'ऐसी सहमति का कोई महत्व नहीं ': कलकत्ता हाईकोर्ट ने 16 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार करने वाले व्यक्ति की सजा बरकरार रखी

LiveLaw News Network

31 Jan 2022 2:30 AM GMT

  • ऐसी सहमति का कोई महत्व नहीं : कलकत्ता हाईकोर्ट ने 16 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार करने वाले व्यक्ति की सजा बरकरार रखी

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बलात्कार के अपराध के लिए एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए कहा कि नाबालिग पीड़िता की सहमति महत्वहीन है क्योंकि वह कथित घटना के समय 16 वर्ष से कम उम्र की थी। इस मामले में यह कहा गया था कि आरोपी और पीड़िता के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था और कथित संभोग सहमति से किया गया।

    उल्लेखनीय है कि 2013 के आपराधिक कानून संशोधन के अनुसार, भारत में सहमति की आयु 16 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी गई है।

    जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस बिभास रंजन डे की बेंच ने कहा कि,

    ''इस मुद्दे के संबंध में कि क्या पीड़िता ने सहमति दी थी? मेरे विचार से इस तरह की दलील का बहुत कम महत्व होता है। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, अभियोजक ने यह स्थापित किया है कि घटना के समय उसकी उम्र 16 साल से कम थी और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के छठे खंड के मद्देनजर उसकी सहमति महत्वहीन थी। इस पृष्ठभूमि में, भले ही हम मान लें कि यौन संबंध पीड़ित की सहमति से बने थे, परंतु हम इस तरह की सहमति को वैध नहीं मान सकते हैं क्योंकि पीड़ित की उम्र 16 वर्ष से कम थी। इसलिए, बलात्कार का अपराध संदेह से परे साबित होता है।''

    पृष्ठभूमि

    वर्तमान मामले में, अपीलकर्ता ने 7वें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, बारासात, 24 परगना (उत्तर) द्वारा पारित 12 जनवरी, 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), धारा 363 (अपहरण) और धारा 366 ए (नाबालिग लड़की की खरीद) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

    इसी के तहत उसे आईपीसी की धारा 376 के अपराध में 7 साल के सश्रम कारावास की सजा और 20000 रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई है और जुर्माना न भरने पर 10 महीने की अतिरिक्त सजा काटनी होगी। वहीं धारा 363 के तहत अपराध के लिए 5 साल के कठोर कारावास और 5000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। उसे आईपीसी की धारा 366 ए के तहत अपराध के लिए 20000 रुपये के जुर्माने के साथ 8 साल के कठोर कारावास की सजा भी सुनाई गई थी और और जुर्माना न भरने पर 10 महीने की अतिरिक्त सजा काटनी होगी।

    यह आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्ता ने कथित तौर पर उस समय नाबालिग पीड़िता का अपहरण कर लिया था, जब वह सुबह लगभग 3 बजे शौच के लिए गई थी। इसके बाद 3 नवंबर 2010 को डेगंगा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई और 20 अप्रैल 2011 को पुलिस अधिकारियों ने अपीलकर्ता को गिरफ्तार कर पीड़िता को हुगली जिले के बालागढ़ से बरामद कर लिया।

    दलीलें

    अपीलकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पीड़िता और अपीलकर्ता के बीच प्रेम संबंध था और पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में अपहरण की किसी भी घटना का उल्लेख नहीं किया है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि पीड़िता की मां के बयान के साथ-साथ ऑसिफिकेशन टेस्ट रिपोर्ट से पता चलता है कि पीड़िता की उम्र 17 साल से ज्यादा लेकिन 19 साल से कम थी। उन्होंने इस प्रकार प्रस्तुत किया कि पीड़िता ने स्वेच्छा से अपना घर छोड़ा था और अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोप संदेह से परे साबित नहीं हुए हैं।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि अपराध विधिवत साबित हो गए हैं और अपील में कोई मैरिट नहीं है।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि हालांकि गवाहों के बयानों में मामूली विसंगतियां हो सकती हैं, लेकिन ऐसी विसंगतियां महत्वहीन हैं और पीड़िता के जबरन अपहरण के आरोप में कोई सेंध नहीं लगाती हैं।

    अदालत ने कहा कि, ''कल्पना के किसी भी विस्तार से मैं इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता हूं कि अपीलकर्ता ने पीड़िता का अपहरण नहीं किया था। सबूतों से कहीं से भी मुझे यह पता नहीं चलता है कि अपीलकर्ता या तो उसकी सहमति से या उसके वैध अभिभावक की सहमति से पीड़िता को अपने साथे ले गया था।''

    पीड़िता की उम्र के संबंध में, अदालत ने कहा कि पीड़िता के पिता ने बयान दिया था कि अपराध के समय पीड़िता की उम्र लगभग 15 साल और कुछ महीने थी। इसके अलावा, पीड़िता के मूल जन्म प्रमाण पत्र पर भी भरोसा किया गया, जिसमें पीड़िता की जन्म तिथि 28 मार्च, 1995 लिखी हुई है।

    इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि यह सुरक्षित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह शायद जीभ की फिसलन थी जब पीड़िता की मां ने अपने बयान के दौरान अपनी बेटी की उम्र 18 वर्ष बताई थी क्योंकि उसने जिरह के दौरान इस तरह के सुझाव से इनकार करके खुद को विधिवत रूप से ठीक कर लिया था।

    ऑसिफिकेशन टेस्ट के साक्ष्य मूल्य के संबंध में, कोर्ट ने आगे कहा कि,

    ''ऑसिफिकेशन टेस्ट के आधार पर किसी व्यक्ति की उम्र का निर्धारण निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकता क्योंकि इसके परिणाम सटीक नहीं हैं, और यह संबंधित व्यक्ति की सही उम्र का संकेत नहीं देता है। इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता है कि उम्र के निर्धारण बारे में डॉक्टर की राय निर्णायक नहीं है, और इसका केवल पुष्टिकारक मूल्य है। इस मामले में, मुझे लगता है कि पीड़िता के पिता, पीडब्ल्यू-1 का प्रत्यक्ष प्रमाण है,जिसके अनुसार पीड़िता की उम्र 15 वर्ष है और इसकी पुष्टि जन्म प्रमाण पत्र से भी होती है, जिसमें उसकी जन्म तिथि 28.03.1995 लिखी हुई है। ये साक्ष्य स्पष्ट रूप से इस तथ्य को स्थापित करते हैं कि अपराध करने के समय पीड़ित की उम्र 16 वर्ष से कम थी।''

    अदालत ने आगे फैसला सुनाया कि पीड़िता के साक्ष्य, चिकित्सा साक्ष्य और अन्य उपस्थित परिस्थितियों से, यह स्पष्ट है कि पीड़ित का अपहरण करने के बाद, अपीलकर्ता ने विभिन्न स्थानों पर पीड़िता के साथ सहवास किया। हालांकि, भले ही यह मान लिया जाए कि पीड़िता के साथ संभोग सहमति से किया गया था, फिर भी इस तरह की सहमति अमान्य है क्योंकि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी।

    हालांकि, कोर्ट ने माना कि मौजूदा मामले में आईपीसी की धारा 366ए के तहत दोषसिद्धि का आदेश कायम रखने योग्य नहीं है। यह माना गया कि यदि कोई व्यक्ति किसी नाबालिग लड़की को अपने साथ जाने और अपने साथ यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित करता है, तो ऐसे मामले में धारा 366 ए लागू नहीं होती है।

    अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि,

    ''यहां, हमारे मामले में, अभियोजन पक्ष का यह मामला नहीं है कि अपीलकर्ता के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति ने पीड़िता के साथ संभोग किया था। इसलिए उस संबंध में किसी सबूत को पेश करना तो दूर की बात है।''

    तदनुसार, आंशिक रूप से अपील की अनुमति देते हुए, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि

    ''मामले के पूर्वाेक्त दृष्टिकोण में, मैं आईपीसी की धारा 366ए के तहत दोषसिद्धि और सजा के आदेश को रद्द करने के लिए इच्छुक हूं। हालांकि, आईपीसी की धारा 376 और धारा 363 के तहत किए गए अपराधों के लिए दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि की जाती है। दोनों सजाएं साथ-साथ चलेंगी। आगे यह भी निर्देश दिया जाता है कि जुर्माने की राशि, यदि वसूल की जाती है, तो पीड़िता को मुआवजे के रूप में दी जाए।''

    केस का शीर्षक- अमीरुल गाज़ी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

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