कलकत्ता हाईकोर्ट ने जटिल हृदय दोष से पीड़ित 31 सप्ताह के भ्रूण को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की याचिका को अनुमति देने से इनकार किया

LiveLaw News Network

3 Nov 2021 10:38 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट ने जटिल हृदय दोष से पीड़ित 31 सप्ताह के भ्रूण को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की याचिका को अनुमति देने से इनकार किया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को दुर्लभ और जटिल हृदय दोष से पीड़ित 31 सप्ताह के भ्रूण को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की मांग वाली एक महिला की याचिका को अनुमति देने से इनकार कर दिया।

    याचिकाकर्ता को 23 अक्टूबर, 2021 को भ्रूण इकोकार्डियोग्राफी की जांच के बाद पता चला था कि भ्रूण में 'हाइपोप्लास्टिक लेफ्ट हार्ट सिंड्रोम ' का पूर्वानुमान है। यह एक जन्मजात दोष है, जो हृदय से सामान्य रक्त प्रवाह को प्रभावित करता है।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट शाश्वत सरकार ने बुधवार को जस्टिस मोहम्मद निजामुद्दीन को बताया कि हाईकोर्ट के 26 अक्टूबर, 2021 के आदेश के अनुसार 9 विशेषज्ञों वाला एक मेडिकल बोर्ड गठित किया गया था।

    जिसके बाद कोर्ट ने बुधवार को मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लिया, जिसने गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त ना करने की सलाह दी थी।

    जस्टिस निजामुद्दीन ने कहा, "विशेषज्ञों की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए मैं गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर विचार करने का इच्छुक नहीं हूं। सरकारी वकील की दलील पर विचार करते हुए कि राज्य बच्चे और मां की सुरक्षा के लिए हर संभव कदम उठाएगा और एसएसकेएम अस्पताल कलकत्ता में याचिकाकर्ता के प्रवेश की सुविधा प्रदान करेगा और यह भी देखेगा कि मां और बच्चे की सुरक्षा के लिए और चिकित्सा नैतिकता का पालन करते हुए सुरक्षित प्रसव के लिए सभी संभव कदम उठाए जाएं।"

    सुनवाई के दौरान, एडवोकेट शाश्वत सरकार ने दलील दी कि जन्मजात हृदय दोष के कारण पैदा होने के बाद भ्रूण जीवित नहीं रह पाएगा इसलिए गर्भावस्था को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दी जाए। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि जिस मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया था, उसमें कोई बाल रोग विशेषज्ञ नहीं था।

    उन्होंने आगे तर्क दिया, "मेरी मुवक्किल सी-सेक्शन की प्रक्रिया के साथ-साथ सामान्य प्रसव की प्रक्रिया से गुजरने के लिए तैयार हैं, अगर डॉक्टर उन्हें फिट समझें' ।

    हालांकि, जस्टिस निजामुद्दीन ने इस तरह की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और आगे कहा कि अदालत के पास इस तरह का निर्धारण करने की विशेषज्ञता नहीं है और इसके बजाय वह मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर निर्भर करेगा। उन्होंने आगे मौखिक रूप से टिप्पणी की,

    " मुझे एक उदाहरण ‌दिखाएं जहां 31 सप्ताह के बाद कोर्ट ने अनुमति दी है..4 और सप्ताह प्रतीक्षा करें "

    दूसरी ओर, सरकारी वकील अधिवक्ता तपन मुखर्जी ने अदालत को अवगत कराया कि राज्य द्वारा एसएसकेएम अस्पताल, कलकत्ता में याचिकाकर्ता के तत्काल प्रवेश को सुनिश्चित करने के लिए सभी संभव व्यवस्था की गई है।

    "हम ध्यान रखेंगे लेकिन हम कोई गारंटी नहीं दे सकते ", अधिवक्ता मुखर्जी ने आगे टिप्पणी की।

    याचिकाकर्ता की ओर से लिखित निवेदन

    याचिकाकर्ता की ओर से दायर लिखित प्रस्तुतियों में यह बताया गया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, यूनियन ऑफ इंडिया ने 2019 में 20 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मेडिकल बोर्ड के लिए एक गाइंडेंस नोट जारी किया था, जिसमें उसने जन्मजात असामान्यताओं की एक सूची का सिफारिश की थी, जिनके लिए 20 सप्ताह के बाद भी गर्भ समाप्ति की अनुमति दी जानी चाहिए।

    आगे तर्क दिया गया था कि याचिकाकर्ता को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) एक्ट, 2021 की धारा 3(2बी) और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (अमेंडमेंट) रूल्‍स के रूल 4ए (3) के अनुसार गर्भपात कराने का अधिकार है।

    आगे तर्क दिया गया, "याचिकाकर्ता के पास अपनी प्रजनन पसंद है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक अविभाज्य हिस्सा है जैसा कि सुचिता श्रीवास्तव बनाम चंडीगढ़ प्रशासन में सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित किया था।"

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता शाश्वत सरकार ने ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (HRLN) के माध्यम से किया है।

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