'कोमल उम्र के बच्चे को उकसाने और पढ़ाए जाने की संभावना': कलकत्ता हाईकोर्ट ने पत्नी की हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया
Avanish Pathak
24 May 2022 4:23 PM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला की हत्या के अपराध में पति को दोषी ठहराने के आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि घटना की प्रत्यक्षदर्शी बच्ची की उम्र बहुत ही कम थी, जिस कारण उसे परिस्थितियां समझ में नहीं आई थी और उसके पढ़ाया भी जा सकता था।
इस मामले में, मृतका अपने ससुराल में जल गई थी और बाद में जिस अस्पताल में उसे भर्ती कराया गया, वहां उसकी मृत्यु हो गई।
जस्टिस बिवास पटनायक और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने नोट किया कि संबंधित ट्रायल कोर्ट ने चाइल्ड विटनेस के बयान पर बहुत भरोसा किया था, जिसे अदालत ने धारा 311 सीआरपीसी के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ एक निष्कर्ष दर्ज करने के लिए बुलाया था।
एक चाइल्ड विटनेस के साक्ष्य की अत्यधिक सावधानी से जांच करने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, न्यायालय ने कहा,
"जब अभियोजन मुख्य रूप से एक चाइल्ड विटनेस के साक्ष्य पर निर्भर करता है, तो अदालत का यह कर्तव्य है कि वह उक्त गवाह के साक्ष्य की अत्यधिक सावधानी से जांच करे। टेंडर एज का एक बच्चा को पढ़ाया जा सकता है। इसलिए, कोर्ट का यह कर्तव्य है कि वह न केवल चाइल्ड विटनेस की परिस्थितियों को समझने की क्षमता पर, बल्कि उन लोगों द्वारा गवाह को पढ़ाए जाने की संभावना पर भी, जिनका उस पर नियंत्रण है, की जांच करे।"
अदालत ने आगे कहा कि घटना के समय मृतक का बच्चा मुश्किल से दो साल का था और घटना के समय बच्चे की वास्तविक उम्र के संबंध में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। यह भी देखा गया कि जबकि एक चाइल्ड विटनेस के साक्ष्य की स्वीकार्यता उसके द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समझने और साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अनुसार तर्कसंगत उत्तर देने की उसकी क्षमता पर निर्भर है, उसके बयान का संभावित मूल्य एक अतिरिक्त कारक पर निर्भर करेगा, यानि घटना के समय घटनाओं को समझने की उसकी क्षमता पर।
आगे यह राय देते हुए कि चाइल्ड विटनेस उन परिस्थितियों को समझने की स्थिति में नहीं थी, जिनमें उसकी मां की मृत्यु हुई थी। अदालत ने आगे कहा,
"मौजूदा मामले में, हालांकि चाइल्ड विटनेस अपनी जांच के समय छह साल का था और सवालों के जवाब देने में सक्षम था, तर्कसंगत रूप से, यह ध्यान में रखना चाहिए कि वह 2010 में हुई घटनाओं के संबंध में बयान दे रहा था जब वह मुश्किल से दो वर्ष की भी नहीं थी, (अदालत में अपने स्वयं के बयान के अनुसार)। चाइल्ड विटनेस की अत्यंत कोमल आयु, अर्थात घटना के समय 2-3 वर्ष के बीच गंभीर संदेह को जन्म देता है कि क्या उक्त गवाह उन परिस्थितियों को समझने में सक्षम थी, जिसमें उसकी मां को जलने की चोटें आई थीं और उसकी मृत्यु हो गई थी।"
अदालत ने आगे कहा कि बच्ची ने घटना के चार साल बाद अदालत के समक्ष पेश किया गया था और इस बीच वह अपने नाना-नानी और चाचाओं के नियंत्रण और कस्टडी में था। कोर्ट ने कहा कि अगर बच्चा उन परिस्थितियों को समझ लेता जिसमें उसकी मां को जलने की चोटें आई थीं, तो वह निश्चित रूप से अपने नाना-नानी और चाचाओं को इस बारे में बता देता, लेकिन उनमें से किसी ने भी इस संबंध में कुछ भी बयान नहीं किया था।
आगे यह माना गया कि मृतक के संबंधियों से पुष्टि के अभाव में, जिसके पास बच्चे की कस्टडी थी, चाइल्ड विटनेस के साक्ष्य पर भरोसा करना मुश्किल था, जिसे चार साल बाद पहली बार अदालत में सुना गया था। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि यह संभव है कि कोर्ट द्वारा समन किए जाने पर बच्चे को उसके नाना-नानी/चाचा ने अपीलकर्ता के खिलाफ गवाही देने के लिए पढ़ाया हो।
पीठ ने आगे कहा कि यदि चाइल्ड विटनेस पर विश्वास नहीं किया जाता है, तो यह स्पष्ट करने के लिए कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है कि मृतक कैसे जली थी। यह भी मत व्यक्त किया गया कि मामले के उपस्थित तथ्य और परिस्थितियां आकस्मिक रूप से जलने की संभावना से पूरी तरह इंकार नहीं करती हैं।
तदनुसार, न्यायालय ने यह कहते हुए अपीलकर्ता को बरी कर दिया, "अभियोजन मामले में ये खामियां इस बात का संदेह छोड़ती हैं कि पीड़िता को दुर्घटनावश जलने से चोटें आई हैं, जिसके कारण उसके पति जो कि अपीलकर्ता है और उसकी सास को उसकी जान बचाने के लिए सभी उपाय करने के लिए प्रेरित किया। इस पृष्ठभूमि में मैं अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देने और उसके खिलाफ लगाए गए आरोप से उसे बरी करने का इच्छुक हैं।"
केस टाइटल: पियारुल एसके बनाम पश्चिम बंगाल राज्य
केस साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (Cal) 202