कानून को सबसे कमजोर की रक्षा करनी चाहिए: चीफ़ जस्टिस गवई
Praveen Mishra
12 Oct 2025 9:42 PM IST

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.आर. गवई ने शनिवार को कहा कि न्याय वितरण प्रणाली में विविधता और समावेशन (diversity and inclusion) को केंद्र में रखना आवश्यक है, क्योंकि “कानून अपना सच्चा अर्थ तब पाता है जब वह सबसे कमजोर की रक्षा करता है।”
हनोई में आयोजित 38वें लॉएसिया (LAWASIA) सम्मेलन में मुख्य भाषण देते हुए, उन्होंने अपने जीवन की यात्रा साझा की और बताया कि कैसे संविधान ने उनके जीवन को बदला। उन्होंने कहा, “मैं एक निचली जाति में जन्मा, लेकिन संविधान ने मेरी गरिमा को हर नागरिक के समान माना।”
उन्होंने कहा कि समानता, सामाजिक न्याय और गरिमा के सिद्धांत लाखों वंचित लोगों की जीवित आकांक्षाएँ हैं, और गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी व डॉ. भीमराव आंबेडकर की सोच से प्रेरित होकर उन्होंने न्याय को सामाजिक विषमता समाप्त करने का साधन माना।
वकीलों की भूमिका
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वकीलों को संवैधानिक मूल्यों — निष्पक्षता और समावेशिता — को अपने पेशे में भी लागू करना चाहिए।
उन्होंने बार से अपील की कि वंचित समुदायों के वकीलों को अवसर दें और महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह समाप्त करें।
उन्होंने कहा, “समानता महिलाओं को अवसरों से वंचित रखकर नहीं, बल्कि उन्हें निर्णय की स्वतंत्रता देकर प्राप्त होती है,” और अनुज गर्ग बनाम होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (2008) का हवाला दिया।
न्यायपालिका की जिम्मेदारी
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एन.एम. थॉमस (1976), इंद्रा साहनी (1992) और बी.के. पवित्र (2019) जैसे मामलों में यह स्पष्ट किया कि समानता का अर्थ असमानों के साथ समान व्यवहार नहीं है।
अपने निर्णय स्टेट ऑफ पंजाब बनाम देविंदर सिंह (2024) में उन्होंने अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को उचित ठहराया ताकि सबसे पिछड़े वर्ग पीछे न रह जाएँ।
उन्होंने विशाखा, बबिता पुनिया, और लेफ्टिनेंट कर्नल नितिशा मामलों में सुप्रीम कोर्ट की लैंगिक समानता के प्रति सक्रिय भूमिका का भी उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट में सुधार और समावेशन
न्यायमूर्ति गवई ने बताया कि मई 2025 में पदभार संभालने के बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक संरचना में सकारात्मक भेदभाव (affirmative action) लागू किया ताकि वंचित समुदायों को उचित प्रतिनिधित्व मिले।
उन्होंने कहा कि कानूनी व्यवस्था केवल महानगरों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि देश के दूरस्थ हिस्सों तक पहुँचनी चाहिए।
मार्गदर्शन और निष्कर्ष
उन्होंने कहा कि सच्चा समावेशन सहानुभूति, धैर्य और मार्गदर्शन से संभव है। “विविधता दरवाजे खोलती है, लेकिन समावेशन उन दरवाजों से प्रवेश करने वालों के साथ चलना है,” उन्होंने कहा।
भाषण का समापन करते हुए उन्होंने कहा,
“विविधता लोगों को साथ लाती है, समावेशन उन्हें आवाज़ देता है। जब हम विविधता अपनाते हैं, समावेशन का अभ्यास करते हैं और समानता बनाए रखते हैं, तो हर आत्मा को आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।”

