देवरित फायरिंग: कलकत्ता हाईकोर्ट ने एनआईए जांच के आदेश दिए, पश्चिम बंगाल सीआईडी की जांच को 'अपर्याप्त' बताया

Shahadat

11 May 2023 5:31 AM GMT

  • देवरित फायरिंग: कलकत्ता हाईकोर्ट ने एनआईए जांच के आदेश दिए, पश्चिम बंगाल सीआईडी की जांच को अपर्याप्त बताया

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को उत्तर दिनाजपुर जिले के इस्लामपुर ब्लॉक के देरवित हाईस्कूल में गोलीबारी और बम विस्फोट की घटना से संबंधित मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित कर दी।

    जस्टिस राजशेखर मंथा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,

    "इस तथ्य को देखते हुए कि पुलिस ने चार्जशीट में आंदोलन के दौरान बम से हमला करने वाली भीड़ के बारे में उल्लेख किया, उनकी ओर से पहली और महत्वपूर्ण कार्रवाई केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय को उसी के बारे में सूचित करना होगा, जिससे मामला विचार किया जा सकता है या राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को भेजा जा सकता है।

    मामले के तथ्य

    20 सितंबर, 2018 को दारिविट हाईस्कूल के छात्रों और अभिभावकों ने स्कूल में दो संस्कृत और उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का विरोध करना शुरू कर दिया।

    एफआईआर में कहा गया कि पुलिस को दोपहर 2.05 बजे सूचना मिली कि स्कूल के छात्रों ने आंदोलन शुरू कर दिया। सूचना मिलने पर प्रभारी निरीक्षक, इस्लामपुर थाना, अतिरिक्त अधिकारियों और पुलिस बल के साथ स्कूल पहुंचे और बड़ी संख्या में छात्रों और लगभग 1000 अन्य लोगों को उर्दू और संस्कृत शिक्षकों की नियुक्ति के खिलाफ आंदोलन करते देखा। छात्रों ने पुलिस को स्कूल में घुसने से रोक दिया।

    यह आरोप लगाया गया कि पुलिस बल पर अनियंत्रित भीड़ द्वारा ईंटों, लाठी, बम और आग्नेयास्त्रों से अचानक हमला किया गया। कई पुलिस कर्मियों के घायल होने की खबर है। पुलिस ने भी आंसू गैस के गोले दागे और रबर की गोलियां चलाईं। यह कहा गया कि तीन नागरिकों और एक पुलिस अधिकारी को गोली लगी और कई पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। आगे यह कहा गया कि जिन तीन नागरिकों को गोली लगी, उनमें से दो ने दम तोड़ दिया।

    इस्लामपुर पुलिस स्टेशन द्वारा 14 व्यक्तियों और 1500 अन्य अनाम व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 147, 148, 149, 186, 353, 333, 326, 307, 302, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3 और 5, पश्चिम बंगाल रखरखाव सार्वजनिक व्यवस्था (WBMPO) अधिनियम, 1972 की धारा 9 और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत एक स्व-प्रेरणा एफआईआर दर्ज की गई।

    सीआईडी, पश्चिम बंगाल ने 25 सितंबर, 2018 को इस्लामपुर थाने से जांच अपने हाथ में ली। उसके बाद सीआईडी के आठ लगातार जांच अधिकारियों द्वारा जांच 4 वर्षों तक जारी रही। सात नवंबर 2022 को चार्जशीट दाखिल की गई।

    4 अक्टूबर, 2018 को तीन रिट याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें निम्नलिखित आधारों पर जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करने की मांग की गई:

    1. दो पुलिस अधिकारियों और दो विधायकों के खिलाफ रिट याचिकाकर्ताओं की दिनांक 25 सितंबर 2018 की एक और शिकायत पर सीआईडी द्वारा विचार या जांच नहीं की गई। उक्त दूसरी शिकायत अक्टूबर 2018 को दायर रिट याचिका के साथ संलग्न की गई, जिसके बावजूद सीआईडी द्वारा इसे नज़रअंदाज कर दिया गया।

    2. सीआईडी ने एनएचआरसी की सिफारिशों पर विचार नहीं किया।

    3. सीआईडी द्वारा वास्तविक अपराधियों की पहचान नहीं की गई।

    4. घटना के समय चलाई गई गोलियों के कारतूसों का विश्लेषण सीआईडी द्वारा नहीं किया गया। हालांकि वे इस्लामपुर पुलिस द्वारा उपलब्ध और एकत्र किए गए, जैसा कि स्थानीय ग्रामीणों ने देखा।

    5. पीड़ितों का पोस्टमार्टम परिवार के सदस्यों की उपस्थिति के बिना किया गया।

    6. अनुरोध के बावजूद दूसरा पोस्टमार्टम नहीं किया गया।

    7. सीआईडी की जांच का मकसद सिर्फ निर्दोष ग्रामीणों को फंसाना है।

    यह सुनिश्चित करना और जांच में जनता का विश्वास जगाना आवश्यक है कि यह जांच राज्य के बाहर किसी एजेंसी द्वारा सौंपी और संचालित की जाती है। इससे निष्पक्ष जांच सुनिश्चित होगी और तभी सच्चाई सामने आएगी। केवल सीबीआई ही घटना में प्रभावशाली राजनीतिक व्यक्तियों की भूमिका और दो लड़कों की मौत में राज्य पुलिस की भूमिका की जांच कर सकती।

    एनएचआरसी की ओर से पेश वकील सुबीर सान्याल ने प्रस्तुत किया कि एनएचआरसी ने विस्तृत रिपोर्ट संलग्न की, जो खुलासा करती है कि सीआईडी, पश्चिम बंगाल द्वारा की गई जांच लापरवाह है। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि तथ्यों और परिस्थितियों, जिसके कारण घटना हुई, और घटना के दौरान और उसके बाद हुई घटनाओं को सीआईडी, पश्चिम बंगाल द्वारा दबा दिया गया और जानबूझकर अनदेखा किया गया।

    एनएचआरसी के वकील ने यह भी तर्क दिया कि राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया और इसका उद्देश्य केवल राज्य प्रशासन और पुलिस की रक्षा करना है।

    राज्य की ओर से पेश वकील सुभब्रत दत्ता ने तर्क दिया कि सीआईडी ने निष्पक्ष और व्यापक जांच की और घटना के चार साल से अधिक समय के बाद चार्जशीट दायर की गई। यह आगे आरोप लगाया गया कि ऐसा प्रतीत होता है कि एक भी व्यक्ति को समन नहीं किया गया और न ही एनएचआरसी के समक्ष कोई साक्ष्य दर्ज किया गया। एनएचआरसी द्वारा एकत्र की गई कोई भी तस्वीर या वीडियो फुटेज उसकी रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत नहीं की गई।

    न्यायालय ने कहा कि 21 सितंबर, 2018 से आज तक एसएचआरसी पूर्ण निष्क्रियता का दोषी रहा है। अदालत ने कहा कि उन्होंने 1993 के अधिनियम की धारा 12, 13, 14, 15, 16, 17 और 18 के तहत विशिष्ट शक्तियों के बावजूद न तो मौके पर जांच के लिए टीम भेजी है और न ही उन्होंने मामले की जांच के लिए चुना है।

    अदालत ने आगे कहा,

    "एसएचआरसी ने लगभग 5 वर्षों के लिए केवल डीएम, डीजी, सीआईडी, एसडीओ और एसपी से रिपोर्ट मांगी। इस तरह की अंतिम रिपोर्ट एसएचआरसी को नवंबर 2022 में प्राप्त हुई थी। एसएचआरसी द्वारा वैधानिक जिम्मेदारियों का त्याग किया।"

    न्यायालय ने कहा कि उसके पास हलफनामे के साथ एनएचआरसी की रिपोर्ट पर विचार करने और सुनवाई करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है, यह विचार करने के सीमित उद्देश्य के लिए कि क्या यह प्रशंसनीय दूसरी राय है या घटनाओं के वास्तविक मोड़ का दृष्टिकोण है। घटना देरवित हाईस्कूल की है।

    अदालत ने कहा,

    “अनुच्छेद 226 के तहत इस न्यायालय की शक्ति एनएचआरसी की रिपोर्ट को प्रारंभिक जांच के निष्कर्ष के रूप में स्वीकार करने के लिए पर्याप्त है। राज्य की यह शिकायत कि उनकी पुलिस और प्रशासन को बिना सुने अभियोग लगाया गया है (यदि सही है) अब गलत हो सकता है। संबंधित पुलिस और राज्य प्रशासन के अधिकारियों के खिलाफ कोई औपचारिक मुकदमा चलाने की स्थिति में कानून के अनुसार सुना जाएगा। इसलिए अभी उनके लिए कोई पूर्वाग्रह नहीं हो सकता है।”

    अपनी रिपोर्ट में एनएचआरसी के निष्कर्षों पर विचार करने और जांच में सीआईडी, पश्चिम बंगाल की चूक को उजागर करने के बाद अदालत ने पाया कि सीआईडी, पश्चिम बंगाल की जांच अपर्याप्त और "लापरवाही" से की गई है। इस प्रकार, अदालत ने घटना की जांच एनआईए को स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।

    अदालत ने आगे राज्य को दो महीने की अवधि के भीतर घटना में मारे गए और घायल दोनों पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा देने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: नीलकमल सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य व अन्य और अन्य संबंधित याचिकाएं

    कोरम: जस्टिस राजशेखर मंथा

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