ईसाई दंपति ने गलत तरीके से हिंदू दत्तक अधिनियम के तहत बच्‍चा गोद लिया; दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्‍चे की अच्छी देखभाल के कारण उन्हें 'दत्तक माता-पिता' घोषित किया

LiveLaw News Network

3 Aug 2021 9:13 AM GMT

  • ईसाई दंपति ने गलत तरीके से हिंदू दत्तक अधिनियम के तहत बच्‍चा गोद लिया; दिल्ली हाईकोर्ट ने बच्‍चे की अच्छी देखभाल के कारण उन्हें दत्तक माता-पिता घोषित किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ईसाई दंपति को राहत दी है, जिन्होंने एक बच्चे के जन्म से छह साल तक उसकी देखभाल की थी, लेकिन उन्होंने गोद लेने के लिए कानूनी रास्ते का पालन नहीं किया था। निःसंतान दंपति ने हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के तहत निष्पादित दत्तक विलेख के जर‌िए बच्चे को गोद लिया था, इस तथ्य के बावजूद कि उक्त अधिनियम ईसाइयों पर लागू नहीं होता है।

    उन्होंने बताया कि उन्होंने "गलत कानूनी सलाह" के कारण उक्त दत्तक विलेख बनावाया।

    छह साल से अधिक समय तक बच्चे की परवरिश करने के बाद, दंपति उस वक्त कानूनी जटिलताओं में फंस गए, जब उन्होंने अपनी दत्तक बेटी के रूप में बच्चे के लिए पासपोर्ट पाने का प्रयास किया। जिसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    हालांकि, दत्तक विलेख कानून में मान्य नहीं था, फिर भी इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उन्होंने बच्चे की बखूबी देखभाल की ही और यह बच्चे के भलाई के खिलाफ होगा कि उसे उसके दत्तक परिवार से अलग किया जाए, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को बच्चे का दत्तक माता-पिता माना।

    कोर्ट ने कहा कि ईसाई हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत दत्तक विलेख निष्पादित नहीं कर सकते और इस मामले में कानून का बहुत ही लापरवाही से उल्लंघन किया गया है।

    जस्टिस आशा मेनन की सिंगल बेंच ने कहा, "यह मामला दर्शाता है कि नाबालिगों के कल्याण, भालाई और अधिकारों की रक्षा के लिए बने कानून को कितनी आसानी से शून्य करना संभव है...।"

    हालांकि, बच्चे के कल्याण को आगे बढ़ाने के लिए अदालत ने बच्चे को गोद लेने के लिए उपयुक्त घोषित किया और कहा कि दंपति ने, जब से उन्हें बच्‍चा दिया गया है, "पालक परिवार" के रूप में उसकी देखभाल की थी...बाल कल्याण समिति से आगे किसी आदेश की आवश्यकता नहीं थी।

    तथ्य

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि उनकी एक कजिन, सिस्टर ईए, जो कि एक सामाजिक कार्यकर्ता ‌थी, ने नाबालिग बच्चे के जैविक माता-पिता से मुलाकात की थी, जो प्रवासी श्रमिक थे। उनके घर जाने पर, उन्होंने पाया कि मां अपने बच्चे को दूध पिलाने में असमर्थ थी, जो 11 दिसंबर 2014 को पैदा हुआ था। बच्चे को बाल रोग विशेषज्ञ के पास ले जाने के बाद, यह पाया गया कि बच्चा गंभीर रूप से कुपोषित था।

    जैविक माता-पिता ने बच्चे को सिस्टर ईए को सौंप दिया। वे बच्चे को गोद देने के लिए सहमत थे। बाद में याचिकाकर्ताओं ने बच्चे को हिंदू दत्तक और भरण पोषण अधिनियम के तहत एक दत्तक विलेख निष्पादित करके गोद ले लिया।

    मुश्किलें तब पैदा हुईं, जब याचिकाकर्ताओं ने बच्चे के पासपोर्ट के लिए आवेदन किया। वे बच्चे को अमेरिका ले जाना चाहते थे, जहां वे कार्यरत थे। पासपोर्ट अधिकारियों ने गोद लेने के विलेख पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया, याचिकाकर्ताओं ने एक दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें यह घोषणा की गई कि बच्चा उनकी कानूनी रूप से गोद ली गई बेटी है।

    हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने 2018 में यह कहते हुए मुकदमे को खारिज कर दिया क्योंकि बच्चे के जैविक माता-पिता और दत्तक माता-पिता ईसाई हैं, इसलिए दत्तक विलेख HAMA की धारा 5 और 6, धारा 2 (1) (सी) के प्रावधानों के साथ पढ़ें, के विपरीत होने के कारण व्यर्थ है।

    बाद में, याचिकाकर्ताओं ने इस आशय का प्रमाण पत्र जारी करने के अनुरोध के साथ केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (CARA) से संपर्क किया कि बच्चा गोद लेने के लिए कानूनी रूप से स्वतंत्र है। जब CARA ने अनुरोध को खारिज कर दिया, तो याचिकाकर्ताओं ने रिट याचिका के माध्यम से दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ताओं ने निर्देश मांगे था कि उन्हें सभी आवश्यक अनुमोदन, अनुमतियां और प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अपेक्षित एनओसी जारी की जाए और पार्सपोर्ट जारी किया जाए ताकि वे बच्चे को दत्तक माता-पिता के रूप में अमेरिका ले जा सकें।

    ईसाइ धर्म में गोद लेने और देने का कोई रिवाज नहीं

    हाईकोर्ट ने माना कि CARA के रुख को गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि गोद लेने का विलेख कानून में मान्य नहीं था।

    कोर्ट ने कहा, "ईसाइयों के पास गोद लेने और देने का कोई रिवाज नहीं है। "प्रत्यक्ष दत्तक" हिंदुओं के संदर्भ में है। इसलिए HAMA का संदर्भ है। ईसाइयों के संबंध में HAMA के तहत एक दत्तक विलेख तैयार करना कानूनी रूप से मान्य नहीं है जैसा कि अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन), फिरोजपुर ने माना है। वास्तव में, 2016 से पहले कोई दत्तक ग्रहण नहीं हुआ है।"

    कोर्ट ने कहा कि ईसाइयों और मुसलमानों के पास "प्रत्यक्ष गोद लेने" का कोई विकल्प नहीं है और उन्हें किशोर न्याय अधिनियम के तहत प्रक्रिया से गुजरना होता है।

    कोर्ट ने कहा, "जहां तक ​​मुसलमानों और ईसाइयों का संबंध है, उनके व्यक्तिगत कानून गोद लेने को मान्यता नहीं देते हैं। जैसा कि HAMA उन्हें दायरे से बाहर करता है, वे उस अधिनियम के संदर्भ में एक बच्चे को गोद लेने की मांग नहीं कर सकते हैं, जिसमें एक पंजीकृत दस्तावेज के माध्यम से गोद लेने की रिकॉर्डिंग भी शामिल है। गोद लेने के माध्यम से बच्चा लेने की उनकी इच्छाओं को पूरा करने के लिए एकमात्र विकल्प यह है कि उन्हें जेजे अधिनियम के तहत आना होगा"।

    याचिकाकर्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बच्चा, जो अपने जैविक माता-पिता को नहीं जानता था, 2014 से उनके साथ था और अपने परिवार के साथ पूरी तरह से जुड़ गया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे उसे अच्छी शिक्षा और समर्थन दे रहे हैं और व्यवस्था में खलल डालना बच्चे के हित में नहीं होगा।

    कोर्ट ने हालांकि नोट किया कि याचिकाकर्ताओं के दावों को कानून का कोई समर्थन नहीं है।

    "इसमें कोई संदेह नहीं है कि याचिकाकर्ता संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उन्हें खुद को दोषी ठहराना चाहिए। CARA को नियमों से चिपके रहने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। ईसाई होने के नाते पक्ष HAMA के तहत दत्तक विलेख निष्पादित नहीं कर सकते थे। कोई अदालत का आदेश घोषित नहीं किया गया है कि नाबालिग याचिकाकर्ता की गोद ली हुई संतान है"।

    वहीं, कोर्ट ने बच्चे के कल्याण के दृष्टिकोण से मामले का विश्लेषण किया। इस संबंध में कोर्ट ने बाल कल्याण समिति की रिपोर्ट का हवाला दिया।

    मामले के तथ्यों का विश्लेषण करते हुए न्यायालय ने कहा, "इन सभी सामग्रियों के आधार पर जो समग्र तस्वीर उभरती है वह यह है कि बच्चे की तस्करी नहीं की गई है। हालांकि जैविक पिता द्वारा फिरोजपुर में CWC के समक्ष कोई औपचारिक आत्मसमर्पण नहीं किया गया था, उन्होंने एड‌िशनल सिविल जज (सीनियर डिवीजन), फिरोजपु के समक्ष शपथ पर पुष्टि की है ‌कि उन्होंने बच्चे को गोद लेने के लिए स्वेच्छा से सौंपा गया था। हालांकि बच्चे को गोद लेने की कोई वैध अनुमति नहीं है, याचिकाकर्ता और याचिकाकर्ता नंबर 2 के माता-पिता ने बच्चे की अच्छी देखभाल की है।"

    यह मानते हुए कि सिस्टर ईए के कृत्य "उचित नहीं" थे, कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि वह गोद लेने के लिए बच्चे की तस्करी में लिप्त थी। ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने चचेरे भाई, याचिकाकर्ता नंबर 2 की मदद कर रही थी।

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं को CWC में वापस भेजने से मामले में और देरी होगी, न्यायालय ने निम्नलिखित घोषणाएं कीं-

    (i) यह कि बच्चा गोद लेने के योग्य है;

    (ii) कि याचिकाकर्ताओं ने नाबालिग बच्चे को जन्म के तुरंत बाद उन्हें सौंपे जाने के समय से एक "पालक परिवार" के रूप में देखभाल की है और CWC से किसी और आदेश की आवश्यकता नहीं है;

    (iii) बच्चा अब छह साल से अधिक का है और याचिकाकर्ता और याचिकाकर्ता संख्या 2 के माता-पिता उसकी अच्छी तरह से देखभाल कर रहे हैं और बच्चे को उनके प्रभार और हिरासत से हटाने का कोई कारण नहीं है;

    (iv) याचिकाकर्ता नए नियमों के अनुसार अपने पालक बच्चे को गोद लेने के लिए उपयुक्त और योग्य हैं;

    (v) कि बच्चे को याचिकाकर्ताओं को गोद लेने दिया जाए।

    इसलिए अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता नए नियमों के अनुसार पालक बच्चे को गोद लेने के लिए योग्य हैं और बच्चे को उन्हें गोद लेने के लिए दिया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने CARA को आवश्यक एनओसी जारी करने का भी निर्देश दिया और कहा कि वह NRI या OCI संबंध‌ित जेजे एक्ट की धारा 59 (3) के प्रावधानों के अनुपालन पर जोर नहीं देगा।

    इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने CARA को यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि चाइल्ड-लाइन और CCI में या उसके साथ काम करने वाले सभी व्यक्तियों को गोद लेने की प्रक्रिया से पूरी तरह अवगत कराया जाए ताकि कोई भी गुमराह न हो।

    कोर्ट ने फैसले में पक्षकारों के नाम गुमनाम रखे।

    केस टाइटिल: जेएस और अन्य बनाम केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण और अन्य।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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