुंचाने वाले थे क्योंकि उनको मिले अंक ,उनके टीएमए और प्रैक्टिकल एग्जाम के अंकों के अनुपात में नहीं थे। इतना ही नहीं याचिकाकर्ताओं को मिले नंबर उनकी सही शैक्षणिक क्षमता को भी नहीं दर्शाते हैं।

    इसके अलावा यह भी दलील दी गई कि -

    "अपनी स्वयं की मूल्यांकन योजना का उल्लंघन करते हुए प्रतिवादियों द्वारा किया गया आकलन पूरी तरह से मनमाना है। वहीं भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत मिले याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।

    ''अपनी स्वयं की मूल्यांकन योजना का उल्लंघन करते हुए प्रतिवादियों द्वारा किए गए आकलन ने याचिकाकर्ताओं के कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण के अधिकार (संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत) को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। वहीं संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन का अधिकार भी प्रभावित हुआ है। क्योंकि इससे याचिकाकर्ताओं के भविष्य का शैक्षणिक कैरियर गंभीर रूप से प्रभावित होगा।''

    इस प्रकार याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि एनआईओएस और अन्य को निर्देश दिया जाए कि वह एनआईओएस द्वारा जारी अधिसूचना में प्रदान की गई मूल्यांकन योजना के आधार पर उक्त सार्वजनिक परीक्षाओं का फिर से मूल्यांकन करके परिणाम घोषित करें।

    याचिका की काॅपी डाउनलोड करें।



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