केंद्र सरकार ने गैर-अधिसूचित खानाबदोश जनजातियों को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाए हैं: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
13 July 2022 12:42 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि केंद्र सरकार द्वारा गैर-अधिसूचित खानाबदोश जनजातियों को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाए गए हैं।
चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने उस जनहित याचिका का निपटारा किया, जिसमें उचित योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी ताकि गैर-अधिसूचित खानाबदोश और अर्ध-घुमंतू जनजातियों के प्रत्येक सदस्य को भारत के संविधान में गारंटीकृत मौलिक अधिकार प्राप्त हो।
याचिकाकर्ता का यह मामला था कि गैर-अधिसूचित घुमंतू जनजाति, अर्ध-घुमंतू जनजाति और बंजारे, गड़िया लुहार, बावरिया, नट, कालबेलिया, बोपा, सिकलीगर, सिंगीवाल, कुचबंदा, कलंदर आदि जैसी घुमंतू जनजातियों के सदस्यों की उपेक्षा की जा रही है और उन्हें सही से मुख्यधारा में नहीं लाया गया है।
यह कहा गया कि स्वतंत्रता से पहले आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत उक्त जनजाति के सदस्यों को उक्त अधिनियम में नामित किया गया और उन्हें जन्म से अपराधियों की तरह माना जाता है, क्योंकि उन्होंने वर्ष 1857 में स्वतंत्रता के पहले युद्ध में भाग लिया था।
इसलिए यह तर्क दिया गया कि इस तथ्य के कारण इन जनजातियों को एक स्थान पर बसने की अनुमति नहीं हैं और उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर किया गया है।
कोर्ट ने केंद्र द्वारा दायर हलफनामे पर ध्यान दिया। इस हलफनामा में कहा गया कि केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर सरकारें गैर-अधिसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए योजनाओं को लागू कर रही है।
यह आगे प्रस्तुत किया गया कि वित्तीय वर्ष 2021-22 से शुरू होने वाले अगले 5 वर्षों के लिए 200 करोड़ रुपये के बजट के साथ गैर-अधिसूचित जनजातियों के आर्थिक सशक्तिकरण (बीज) के लिए एक कल्याण योजना को सामाजिक न्याय विभाग द्वारा अनुमोदित किया गया है और एम्पावरमेंट और इसे बहुत जल्द लॉन्च किए जाने की संभावना है।
हलफनामे में यह भी कहा गया कि सरकार द्वारा समग्र शिक्षा योजना के तहत इन जनजातियों के बच्चों को उचित शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं लाई गई हैं।
अदालत ने कहा,
"प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए जवाबी हलफनामे और स्टेटस रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि वर्तमान रिट याचिका में याचिकाकर्ता की प्रार्थनाओं का उत्तर दिया गया है, क्योंकि सरकार द्वारा इन गैर-अधिसूचित जनजातियों को मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाए गए हैं। इस मामले में आगे कोई आदेश/निर्देश आवश्यक नहीं है।"
तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।
केस टाइटल: सालेक चंद जैन बनाम सामाजिक न्याय मंत्रालय और अन्य।
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें