सिविल सर्विस एग्जामिनेशन 2023: दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रारंभिक प्रिलिम्स आंसर की प्रकाशित करने की मांग वाली याचिका की सुनवाई योग्यता पर फैसला सुरक्षित रखा

Shahadat

2 Aug 2023 11:01 AM GMT

  • सिविल सर्विस एग्जामिनेशन 2023: दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रारंभिक प्रिलिम्स आंसर की प्रकाशित करने की मांग वाली याचिका की सुनवाई योग्यता पर फैसला सुरक्षित रखा

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को सिविल सर्विस एग्जामिनेशन 2023 की प्रिलिम्स आंसर की के अंतिम परिणाम घोषित होने के बाद ही प्रकाशित करने के संघ लोक सेवा निर्णय (यूपीएससी) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई योग्यता पर फैसला सुरक्षित रख लिया।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने विभिन्न सिविल सर्विस अभ्यार्थियों द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा,

    "मैं याचिका की सुनवाई योग्यता पर फैसला सुनाऊंगा।"

    अदालत ने उम्मीदवारों के वकील की दलील को भी दर्ज किया कि याचिका में अन्य दो प्रार्थनाएं, यानी प्रारंभिक परीक्षा को चुनौती देना और परीक्षा फिर से आयोजित करने की मांग पर इस मामले में जोर नहीं दिया जा रहा है।

    जस्टिस सिंह ने वकील को याचिका की सुनवाई योग्यता के पहलू पर लिखित दलीलें दाखिल करने का समय भी दिया।

    एडवोकेट राजीव कुमार दुबे के माध्यम से दायर याचिका 17 सिविल सेवा उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई है। उन्होंने यूपीएससी द्वारा 12 जून को जारी प्रेस नोट को चुनौती दी। नतीजों की घोषणा से संबंधित प्रेस नोट में यूपीएससी ने यह भी कहा कि प्रीलिम्स की आंसर की पूरी प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही प्रकाशित की जाएगी।

    अभ्यर्थियों की ओर से कहा गया कि विवादित प्रेस नोट को इस आधार पर चुनौती दी गई कि यूपीएससी अभ्यर्थियों को आंसर की उपलब्ध नहीं करा रहा है।

    याचिका में फैसले को मनमाना बताया गया और यूपीएससी को तत्काल प्रभाव से आंसर की प्रकाशित करने का निर्देश देने की मांग की गई।

    दूसरी ओर, यूपीएससी ने याचिका की सुनवाई योग्यता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए तर्क दिया कि विवादित प्रेस नोट भी भर्ती का हिस्सा है। इस प्रकार, हाईकोर्ट के पास याचिका पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    आगे यह प्रस्तुत किया गया कि उम्मीदवारों के पास केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क करने का मूल उपाय है।

    याचिका में कहा गया,

    “छात्रों को उनके द्वारा दी गई परीक्षा की आंसर की नहीं देना, इसके लिए विशेष समय विंडो उपलब्ध कराए जाने के बावजूद उम्मीदवारों के अभ्यावेदन पर विचार नहीं करना और असंगत रूप से अस्पष्ट प्रश्न पूछना, उम्मीदवारों की क्षमता का परीक्षण करना है। केवल अनुमान के आधार पर उत्तर देना न केवल मनमाना है, बल्कि निष्पक्षता, तर्क और तर्कसंगतता के सभी सिद्धांतों की अवहेलना है।''

    हाल ही में अदालत ने सिविल सेवा (मुख्य) परीक्षा 2023 के लिए आवेदन आमंत्रित करने के लिए 10 जुलाई को यूपीएससी द्वारा जारी विस्तृत आवेदन पत्र (डीएएफ) को चुनौती देने वाले उम्मीदवारों की याचिका को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: हिमांशु कुमार बनाम यूपीएससी एवं अन्य।

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