पुरुष-प्रधान समाज में चंद लालची पुरुषों और महिलाओं द्वारा चरित्र हनन किया जाना आम बात है, यह व्यक्तियों को प्रभावित करता हैः मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
12 Nov 2020 6:55 PM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार (09 नवंबर) को कहा कि "पुरुष-प्रधान समाज में चरित्र हनन आम है। हमारे देश में एक ही लिंग के बीच भी चरित्र हनन प्रचलित है।"
जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम की खंडपीठ याचिकाकर्ता/ एकमात्र अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे आईपीसी की 306 के तहत गिरफ्तार किया गया था और न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
मामला
यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता मृतक महिला का रिश्तेदार है, जिसने आत्महत्या कर ली थी। याचिकाकर्ता के खिलाफ इस आधार पर मामला दर्ज किया गया था कि रिश्तेदार होने के नाते वह मृतक महिला का चरित्र हनन किया करता था और निरंतर उत्पीड़न के कारण, महिला ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली।
याचिकाकर्ता/ अभियुक्त को पर आरोप था कि उसने चरित्र हनन करके महिला को परेशान किया था।
न्यायालय की टिप्पणी
मरने के अधिकार के बारे में, कोर्ट ने कहा, "हमारे नागरिकों को मृत्यु का अधिकार उपलब्ध नहीं कराया जाता। हालांकि, कुछ विचारकों का मत है कि जीवन के अधिकार में मृत्यु का अधिकार भी शामिल है। यह निहित अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किया गया है।
यहां तक कि भारतीय दंड संहिता के तहत, वह व्यक्ति जो इस तरह की आत्महत्या करने में सफल रहा है, निश्चित रूप से उसे दंडित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि आत्महत्या खुद की गई हत्या है।"
न्यायालय ने आगे कहा, "मृतक को आत्महत्या के लिए उकसाने वाले व्यक्तियों पर अकेला मुकदमा चलाया जाता है। आत्महत्या के लिए उकसाने के बारे में निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए यह एक बड़ा मुद्दा/ बड़ी रेखा है।
अभियोजन पक्ष के लिए यह बहुत मुश्किल होगा, और कुछ परिस्थितियों के आधार पर, न्यायालय एक निष्कर्ष पर भी पहुंच रहे हैं कि उकसाया गया है। हालांकि, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।"
न्यायालय ने यह भी कहा कि गपशप और चरित्र हनन कुछ निश्चित लक्षण हैं "कुछ लालची पुरुषों और महिलाओं द्वारा विकसित और कुछ अवसरों पर गैर-इरादतन चरित्र हनन भी व्यक्ति पर एक निश्चित प्रभाव डालता है।"
मौजूदा मामले के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि यह इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता कि केवल चरित्र हनन के कारण आत्महत्या का कृत्य किया गया है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि इन सभी संभावनाओं और प्रायिकताओं की जांच की जानी चाहिए और ट्रायल के दौरान सच्चाई का पता लगाया जाना चाहिए।
अंत में, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और कैद की अवधि को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत दी। कोर्ट ने जमानत के लिए उसे 10,000 का बांड और कोर्ट की संतुष्टि के अनुसार उतनी ही राशि के दो जमानतदार पेश करने की अनुमति दी।
न्यायालय ने उल्लेख किया, "एक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कि क्या आत्महत्या को अपराध बनाया जा सकता है, या जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार भी निहित है, यह कानून निर्माताओं के लिए भी है कि वे विशेषज्ञों और शिक्षाविदों की सहायता से एक बड़ा अध्ययन करे मुद्दों पर बहस करें।"
केस टाइटिलः बालासुब्रमण्यम बनाम राज्य [सीआरएल ओपी (एमडी), 2020 of No.12606]