'बच्‍चों का कल्याण सर्वोपरि': गुजरात हाईकोर्ट ने 5 साल के अनाथ की कस्टडी दादा-दादी के बजाय मौसी को सौंपी

LiveLaw News Network

4 May 2022 11:38 AM GMT

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में पांच साल के बच्चे की कस्टडी उसकी मौसी को दी है। बच्‍चे के माता-पिता का COVID-19 महामारी के दरमियान निधन हो गया था।

    जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस मौना भट्ट की खंडपीठ ने कहा,

    "बच्चे की कस्टडी के मामलों का फैसला करते समय अदालत केवल माता-पिता या अभिभावक के कानूनी अधिकार से बाध्य नहीं है। हालांकि विशेष कानूनों के प्रावधान माता-पिता या अभिभावकों के अधिकारों को नियंत्रित करते हैं, लेकिन नाबालिग बच्चे की कस्टडी से संबंधित मामले में नाबालिग का कल्याण सबसे ऊपर है। अदालत के लिए सर्वोपरि विचार बच्चे का हित और बच्चे का कल्याण होना चाहिए।"

    कोर्ट कॉर्पस के दादा बनाम मामा, मौसी और नाना द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहा था। मामले के तथ्य यह थे कि कॉर्पस के माता-पिता का 2021 में महामारी के दौरान COVID -19 के कारण निधन हो गया था, उस समय कॉर्पस की कस्टडी मौसी के पास थी। आरोप है कि तब से मौसी ने याचिकाकर्ता को अपने बेटे और बहू के घर में उसका सामान लेने के लिए प्रवेश नहीं करने दिया। इससे क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने कॉर्पस की कस्टडी की मांग की।

    यह कहा गया कि याचिकाकर्ता केंद्र सरकार का सेवानिवृत्त कर्मचारी था, जो अहमदाबाद में अपने ही घर में अपनी पत्नी के साथ एक आरामदायक जीवन शैली और अच्छे स्वास्थ्य के साथ रहता था। कॉर्पस के माता-पिता, जीवित रहते हुए, अहमदाबाद में ‌ही उनसे अलग रहते थे।

    नतीजतन, कॉर्पस को शहर में रहने की आदत थी और वह अपनी मौसी के साथ दाहोद में रहने को तैयार नहीं था। याचिकाकर्ता का एक छोटा बेटा भी था जो कोयंबटूर में बसा हुआ था और उसे किसी भी मदद के लिए बुलाया जा सकता था। इसलिए, यह कहा गया कि बच्चे के व्यापक हित में, दादा-दादी के साथ रहना कॉर्पस के लिए फायदेमंद होगा।

    याचिकाकर्ता ने प्रतिवादियों को सप्ताहांत पर कॉर्पस को लेने या नियमित रूप से वीडियो कॉल करने पर कोई आपत्ति नहीं व्यक्त की।

    प्रतिवाद‌ियों ने अनुसार याचिकाकर्ता ने जाति के अंतर के कारण अपने बेटे और बहू की शादी को स्वीकार नहीं किया था और शादी के दौरान मौजूदा नहीं था। नतीजतन, शांति बनाए रखने के लिए कॉर्पस के माता-पिता को अलग से रहना पड़ा। कॉर्पस के मां के परिवार ने बीमारी के दौरान कॉर्पस की मां की देखभाल की थी और यहां तक ​​कि उसका अंतिम संस्कार भी किया था। इसके अलावा, दंपति को पैतृक परिवार से कोई समर्थन नहीं मिला था और इसलिए, मातृ परिवार ने उन्हें घर पट्टे पर दिया था। इसके अतिरिक्त, मातृ परिवार एक संयुक्त परिवार था जिसमें एक आरामदायक जीवन शैली थी जो कॉर्पस का सहयोग करने में सक्षम थी।

    हाईकोर्ट ने उल्लेख किया कि दोनों पक्षों और कॉर्पस को भारी आघात और पीड़ा को देखते हुए मध्यस्थता के माध्यम से विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के कई प्रयासों के बावजूद, पक्ष समझौता करने के लिए तैयार नहीं थे।

    नतीजतन, यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य (2020) 3 एससीसी 67 पर भरोसा करते हुए बेंच ने जोर देकर कहा कि बच्चे के कल्याण को देखते हुए तकनीकी आपत्तियां आड़े नहीं आ सकतीं।

    आगे वसुधा सेठी बनाम किरण वी भास्कर 2022 एससीसी ऑनलाइन एससी 43 का संदर्भ दिया गया जहां सुप्रीम कोर्ट ने आयोजित किया था, "बच्चे के कल्याण में क्या है यह कई कारकों पर निर्भर करता है। एक कस्टडी विवाद में मानवीय मुद्दे शामिल होते हैं जो हमेशा जटिल होते हैं। नाबालिग बच्चे की कस्टडी के मुद्दे को तय करने के लिए एक सीधा फॉर्मूला कभी नहीं हो सकता है क्योंकि इसमें क्या है एक नाबालिग का सर्वोपरि हित हमेशा तथ्य का प्रश्न होता है।"

    तदनुसार, मिसालों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने मौसी को कॉर्पस की कस्टडी देना उचित समझा।

    यह निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता 31 मई, 2022 को मौसी को कॉर्पस की कस्टडी दे, जबकि कॉर्पस की शिक्षा नए शैक्षणिक वर्ष से दाहोद में शुरू होनी थी। हाईकोर्ट ने मौसी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि दादा-दादी नियमित रूप से (महीने में दो बार) कॉर्पस से मिल सकते हैं और छुट्टियों के दौरान उससे मिल सकते हैं।

    केस शीर्षक: स्वामीनाथन कुंचू आचार्य बनाम गुजरात राज्य

    केस नंबर: R/SCR.A/6708/2021

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