क्या हाईकोर्ट कार्यवाही को एक विदेशी न्यायाधिकरण से दूसरे में ट्रांसफर कर सकता है? गुवाहाटी हाईकोर्ट की बड़ी बेंच फैसला करेगी
Avanish Pathak
23 Jan 2023 7:23 AM GMT
क्या संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट असम में एक कार्यवाही को एक विदेशी ट्रिब्यूनल से दूसरे विदेशी ट्रिब्यूनल में ट्रांसफर कर सकता है। गुवाहाटी हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में यह सवाल हाल ही बड़ी बेंच को भेज दिया।
याचिकाकर्ताओं का मामला था कि चूंकि वे उन जिलों के स्थायी निवासी नहीं हैं, जहां कार्यवाही लंबित है, इसलिए उनके मामलों को उनके संबंधित जिलों में स्थित विदेशी ट्रिब्यूनल में स्थानांतरित किया जा सकता है, जहां वे स्थायी निवासी हैं, ताकि वे अपनी नागरिकता को स्थापित करने की कार्यवाही मजबूती से लड़ सकें।
जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस अरुण देव चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने कार्यवाही को उन विदेशी ट्रिब्यूनल से, जहां कार्यवाही शुरू की गई है, उन जिलों में स्थित विदेशी ट्रिब्यूनल में, जहां वे स्थायी रूप से निवासी हैं, में स्थानांतरित करने की मांग की गई है, न्याय के हित में किसी कार्यवाही को एक विदेशी अधिकरण से दूसरे विदेशी अधिकरण में स्थानांतरित करने का निर्देश देने के लिए हाईकोर्ट को कोई नहीं रोकता है।
कोर्ट ने शरीफुल इस्लाम @ सोरिफुल इस्लाम और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य और रिट याचिकाओं का एक जुड़े हुआ बैच WP(C) No.2780/2019, मामले में एक अन्य डिवीजन बेंच के फैसले से असहमति जताई।
उन मामलों में पीठ ने कहा,"जहां तक संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्तियों का प्रयोग का संबंध है, कानून से प्राप्त किसी भी सक्षम प्रावधान के अभाव में, और चूंकि न्यायिक तथ्य का अस्तित्व ट्रिब्यूनल द्वारा अधिकार क्षेत्र की धारणा के लिए अनिवार्य है, और सीपीसी की धारा 24 विदेशी ट्रिब्यूनल के समक्ष कार्यवाही के संबंध में लागू नहीं होती है, और संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को प्रदत्त हाईकोर्ट की ऐसी किसी समतुल्य शक्ति के अभाव को देखते हुए, हाईकोर्ट विदेशी न्यायाधिकरण की कार्यवाही के ट्रांसफर की प्रार्थना को स्वीकार नहीं कर सकता है।
जस्टिस सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि शरीफुल इस्लाम में अदालत ने 'ज्यूरिसडिक्शनल फैक्ट' को 'टेरीटोरियल ज्यूरिसडिक्शन' के साथ मिला दिया है।
कोर्ट ने कहा,
"यदि हम "टेरिटोरियल ज्यूरिसडिक्शन" को "ज्यूरिसडिक्शनल फैक्ट" से अलग करते हैं, तो एक विदेशी ट्रिब्यूनल से दूसरे विदेशी ट्रिब्यूनल में कार्यवाही के हस्तांतरण को निर्देशित करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती है।
फॉरेनर्स (ट्रिब्यूनल) ऑर्डर, 1964 के तहत असम राज्य में गठित और संचालन करने वाले प्रत्येक विदेशी ट्रिब्यूनल के पास इस मुद्दे को तय करने की क्षमता और अधिकार क्षेत्र है कि क्या नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए(3) के तहत कोई व्यक्ति विदेशी है या नहीं।"
पीठ ने अनीता कुशवाहा बनाम पुष्प सूदन, (2016) 8 SCC 509 पर चर्चा की, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि न्याय तक पहुंच मौलिक अधिकार है, सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 के तहत शक्ति का प्रयोग करके एक अदालत से दूसरे अदालत में मामलों के सीधे हस्तांतरण सहित आवश्यक निर्देश जारी करके इस तरह के अधिकार को लागू कर सकती है।
जस्टिस सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अनीता कुशवाहा के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला निश्चित रूप से हाईकोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार, यानी न्याय तक पहुंच को लागू करने की शक्ति प्रदान करता है, जिसमें तंत्र का कार्यात्मक होना, दूरी के संदर्भ में सुलभ होना, और निर्णय प्रक्रिया का सस्ता होना शामिल है। फैसले में कहा गया है कि उक्त सभी बिंदु आमतौर पर एक विदेशी ट्रिब्यूनल से दूसरे विदेशी ट्रिब्यूनल में कार्यवाही के हस्तांतरण के लिए आधार होते हैं।
अदालत ने कहा कि दी गई स्थिति में अगर यह पाया जाता है कि एक व्यक्ति विदेशी न्यायाधिकरण के समक्ष अपने मामले को साबित करने के लिए दस्तावेजों और गवाहों को इकट्ठा करने में असमर्थता के कारण पूर्वाग्रह से ग्रसित है, क्योंकि वह जहां रहता है और जिस जगह पर कार्यवाही हो रही है, के बीच लंबी दूरी है, हाईकोर्ट कार्यवाही को एक विदेशी न्यायाधिकरण से पास या उस स्थान पर स्थित विदेशी न्यायाधिकरण को स्थानांतरित करने का निर्देश दे सकता है, जहां व्यक्ति आमतौर पर रहता है।
केस टाइटल: जोंगलू अली @ जांगलू अली बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 5 अन्य।
कोरम: जस्टिस एन कोटेश्वर सिंह और जस्टिस अरुण देव चौधरी