सुनी-सुनाई बातों के आधार पर सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर बीमा दावे पर निर्णय नहीं लिया जा सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट

Shahadat

31 Oct 2023 12:55 PM IST

  • सुनी-सुनाई बातों के आधार पर सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर बीमा दावे पर निर्णय नहीं लिया जा सकता: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि यदि किसी विशेष घटना के बारे में बीमा कंपनी सर्वेक्षक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट समाचार लेखों और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित है तो इसे बीमा राशि के लिए पॉलिसी धारक की पात्रता तय करने के लिए नहीं माना जा सकता।

    जस्टिस पी. श्री सुधा ने निष्कर्ष निकाला कि आपराधिक मामले में बरी किया जा रहा वादी (प्रतिवादी) दुर्घटना के लिए जिम्मेदार नहीं है और सर्वेक्षणकर्ता ने नुकसान का उचित आकलन नहीं किया।

    कोर्ट ने कहा,

    "अपीलकर्ता/प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि प्रतिवादी कंपनी अपने सर्वेक्षक के माध्यम से स्वतंत्र जांच द्वारा विस्फोट के कारण को सत्यापित कर सकती है। इस तरह भले ही वादी को आपराधिक मामले में बरी कर दिया गया हो, वे मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। अपीलकर्ता के वकील का तर्क बिल्कुल भी टिकाऊ नहीं है, क्योंकि सर्वेक्षक (डीडब्ल्यू1) ने केवल स्थानीय लोगों से पूछताछ की और अखबार की कतरनों पर भरोसा किया और माना कि वादी ने अकेले ही कारखाने में विस्फोट किया।''

    अपीलकर्ताओं से 13,83,380 रुपये की पॉलिसी राशि की वसूली के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुकदमा दायर किया गया।

    ट्रायल कोर्ट के समक्ष वादी/प्रतिवादी (नागा दुर्गा सिल्क रीलिंग इंडस्ट्री) ने तर्क दिया कि उसने अपने भवन, मशीनरी सहायक उपकरण आदि की सुरक्षा के लिए अपीलकर्ताओं (न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) से एक वर्ष 1998-1999 की अवधि के लिए 16 लाख की पॉलिसी ली थी।

    17.11.1998 को वादी की फैक्ट्री में आग लग गई, जिसके परिणामस्वरूप काफी क्षति हुई। वादी ने घटना की सूचना पुलिस को दी, जिसके बाद उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया। हालांकि, बाद में वादी को बरी कर दिया गया। वादी ने बीमा राशि का दावा किया, लेकिन बीमा कंपनी ने यह कहते हुए दावा अस्वीकार कर दिया कि क्षति अप्रत्याशित नहीं है और धोखाधड़ी है।

    वादी ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष वसूली के लिए कार्यवाही शुरू की। प्रतिवादी ने तर्क दिया कि मुकदमा परिसीमा द्वारा वर्जित है और वादी ने धोखाधड़ी की। प्रतिवादी के सर्वेक्षक ने तर्क दिया कि यह नुकसान बीमाधारक के जानबूझकर किए गए कृत्यों के कारण हुआ। प्रतिवादी का मामला सर्वेक्षक की रिपोर्ट और दुर्घटना की रिपोर्ट करने में देरी पर आधारित है।

    हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने राहत दे दी। उक्त आदेश से व्यथित होकर बीमा कंपनी ने वर्तमान अपील दायर की।

    जस्टिस श्री सुधा ने कहा कि अपीलकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुख्य तर्क यह है कि उन्होंने स्वतंत्र सर्वेक्षण किया, जिसके बाद ही याचिकाकर्ता के दावे को अस्वीकार कर दिया गया कि याचिकाकर्ता ने तय समय में बीमा अधिकारियों से संपर्क नहीं किया।

    खंडपीठ ने कहा कि बीमा कंपनी द्वारा नियुक्त सर्वेक्षक ने समाचार पत्रों की कतरनों और मौखिक चर्चा के आधार पर रिपोर्ट दाखिल करने की बात स्वीकार की। यह भी पाया गया कि रिपोर्ट में नुकसान की सीमा आदि के संबंध में किसी भी निष्कर्ष का उल्लेख नहीं किया गया और माना गया कि इस तरह रिपोर्ट पर विचार नहीं किया जा सकता।

    आगे यह माना गया कि लॉकअप में कैद होने के कारण दावेदार के लिए समय पर अधिकारियों से संपर्क करना असंभव है।

    अदालत ने फैसले को संशोधित किया और वादी को नुकसान के लिए 9,52,000 रुपये और लंबित ब्याज के रूप में 2,99,880 रुपये दिए। इस तरह वादी को कुल पुरस्कार 12,51,880 रुपये मिले।

    इस प्रकार अपील जुर्माने के साथ खारिज कर दी गई और संशोधित निर्णय बरकरार रखा।

    केस नंबर: अपील सूट नंबर 645/2008

    अपीलकर्ता के वकील: कोटा सुब्बा राव और प्रतिवादी के वकील: वी. रवि किराब राव

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